- राजसी-स्वरूप में बाबा का दूल्हा रूप में देख भक्त हुए निहाल, पूरे दिन चला दर्शन-पूजन का सिलसिला , बाबा के विवाह की तैयारियां भी शुरू, रंगभरी एकादशी को होगा बाबा गौना
वाराणसी (सुरेश गांधी) माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वसंत पंचमी को मंत्रोंचार के बीच परंपरानुसार काशीपुराधिपति श्रीकाशी विश्वनाथ का तिलकोत्सव हुआ। काशी के भक्तों ने बाबा को तिलक चढ़ाया और होली खेली। अलसुबह से ही पूरा मंदिर परिसर भक्तों से पटा रहा। टेढ़ीनीम स्थित महंत डा. कुलपति तिवारी के आवास पर शहनाई की मंगल ध्वनि और डमरुओं के निनाद के बीच रस्में पूरी की गयी। ग्यारह वैदिक ब्राह्मणों ने चतुर्वेद की ऋचाओं का पाठ किया। बाबा का सविधि जल और दूध से अभिषेक करने के साथ ही वेद मंत्रों के बीच फल और मिष्ठान समेत फलाहार का भोग अर्पित किया गया। खास यह है कि इस मौके पर भोले के तिलक पर काशी निहाल हुई तो काशीवासी भी बाबा के उत्सव के साक्षी बनकर निहाल हो उठे। हर-हर महादेव और डमरू की नाद के बीच पूरा शहर गूंजायमान हो गया। इसके साथ ही बाबा के विवाह की तैयारियां भी शुरू हो गईं, काशी भी अपने अधिपति के रंग में रंगी नजर आई। लोकमान्यता है कि महाशिवरात्रि पर बाबा का विवाह, रंगभरी एकादशी पर गौना तो इससे पहले वसंत पंचमी पर तिलकोत्सव होता है। इसके साथ ही काशीवासियों पर होली का रंग चढ़ना शुरू हो जाता है। 357 से ज्यादा वर्षों से से चली आ रही बाबा विश्वनाथ के तिलकोत्सव की परंपरा में काशी की जनता ही बराती और घराती की भूमिका में होती है। तिलक, विवाह और रंगभरी एकादशी पर गौना की परंपरा का श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर महंत परिवार सदियों से निर्वहन कर रहा है। वर्ष 1983 में मंदिर का शासन द्वारा सरकारी तौर पर अधिग्रहण के बाद भी परंपरा जारी है। शनिवार तड़के चार से साढ़े चार बजे तक बाबा विश्वनाथ की पंचबदन रजत मूर्ति की मंगला आरती उतारी गई। प्रातः छह से 8ः00 बजे तक ब्राह्मणों द्वारा चारों वेदों की ऋचाओं के पाठ के साथ बाबा का दुग्धाभिषेक किया गया। सुबह 8ः15 बजे से बाबा को फलाहार का भोग अर्पित किया गया। उसके उपरांत पांच वैदिक ब्राह्मणों ने पांच प्रकार के फलों के रस से 8ः30 से 11ः30 बजे तक रुद्राभिषेक किया। पूर्वाह्न 11ः45 बजे पुनः बाबा को स्नान कराया गया। 12ः00 से 12ः30 बजे तक मध्याह्न भोग अर्पण एवं आरती की गई। 12ः45 से महिलाओं द्वारा मंगल गीत गाए जा रहे हैं। सायंकाल भक्तों को बाबा विश्वनाथ (राजसी-स्वरूप) दूल्हा रूप में भक्तों को दर्शन दी।
श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी, मंदिरों में हुई पूजा अर्चना
बसंत पंचमी के मौके पर शनिवार को बड़ी संख्या में आस्थावानों ने गंगा में डुबकी लगायी। घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। हर कोई गंगा में डुबकी लगाकर अपने को धन्य मान रहा था। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखकर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। भोर में ही स्नान के लिए घाटों पर पहुंचना शुरु हो गए थे। समय बीतने के साथ श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होता गया। हर कोई भक्ति के प्रवाह में बहने के लिए अतुर दिखा। लहुरबीर-गोदौलिया मार्ग पर पौ फटने तक कहीं तिल रखने भर की जगह नहीं बची। स्नान, ध्यान के साथ रेती पर मां वाग्देवी की आराधना, आरती और दीपदान होता रहा। घाटों पर कहीं यज्ञ, अखंड पाठ तो कहीं संगीतमय कथाएं और कीर्तन किए जा रहे हैं।
पंडालों में हुई पूजा, मां शारदे का लगा जयकारा, कहीं यज्ञ तो कहीं संगीतमयी धुन से गूंज रही बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी, समितियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रतिमा स्थापित कर विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना की गई
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर शनिवार को देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी विद्या, बुद्धि सहित ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती की आराधना में लीन रही। घरों में विधि विधान से माता सरस्वती की पूजा-आराधना की गई तो संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर स्थित वाग्देवी मंदिर समेत देवालयों में कतार लगी रही। पूजा मंडपों में विधि विधान से मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कर पूजन अनुष्ठान किए गए। इसके साथ सड़कें-गलियां गीत-भजनों से गुंजायमान हो उठीं। इस दौरान देवी को प्रिय पीत रंग की बहुलता दिखी। पीले वस्त्रों में सजे संवरे श्रद्धालुओं ने माता का पीत वस्त्र-आभूषण से शृंगार किया। उनकी पीले फूलों से झांकी सजाई। पीले फल और मिष्ठान के साथ ही केसर युक्त खीर भी समर्पित किया। संकल्प पूर्वक तिथि विशेष पर व्रत भी रखा। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन ब्रह्मा जी के स्तुति से विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस बार बसंत पंचमी पर बुद्धादित्य एवं सिद्धि योग का सुंदर संयोग बन रहा है। इस दौरान किसी शुभ कार्य की शुरुआत करना विशेष लाभकारी होता है। तथा ऋतुओं के इस संधिकाल में ज्ञान और विज्ञान दोनों का वरदान प्राप्त किया जा सकता है। बसंत पंचमी से ऋतुराज वसंत का आगमन भी होता है, इस दिन से सरसों के खेत खिलखिला उठते हैं और पूरी धरती पीले रंग से रंगमय हो उठती है।
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