नयी दिल्ली, 11 जनवरी, उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र विधानसभा के अंदर और बाहर पीठासीन अधिकारी के साथ कथित दुर्व्यवहार के आरोपी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 विधायकों को एक साल के लिए निलंबित किये जाने की कार्रवाई को ‘निष्कासन से भी बदतर’ करार दिया। न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल पांच जुलाई को महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा निलंबन संबंधी पारित प्रस्ताव के मामले में हस्तक्षेप करने पर मंगलवार को अपनी सहमति व्यक्त की। पीठ ने आशीष शेलार के नेतृत्व में निलंबित विधायकों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि एक साल के लिए निलंबन की कार्रवाई ‘निष्कासन से भी बदतर’ माना जाएगा क्योंकि सदन में संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। शीर्ष न्यायालय की पीठ ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि कोई निर्वाचन क्षेत्र छह महीने से अधिक समय तक बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकता। ऐसे में इन निर्वाचित प्रतिनिधियों का एक साल का निलंबन दंड की श्रेणी में आएगा। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 190 (4) में कहा गया है कि यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिनों की अवधि के लिए अनुपस्थित रहता है तो वह सीट खाली मानी जाएगी। विधायकों का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने अदालत के समक्ष रखा। पीठ ने महाराष्ट्र सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील सी.ए. सुंदरम की इस दलील को खारिज कर दी की अदालत विधानसभा द्वारा लगाई गई सजा की मात्रा की जांच नहीं कर सकती है। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 जनवरी की तारीख मुकर्रर की है।
बुधवार, 12 जनवरी 2022
12 भाजपा विधायकों का निलंबन ‘निष्कासन से भी बदतर’: सुप्रीम कोर्ट
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