जलवायु परिवर्तन को लेकर हमारी वल्नरेबिलिटी और उसे ले कर हमारी एडाप्टेशन की क्षमताओं पर केन्द्रित संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की एक आगामी रिपोर्ट भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। इस महीने की 28 तारीख को जारी होने वाली यह बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता और मानव समुदायों को देखते हुए जलवायु अनुकूलन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करेगी। यह रिपोर्ट जलवायु संकट के सापेक्ष दुनिया और मनुष्यों की कमजोरियों और क्षमताओं और सीमाओं की भी समीक्षा करेगी। इस रिपोर्ट की खास बात है कि इसमें नौ भारतीयों का योगदान है। उष्णकटिबंधीय वनों, जैव विविधता हॉटस्पॉट; पानी; पहाड़ों; गरीबी और आजीविका; और जलवायु संकट का एशिया पर प्रभाव जैसे पर विभिन्न अध्यायों में इन नौ भारतीयों ने योगदान दिया है। रिपोर्ट को दुनिया भर से 330 लेखकों ने मिल कर लिखा है। संयुक्त राष्ट्र के एक नोट कि मानें तो इस रिपोर्ट के तकनीकी सारांश प्रारूप में जलवायु जोखिम ढांचा शामिल होगा जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के खतरे, जोखिम और कमजोरियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा, साथ ही उनका स्थानिक वितरण, व्यापक प्रभाव, आपदा जोखिम में कमी, और जोखिम अनिश्चितताएं आदि विषयों का भी उल्लेख होगा। इस सारांश में जलवायु परिवर्तन जोखिमों को संबोधित करने में अनुकूलन का महत्व भी प्रमुखता से शामिल होगा, जिसमें विविध अनुकूलन प्रतिक्रियाएं, प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन जैसी प्रौद्योगिकियां शामिल हैं। आईपीसीसी के इस नोट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के वर्तमान और भविष्य के अवशिष्ट प्रभावों के वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक आर्थिक पहलू, जिसमें अवशिष्ट क्षति, अपरिवर्तनीय नुकसान और धीमी शुरुआत और चरम घटनाओं के कारण आर्थिक और गैर-आर्थिक नुकसान शामिल हैं। पिछली आईपीसीसी रिपोर्ट की तुलना में, WGII इस बार अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान से अधिक एकीकृत करेगा, और जलवायु परिवर्तन को अपनाने में सामाजिक न्याय की महत्वपूर्ण भूमिका को अधिक स्पष्ट रूप से उजागर करेगा।
रिपोर्ट जिन पाँच मुख्य बिन्दुओं पर केन्द्रित है वो कुछ इस प्रकार हैं
1. जलवायु परिवर्तन गंभीर रूप से उन लोगों को और पारिस्थितिक प्रणाली को प्रभावित कर रहा है जिन पर हम निर्भर हैं
2. बुरे मौसम का दौर हमें अभूतपूर्व नुकसान पहुंचा रहा है
3. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बदतर होते जा रहे हैं, हाशिये पर स्थित लोगों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है
4. अनुकूलन बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे कहीं अधिक की आवश्यकता है
5. इस दिशा में निष्क्रियता की लागत, कमी लाने और अनुकूलन की लागत से कहीं अधिक है
इन सभी बिन्दुओं के दृष्टिगत यह रिपोर्ट भारत जैसे संवेदनशील देश के लिए निश्चित तौर से महत्वपूर्ण साबित होगी और नीति निर्माताओं को जलवायु कार्यवाई करने कि दिशा और गति तय करने में मददगार साबित होगी।
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