यह निश्चित है कि राज्यों में चुनाव कराने का निर्णय सिर्फ निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में ही आता है और आयोग ही तय करता है कि किसी भी विधानसभा का कार्यकाल पूर्ण हांेने से पूर्व चुनाव किस समय कराये जाने चाहिए, जिससे नई विधानसभा का गठन तय समय से हो सके। परंतु चुनाव आयोग को आम जनता के हित को ध्यान में रखते हुए निर्वाचन कराने का निर्णय लेना चाहिए क्योंकि चुनावी रैलियों में हजारों की भीड़ से कोरोना की तीसरी लहर को फैलने में जो गति प्राप्त होगी वह बेहद चिंताजनक परिणाम दिखा सकती है। कोरोना संक्रमण का डर इन रैलियों और रोड शो में हजारों-लाखों की संख्या में आने वाले लोगों के न दिल में आ रहा है और न समझ में। यह बात कोरोना को भी अंदर ही अंदर खाए जा रही है. मतलब, बेचारे कोरोना ने एक साल में जितना भौकाल बनाया, ई ससुरे मिलके सब मिट्टी पलीद किए दे रहे हैं। कौनो डर ही नही रह गया है। वैसे, इतनी भारी भीड़ देखकर कोरोना भी दहशत में आ ही जाता होगा। रैली में पहुंचने के बाद भीड़ में से किसी ने कोरोना को देख लिया, तो लोगों में भगदड़ मच सकती है। भगदड़ के बाद कितने पैरों के नीचे कुचला जाएगा, इसका हिसाब कौन रखता है। उत्तर प्रदेश में इस वक्त सपा की परिवर्तन यात्रा और भाजपा की जनविश्वास यात्राओं के अलावा भारी भीड़ वाली रैलियां लगातार हो रहीं हैं। इन रैलियों में खूब भीड़ हो रहीं है। कांग्रेस ने भी रैलियों और में जन समर्थन जुटाने की गर्ज से मैराथन दौड़ का आयोजन किया। लेकिन जैसे ही ओमिक्रोन संक्रमण तेज हुआ, एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाते हुए और पिछले साल पश्चिम बंगाल चुनावों से सबक लेते हुए कांग्रेस ने अपनी चुनावी रैलियों को रद्द कर दिया है। अब बारी सत्ताधारी भाजपा और सपा की हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए एक ओर सरकार आम जनता से अपील करती है कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं, वहीं दूसरी ओर सत्तारुढ़ पार्टियाँ रैलियों के लिए भीड़ एकत्रित कर रहीं हैं। अब जनता को स्वयं निर्णय लेना होगा कि उनके हित में क्या है? हाॅलांकि अब ऐसा लग रहा है कि जनता भी सरकार की इस अपील पर कोई खास ध्यान नहीं दे रही है। क्योंकि समाज का हर व्यक्ति भीड़ से परहेज नहीं, बल्कि उसका हिस्सा बनने की अग्रसर हो रहा है। भौतिक दूरी और चेहरे पर मास्क लगाने की भी जरूरत नहीं समझी जा रही। हम नियमों की अवहेलना ही करने की ओर प्रवृत्त होते जा रहे हैं। यही सब कारण हैं कि हम समाधान के बजाय खुद ही समस्या बनते जा रहे हैं। इसीलिए सबके हित में यही है कि स्वयं की सुरक्षा करें और तीसरी लहर पर विजय प्राप्त करें।
--नितिन बाघमारे--
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