वाग्धारा की जयपुर से संचालित इकाई पोलीसी एडवोकेसी इनिशिएटिव से मधु सिंह ने विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए बताया की आदिवासी समुदायों से संबंधित बच्चों की शिक्षा की वर्तमान वास्तविकताएं बहुत बेहतर नहीं हैं। जाति सामंती समाज, सांस्कृतिक अंतर और सामाजिक आर्थिक स्थिति के तहत उनके उत्पीड़न के कारण समुदाय को ऐतिहासिक रूप से औपचारिक शिक्षा से बाहर रखा गया है। अन्यायपूर्ण विकास प्रक्रिया का प्रभाव आर्थिक शोषण और सामाजिक भेदभाव के कारण उत्पन्न होता है। समानांतर, श्रेणियां स्वयं वर्ग, क्षेत्र, धर्म और लिंग से बहुत दूर हैं और हम जो सामना करते हैं वह एक जटिल जटिल वास्तविकता है। अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए, इस क्षेत्र के लोग आजीविका के उद्देश्य से पलायन करते हैं, और उनके बच्चों को बाल श्रम और बाल विवाह के लिए बलिदान कर दिया जाता है। इसी संदर्भ में अगर शिक्षा का योगदान देखा जाए तो समाज में समता, समानता और न्याय प्राप्त करने और राष्ट्रीय विकास का समर्थन करने के लिए शिक्षा एकमात्र जरिया/साधन है। शिक्षा प्रणाली का मूल उद्देश्य नैतिक विचारों, मूल्यों के साथ, करुणा, सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैज्ञानिक स्वभाव और रचनात्मक कल्पनाशील, तर्कसंगत तरीके से विचार करना, सक्षम और आत्मनिर्भरता की ओर विकास करना है। इसका उद्देश्य हमारे संविधान द्वारा परिकल्पित एक समान, समावेशी और बहुल समाज के निर्माण के लिए उत्पादक और योगदान देने वाले नागरिकों का निर्माण करना है।
13 जनवरी 2022 को वाग्धारा परिसर, कुपडा-बाँसवाड़ा में ज़िले के नवाचारी पहल करने वाले शिक्षकों के साथ में शिक्षा विभाग राजस्थान, वाग्धारा एवं जर्मन संस्था मिसेरिअर के संयुक्त तत्वावधान में जनजातिय क्षेत्र में बच्चों की शिक्षा, चुनोतियाँ और समाधान विषय पर शिक्षकों के साथ संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया I जिसमें बाँसवाड़ा व घाटोल परियोजना से 22 शिक्षकों ने अपनी भागीदारी निभाई I उक्त कार्यक्रम के तहत कोरोना महामारी के समय स्थानीय विद्यालयों में बच्चों के जुड़ाव को नियमित बनाएं रखने के लिए शिक्षकों द्वारा किए गये नवाचारी पहलों को साँझा किया गया, जिनका संकलन कर इसको राज्य सरकार के साथ साँझा किया जाएगा, यह जानकारी संस्था के बाल अधिकार कार्यक्रम प्रभारी माजिद खान द्वारा दी गयी I
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