पटना, 12 फरवरी। प्रख्यात स्वाधीनता सेनानी और वामपन्थी नेता किशोरी प्रसन्न सिंह की स्मृति में विमर्श का आयोजन केदारभवन, पटना में आयोजित किया गया। अभियान सांस्कृतिक मंच एवं शहीद भगत सिंह विचार मंच के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित विमर्श का विषय था"स्वाधीनता संग्राम में समाजवाद की परिकल्पना और वर्तमान भारत'। इस विर्मश में शहर के बुद्धीजीवी , संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता तथा समाज के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि मौजूद थे। वक्ताओं ने बताया कि स्वाधीनता आधुनिक इतिहास के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने बताया " इतिहास को लेकर जितनी राजनीति होती है उतनी राजनीति को लेकर भी नहीं होती। इतिहास को पक्षपाती बनकर नहीं देखा जा सकता है। भगत सिंह के खिलाफ मुखबिरी करने वाले फणीन्द्र घोष को मारने के लिए लॉटरी में बैकुण्ठ शुक्ल अपना देखकर खुश हो गए। अगर रूस की क्रांति नहीं होती तो भारत में समाजवाद की बात मुश्किल होती। किसान के आजादी की लड़ाई में आने से जनवाद संभव हुआ। किसानों पर मिडिल क्लास हावी हो गया। पॉलिटिक्स इज रुट एंड हिस्ट्री इज फ्रूट।" स्वामी सहजानंद सरस्वती के अध्येता कैलाशचंद्र झा ने कहा कि स्वामी सहजानंद सरस्वती पर शोध करने वाले अमेरिकी पत्रकार वाल्टर हाउजर ने "मुझे किशोरी प्रसन्न सिंह के बारे में बताया। किशोरी प्रसन्न सिंह हमारे इतिहास का हिस्सा हैं। स्वामी सहजानंद सरस्वती का सीताराम आश्रम भी हमारा धरोहर है, हम उसे भी बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं। मैं वाल्टर हाउजर की तरफ से किशोरी जी को सम्मान देता हूँ।"
- ( अभियान सांस्कृतिक मंच और शहीद भगत सिंह विचार मंच का संयुक्त आयोजन )
सीपीआई के वरिष्ठ नेता और वैशाली जिला सचिव अमृत गिरी ने किशोरी प्रसन्न सिंह को याद करते हुए बताया कि "आज भी गांव- गांव में लोग किशोरी जी याद करते हैं। किशोरीजी और उनकी पत्नी सुनीति देवी पर्दा प्रथा के खिलाफ भी लड़ते रहे। किशोरी जी ने जयप्रकाश नारायण के इस बात से नाराज थे कि उन्होंने आरएसएस का समर्थन कर दिया। एन्टी फासिस्ट आंदोलन में भी किशोरी जी लगातार सभा करते थे। खिचड़ी उनका प्रिय भोजन था। हमारा फर्ज है कि उनकी विरासत को आगे बढ़ाएं। समाजवाद सत्य है। इसको साकार होना है।" माकपा के केंद्रीय समिति सदस्य अरुण मिश्रा ने विमर्श को संबोधित करते हुए कहा " हमारे पूरे राष्ट्रीय आंदोलन पर सोवियत क्रांति का सबसे अधिक पड़ा समाजवाद की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए। भगत सिंह ने समाजवाद की परिकल्पना को काफी आगे बढ़ाया। जिस साल 1917 में रूस में क्रांति हुई उसी वर्ष महात्मा गांधी चंपारण के किसान आंदोलन में आये। जब भी हम मार्क्सवादी बात करते हैं तो हम गांधी जैसे बड़े नेताओं की वर्गीय सीमाओं को भी समझना चाहिए। गांधी, नेहरू उभरते बुर्जुआ के प्रतिनिधि थे। चौरी चौरा की घटना ने आम आदमी के भीतर एक गुस्सा पैदा किया। लोगों को लगा कि हम लड़कर आजादी ले सकते हैं। समाजवाद के लिए किसान मजदूर नौजवान सब तैयार हो रहे थे। समाजवाद भारत में चलने वाले संघर्ष से पैदा हो रहा था। आजादी के संघर्ष के कई नेता पुरातनपंथी थे। साम्राज्यवाद ने समाजवादी रूस को खत्म करने की बहुत कोशिश की। रूस में समाजवाद ने लोगों के बुनियादी जरूरतों को पूरा किया। आज जरूरत है वैचारिक बहस बढ़ाने की। कोरोना महामारी में समाजवादी देश क्यूबा ने कई देशों में अपने डॉक्टर भेजे।" प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में बताया कि " किशोरी जी की वजह से कांग्रेस के नेतृत्व में समाजवादी लोग चुने गए। सुभाष चंद्र बोस को भी परिस्थितियों के कारण कांग्रेस छोड़ना पड़ा। कम्युनिस्टों और सोशलिस्ट को एकजुट करने की भी कोशिश की। किशोरी प्रसन्न सिंह को जब स्टालिन की किताब लेनिनवाद की समस्याएं मिली तो उनको अफसोस हुआ कि यह किताब उन्हें पहले क्यों नहीं मिली। किशोरी जी की वजह से ही बिना मुआवजे जमींदारी उन्मूलन का प्रस्ताव किसान सभा ने पास किया।"
मज़दूर संगठन एटक के राज्य महासचिव ग़ज़नफर नवाब ने बताया " स्वाधीनता संग्राम में किसान और मज़दूरों के सवालों को जब लाया गया तब समाजवाद की परिकल्पना की शुरुआत हुई।" चर्चित अधिवक्ता मदन प्रसाद सिंह के अनुसार " किशोरी प्रसन्न सिंह लोगों को देखकर, खुद से पढ़कर सीखा। सिर्फ ट्रेड यूनियन पॉलिटिक्स करना दरअसल बुर्जुआ पॉलिटिक्स करना है। हमलोग अपने परिवार व नजदीकी लोगों से संवाद नहीं करते। हिन्दू-मुस्लिम को लेकर ध्रुवीकरण किया जा रहा है। " अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए सीपीआई के वरिष्ठ नेता विजय नारायण मिश्रा ने किशोरी प्रसन्न सिंह के साथ आजन संस्मरणो को साझा करते हुए कहा " किशोरी प्रसन्न सिंह बहुत अनुशासित व्यक्ति थे। अपना काम दूसरों को नहीं करने देते थे। जब पटना बाढ़ में डूबा तो उन्हें ही जिम्मा दिया गया। जब वे नौजवान थे तो रूसी क्रांति से प्रभावित थे। साम्राज्यवाद का विरोध करने के दौरान बार बार रवींद्रनाथ टैगोर का नाम लेते। साम्राज्यवाद का नाश हो इस नारे के साथ क्रांतिकारियों का साथ उन्होंने लिया। वे भगत सिंह, बैकुंठ शुक्ला आदि के वे साथ थे। वे सर्वहारा के नेतृत्व में ही समाजवाद का निर्माण होगा। वे वे जब खुश होते तो केला और आंवला दिया करते थे। कौन सा केला कब खाना चाहिए यह सीखा। " ए. आई.एस. एफ के अमन , सामाजिक कार्यकर्ता अशोक गुप्ता आदि ने भी संबोधित किया। अभियान सांस्कृतिक मंच और शहीद भगत सिंह विचार मंच के ओर से आयोजित इस विमर्श का संचालन इंजीनियर सुनील सिंह ने किया। सभा के प्रमुख लोगों में थे कुलभूषण गोपाल, एटक के राज्य अध्यक्ष अजय कुमार, अधिवक्ता मदन प्रसाद सिंह, प्रो.एस. के गांगुली, अशोक कुमार गुप्ता, किसान नेता गोपाल शर्मा, साहित्यकार चन्द्रबिन्दु सिंह, पुष्पेंद्र शुक्ला, स्वराज कुमार शाही, डी.पी यादव, हरदेव ठाकुर, मीर सैफ अली, विश्वविद्यालय व महाविद्यालय कर्मचारियों के संगठन ए. आई.एफ.यू.सी. टी.ओ के राष्ट्रीय महासचिव प्रो अरुण कुमार , रामजीवन सिंह, अधिवक्ता उदय प्रताप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ झा, सामाजिक कार्यकर्ता रंजीत कुमार, संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन आदि।
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