गंगा नदी के पश्चिमी तट पर बसा वाराणसी अपने आप में दुनिया का सबसे खास शहरों में शुमार है। यह भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रुप में सुशोभित है। 2014 से तो यहां सियासी अहमियत भी बुलंदियों पर है। क्योंकि इस शहर ने देश को प्रधानमंत्री दिया है। मगर सियासी सामर्थ्य पर इतराते बनारस की एक स्याह तस्वीर है। यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विधानसभा चुनाव 2022 की चुनौतियां भी कम नहीं है। यह अलग बात है कि 800 करोड़ की लागत का कैंसर हास्पिटल, रिंगरोड़, ट्रेढ फैसिलीटी सेंटर, 600 करोड़ की इएसएमआइ्र हास्पिटल, 500 करोड़ की रुद्राक्ष सेंटर, बाबा विश्वनाथ धाम का सौन्दर्यीकरण, सड़कों रोड लाइट, लटकते तारों से आजादी, भव्य देव दीपावली सहित कई ऐसे काम है, जो बनारसियों को भा रहा है। बड़ा सवाल तो यह है कि क्या आबादी के बोझ से कराहते इस शहर में अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, बदहाली के अलावा भ्रष्टाचार बनेगा चुनावी मु्द्दा? माना बाबा के बुलडोजर से अपराध में तो कमी आई, लेकिन बाकी की दुश्वारिया जस की तस हैं
बदलता बनारस
बदलते बनारस की विकास यात्रा में वर्ष 2021 अहम कड़ी बन चुकी है। रिंग रोड के जरिए शहर ने विस्तार किया है और शहरवासियों को सड़क, बिजली, पानी, पर्यटन, स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ही रोजगार के अवसर भी मिले हैं। बीत रहे इस साल में शहर की विकास यात्रा में पांच हजार करोड़ रुपये की 100 से ज्यादा परियोजनाएं जुड़ चुकी हैं। विश्व फलक पर काशीपुराधिपति का धाम (काशी विश्वनाथ कॉरिडोर) चमक रहा है तो रिंग रोड से फर्राटा भर रहे वाहन पूर्वांचल से बनारस की कनेक्टिविटी मजबूत कर रहे हैं। बीएचयू सहित अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार ने भी पूर्वी भारत तक को राहत दी है। प्रधानमंत्री वर्ष 2021 में चार बार अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे और हर बार करोड़ों की सौगात उन्होंने दी है। 2022 में मोदी काशी को दो हजार करोड़ की सौगात दी, इसमें कई प्रमुख परियोजनाओं सहित खिड़किया घाट के साथ ही कचरे से कोयला बनाने के प्लांट का लोकार्पण किया। रोपवे प्रोजेक्ट का भी शिलान्यास करेंगे।रुद्राक्ष ने बढ़ाई काशी की चमक
धर्म, कला और संस्कृति की नगरी काशी में जापान और भारत की दोस्ती के प्रतीक के रुद्राक्ष कंवेंशन सेंटर ने शहर की चमक बढ़ा दी है। करीब 179 करोड़ रुपये की इस परियोजना ने कलाकारों के साथ आयोजनों के लिए भी एक मंच प्रदान किया है। यहां होने वाले आयोजन अब विश्व फलक पर लोगों को रिझा रहे हैं। हाल ही में फिल्म फेस्टिवल ने शहर को एक नई पहचान दी है।
मेडिकल हब के रूप में उभरी काशी
पांच सालों में काशी मेडिकल हब के रूप में उभरी है। इसमें जहां बीएचयू में पांच मंजिला 100 बेड वाले एमसीएच विंग, क्षेत्रीय नेत्र संस्थान की सौगात मिली, वहीं जिला महिला अस्पताल कबीरचौरा में 100 बेड और दीनदयाल अस्पताल परिसर में 50 बेड के एमसीएच विंग का भी उद्घाटन हुआ। जहां एक ही छत के नीचे गर्भवती महिलाओं, बच्चों का इलाज हो रहा है। इसके अलावा बीएचयू समेत अन्य सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों पर ऑक्सीजन प्लांट भी लगाया गया है, जिससे कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर में कोई समस्या न हो। यहीं नहीं भद्रासी में 50 बेड के आयुष अस्पताल की भी सौगात इसी साल दिसंबर में मिली है।
मजबूत हुई कनेक्टविटी
बीतने वाले साल में सबसे बड़ी सौगात रिंग रोड फेज-2 के रूप में मिली है। शहर में आने वाले वाहन अब राजातालाब से हरहुआ होते ही सीधे गाजीपुर और अन्य शहरों के लिए निकल जा रहे हैं। करीब चार सौ करोड़ रुपये की इस परियोजना ने शहर की सड़कों से भारी वाहन गायब कर दिया है।
हाईटेक पार्किंग ने दिलाई जाम से निजात
शहर की सबसे बड़ी समस्या जाम से भी इस साल निजात मिली है। शहर के सबसे व्यस्ततम इलाके गोदौलिया में टू व्हीलर पार्किंग, मैदागिन के टाउन हाल में 400 वाहनों की पार्किंग, सर्किट हाउस में 450 वाहनों की पार्किंग और बेनियाबाग में 600 वाहनों की पार्किंग की सौगात ने शहर में बड़ा बदलाव किया है।
पर्यटन से बढ़े रोजगार के अवसर
पर्यटन विकास के क्षेत्र में इस साल कई बड़े काम अंजाम तक पहुंचे। गोदौलिया से दशाश्वमेध तक गौरव पथ ने शहर को नई पहचान दी है। इसके साथ घाटों के सौंदर्यीकरण, खिड़किया घाट के विकास, शहर में फसाड लाइटिंग सहित कई काम हुए है। इससे पर्यटकों की सुविधा के साथ पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों के रोजगार में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
दमकते गंगा घाट
गंगा किनारे 87 से अधिक घाट है, लेकिन बदइंतजामी के चलते सारे घाट खोखला हो चुके है। इसकी बड़ी वजह यह है कछुआ सेंचुरी के नाम पर गंगा उस पार बालू का टीला खड़ा हो गया है और पानी का दबाव घाटों पर है। हालांकि मोदी के प्रयास से काशी रेलवे स्टेशन, बनारस रेलवे स्टेशन व कैंट रेलवे स्टेशन सीसे की तरह चमक दमक रहा है। बढ़ती बेरोजगारी के साथ शहर के सबसे बड़े मार्केट ट्रेंड ‘बनारसी पान‘ और ‘बनारसी साड़ी‘ अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। जबकि वाराणसी के इस प्राचीन विरासत को बरकरार रखने की आवश्यकता है। स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा करने के लिए कुटीर, हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा शहर की पुरानी प्रतिष्ठा को भी वापस लाने की जरूरत है। यह सब बेहतर नागरिक सुविधाओं को उपलब्ध कराए बिना संभव नहीं है। इन समस्याओं को दूर कराने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान दूर कराने का वादा किया था और इसके लिए विभिन्न योजनाओं के तहत पैसे तो खूब आएं लेकिन निगम की लापरवाहियों के चलते सब अधर में लटका है। राजनैतिक रूप से कहा जाए तो जलापूर्त्ति, साफ-सफाई, कूड़ा-कचरा प्रबंधन, भू-उपयोग (अवैध निर्माण, अवैध कालोनियां एवं झुग्गी-झोपड़ी), यातायात और पर्यावरण की समस्याएं बेहद संवेदनशील हैं। जहां तक अवैध निर्माण और भूमि अतिक्रमण की बात है, शहरी क्षेत्रों में यह एक बड़ा मुद्दा है। राजनेता भी, चाहे वे सत्ताधारी हों या विपक्षी, कानून तोडने वालों के साथ होते हैं, कानून लागू करने वालों के पक्ष में नहीं। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में यही सबसे बड़ी चुनौती है।
बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है यूपी
उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधान सभा सीटें हैं, जिनमें सबसे अधिक 156 विधान सभा सीटें अकेले पूर्वांचल में हैं। 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने यहां 106 सीटें जीती थीं, जबकि सपा को 18 और बसपा को 12 सीटें ही मिली थीं। अब अगर बीजेपी को फिर से सत्ता में आना है, तो पूर्वांचल की इन सीटों पर ज्यादा जोर देना होगा और इसीलिए मोदी योगी का पूर्वांचल पर जोर है। यूपी के 80 में से 26 जिले पूर्वांचल में है। इस हिसाब से देखें तो पूर्वांचल देश के 15 राज्यों से बड़ा है, क्योंकि इन राज्यों में 26 से कम जिले हैं। पूर्वांचल में लोक सभा की 29 सीटें हैं और इनमें 22 सीटें बीजेपी के पास हैं। 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीती थीं, जिनमें से सबसे ज्यादा 62 सीटें बीजेपी ने यूपी में जीती थी। यूपी में लोक सभा की कुल 80 सीटें हैं। इस हिसाब से देखें तो लगभग 20 प्रतिशत सीटें सिर्फ बीजेपी को यूपी से मिलीं। यानी देश में सरकार बनाने में उत्तर प्रदेश का रोल बहुत बड़ा है। इसीलिए यूपी बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है।
देश और दुनिया के लिए मॉडल बनी काशी
वैसे भी बनारस एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है, जो यूपी-बिहार के साथ पूरे पूर्वांचल की राजनीति में अपनी खासा अहमियत भी रखता है। यही वजह है कि मोदी काशी को लगातार साधते रहे हैं और आगे भी जारी रखेंगे। उसी का परिणाम है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश ने एक नई पहचान तो बनाई ही है। आज नई काशी अपनी आध्यात्मिक पहचान को विकसित करते हुए देश और दुनिया के लिए एक मॉडल बनी है। देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में पिछले सात सालों के दौरान 10,300 करोड़ रुपये की परियोजनाएं पूरी हुई हैं। जबकि लगभग 19,284 करोड़ की योजनाएं गतिमान हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी 30 बार बनारस आ चुके है। इन परियोजनाओं के जरिए काशी बदल रहा है। वास्तविकता के धरातल पर काशी बदलता हुआ दिखने भी लगा है। चाहे वो सड़क, सीवर, पेयजल, बिजली, पुल, धर्म, अध्यात्म हो, या रिंग रोड हो या फिर फोरलेन रोड या फिर आईपीडीएस सिस्टम हो, या स्वास्थ्य सेवाएं जैसे कैंसर हास्पिटल, रुद्राक्ष सेंटर, ऑक्सीजन प्लांट हो या बाबा विश्वनाथ मंदिर से लेकर घाट तक को सजाने-संवारने में जुटे हैं पीएम मोदी। परिणाम यह है कि काशी में आज प्राचीनता संग आधुनिकता का संगम दिख रहा है। हर ओर विकास तीव्र गति से देखी जा सकती है। बनारस में सात चाल पहले सफाई अभियान की बिगूल फूंकी जो आज देश में मिशन के तौर पर दिखने लगा है। मकसद है संसदीय क्षेत्र वाराणसी को हाईटेक बनाने की।
रोजगार का बनेगा साधन
करसड़ा में करीब 45 करोड़ की लागत एवं 10 एकड़ भूमि में बनने जा रहा सिपेट (केंद्रीय पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग एवं तकनीकी संस्थान) के सीएसटीसी (स्कीलिंग एंड टेक्निकल सपोर्ट सेंटर) सेंटर पूर्वांचल के युवाओं के रोजगार का माध्यम बनेगा। यहां पर हरसाल लगभग 1000 युवाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी।
सांस्कृतिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार काशी एवं भगवान शिव की भांति पतित पावनी पुण्यसलिला मां गंगा भी मोक्ष प्रदायिका हैं। यह स्वर्गलोक में देवताओं, मृत्युलोक में मानवों तथा पाताललोक में नागों को मोक्ष प्रदान करती हैं इसीलिए इनका नाम त्रिपथगा भी है। पुराणों में इनके 1000 नामों का वर्णन भी प्राप्त होता है। ब्रह्मांड पुराण में वर्णन है कि गंगा दर्शन से सौ पापों का, गंगा के स्पर्श मात्र से सौ जन्मों के पापों का तथा गंगा स्नान एवं गंगा के जल का पान करने मात्र से इस कलयुग में एक हजार जन्मों का पाप भी नष्ट हो जाता है।
घाटों की इंद्रधनुषी छटा
14वीं सदी के विक्रांतकौरवं ग्रंथ में गंगा के तट पर अवस्थित पंक्तिबद्ध उद्यानों की प्राकृतिक सुषमा की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। कहा गया है कि गंगा तट पर उद्यानों की एक अटूट शृंखला लोगों के मन को मोह लेती है। आज बदले समय में उद्यान तो नहीं, लेकिन घाटों का स्वरूप निखर रहा है। असि और रविदास घाट के सुंदरीकरण-विस्तारीकरण के बाद खिड़किया घाट आकर्षण का नया केंद्र बन रहा है। दशाश्वमेध घाट की महिमा तो जगविख्यात है ही।
आकर्षण का केंद्र बने कई स्थल
नरेन्द्र मोदी जब से बनारस के सांसद हुए हैं तब से शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा है। 2014 से लेकर अब तक काफी कुछ बदल गया है। शहर की बात करें तो गलियों चौराहों व घाटों को और भी आकर्षक व सुंदर बनाया जा रहा है। इन दिनों गोदौलिया चौराहा से दशाश्वमेघ घाट मार्ग लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां गुलाबी पत्थर से मार्ग को बना दिया गया है। वहीं सड़क के दोनों तरफ के मकानों व दुकानों को एक रंग यानी गुलाबी में रंग-रोगन कर दिया गया है। जिससे यह और भी आकर्षण का केंद्र बन गया है। साथ ही सड़क के दोनों तरफ लगे हेरिटेज पोल शाम होते ही रोशनी से जगमब हो जाते हैं। इससे क्षेत्र की सुंदरता और भी मनमोहक हो जा रही है।
-- सुरेश गांधी--
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