- राज्य के ज्वलंत शैक्षणिक सवालों को विधानसभा के अंदर मजबूती से उठाया जाएगा. आंदोलनरत छात्र समुदाय का संयुक्त प्रतिनिधिमंडल माले राज्य सचिव मिला.
पटना 24 जनवरी, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने पटना वि.वि. में बीएड के कोर्स में बेतहाशा फीस वृद्धि, पटना लाॅ काॅलेज में आधारभूत संरचनाओं की कमी का हवाला देकर सीटों को 300 से घटाकर 120 कर देने, राज्य में नई शिक्षा नीति के तहत च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम को नए सत्र से लागू करने, शिक्षा के निजीकरण सहित अन्य मसलों पर आंदोलनरत छात्र समुदाय की मांगों पर राजभवन और बिहार सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए और उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. विधानसभा के आगामी सत्र में इन सवालों को मजबूती से सदन के अंदर उठाया जाएगा और राज्य सरकार को जवाब देने के लिए बाध्य किया जाएगा. पटना विवि के आंदोलनरत छात्र समुदाय का एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष विकास यादव के नेतृत्व में आज माले के राज्य सचिव कुणाल, मीडिया प्रभारी कुमार परवेज और राज्य कार्यालय सचिव प्रकाश कुमार से मिला तथा अपनी मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपा. माले राज्य सचिव ने संयुक्त छात्र प्रतिनिधिमंडल की मांगों को हर मंच पर उठाने का आश्वासन दिया. कहा कि पटना विवि के बीएड के कोर्स में फीस को 1800 से बढ़ाकर 1.5 लाख कर दिया गया. हालांकि आंदोलन के बाद अब विश्वविद्यालय प्रशासन 25 हजार फीस की बात रहा है, जो भी एक बड़ी रकम है. विदित हो कि बीएड कोर्स में छात्राओं की पढ़ाई निःशुल्क होती है. इस फीस वृद्धि का सीधा असर गरीब, दलित व वंचित समुदाय के छात्रांे पर पड़ेगा और वे पूरी तरह इस कोर्स से बाहर हो जायेंगे. पुरानी फीस पर ही विश्वविद्यालय में बीएड की पढ़ाई की गारंटी होनी चाहिए. आगे कहा कि आधारभूत संरचना का निर्माण करना सरकार का काम है. लेकिन आधारभूत संरचनाओं को बनाने की बजाए उसके न होने को आधार बनाकर पटना लाॅ काॅलेज में सीटांे की संख्या ही घटाई जा रही है. शिक्षा सुधार की डींगे मारने वाली सरकार ने इसके पहले कई प्राथमिक विद्यालयों को भी बंद कर दिया है. शिक्षा व्यवस्था का आज बिहार में पूरी तरह से बंटाधार हो गया है. नई शिक्षा नीति जो हर लिहाज से निजीकरण को बढ़ावा देती है, उसके खिलाफ छात्र समुदाय के आंदोलन का भाकपा-माले स्वागत करती है. नई शिक्षा नीति की ओट मंे मोदी सरकार उसे आम लोगों से छिन लेना चाहती है. उन्होंने कहा कि छात्रों के साथ-साथ समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को भी इस संविधान विरोधी शिक्षा नीति के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए.
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