(भारत-पाक संबंध: एक नया रूप,एक नया आयाम)
अभी दो-एक दिन पहले हमारे लेखक-मित्र श्री अश्विनी कुमार चरंगू ने जम्मू से अपने एक आलेख को मुझे पढ़ने के लिए भेजा और अनुरोध किया कि इस आलेख के विषय और आशय पर मैं अपनी कोई सार-गर्भित टिप्पणी अवश्य करूँ। (आलेख अंग्रेज़ी में था)विषय चूंकि ज्वलंत और विचारोत्तेजक था,अतः पूरे आलेख को मैं ध्यान से पढ़ गया और हिंदी रूपांतर भी किया। दरअसल, पिछले दिनों भारत-पाक के बीच बिगड़ते-बनते और सुलझते-उलझते संबंधों को लेकर एक अंतर्राष्ट्रीय वेबनार आयोजित हुआ था जिस में भारत और पाकिस्तान के नामचीं और सुविज्ञ विद्वानों,राजनीतिक विश्लेषकों और शीर्ष राजनीतज्ञों ने भाग लिया। कुछ नाम इस प्रकार से हैं:नवरीन इब्राहिम, पाक सांसद, फारूक अब्दुल्ला, यशवंत सिन्हा, खुर्शीद मोहम्मद कसूरी, ओपी शाह, अश्विनी कुमार चरंगू, सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद, प्रवीण डावर, प्रो. गोपी कृष्ण मुजू, मंजीत सिंह, बलबीर पुंज, तथागत रॉय, काजी अशरफ शामिल थे। इन महानुभावों के अलावा अब्दुल बासित, जावेद जब्बार, सुधींद्र कुलकर्णी, मुजफ्फर शाह, सलीम इंजीनियर, हरीश नारायण, मुशीर हुसैन, डीके खजूरिया, मणिशंकर अय्यर, कपिल काक, मो. यूसुफ तारिगामी, अशोक भान, ए.एम. वटाली, अनीस हारून, एन.डी. पंचोली, हुसाम उल हक और डॉ सुनीलम ने भी इस अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेबनार में अपने विचार रखे। वेबनार में 350 पृष्ठों की एक चिरप्रतीक्षित पुस्तक 'In pursuit of peace: Improving Indo-Pak relations'. का भी विमोचन हुआ जिसमें दोनों देशों के गणमान्य व्यक्तियों के 50 के करीब लेख आकलित हैं। लेखकों में जिन कलमकारों ने योगदान दिया, उनमें प्रमुख हैं: सर्वश्री बलबीर पुंज, फारूक अब्दुल्ला, अब्दुल बासित, अश्विनी कुमार चरंगू, आगा सैयद हसन मोसावी अल सफीवी, अशोक भान, हामिद मीर, यशवंत सिन्हा, मणिशंकर अय्यर, सैयद नजीर गिलानी, काजी अशरफ, एमएम एनसारी, रमेश दीक्षित, सलीम इंजीनियर, सलमान खुर्शीद, सतिंदर के लांबा, वेद प्रताप वैदिक, सुनील वट्टल, तलत मसूद, सुधींद्र कुलकर्णी, मोहम्मद हामिद अंसारी, बिलाल बशीर भट और अनीस हारून। वेबिनार में अच्छी-खासी संख्या में राजनेताओं, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं और भारत और पाकिस्तान के पूर्व राजनयिकों ने भाग लिया। वेबिनार में बोलते हुए बलबीर पुंज ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध संबंधित देशों के बुद्धिजीवियों अथवा तथाकथित भद्रजनों की सनक और उनके निजी नजरिए पर निर्भर नहीं होने चाहिए। पाकिस्तान द्वारा भारत की हमेशा निंदा करने से कोई आदर्श स्थिति नहीं बन सकती। एक-दूसरे के खिलाफ घृणा का भाव भी शांति और अच्छे संबंधों का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकता। पाकिस्तान को भारत के खिलाफ घोर विकर्षण की मानसिकता से बाहर आना होगा।
फारूक अब्दुल्ला का कहना था कि अच्छे भारत-पाक संबंधों के पक्ष में आम सहमति बनाने के लिए समाज और सरकारों को एक साथ मिलकर काम करना होगा। जब तक एक-दूसरे के प्रति नफरत रूपी पागलपन का दौर चलता रहेगा,स्थिति सुधरेगी नहीं। इसलिए पाकिस्तान और भारत को समझदारी से व्यवहार करना चाहिए और निश्चित तौर पर दोनों देशों के बीच परस्पर बातचीत ही इसका उत्तम विकल्प है। खुर्शीद मोहम्मद कसूरी का मत था कि वाजपेयी के समय की कूटनीति दोनों देशों के बीच शांति और भाईचारे का माहौल लेकर आई थी। ऐसा माहौल समय की मांग है। दोनों देशों के बुद्धिजीवी और निष्पक्ष लोग शांति चाहते हैं। सिनेटर मुशाहिद हुसैन सईद ने अपनी टिप्पणी में कहा कि वर्तमान में पाकिस्तान में कोई भी ऐसा पक्ष नहीं है जो भारत के साथ युद्ध का समर्थन करता हो। वास्तव में पिछले साल दोनों देशों के बीच पिछले सैन्य युद्धविराम के बाद पाकिस्तान सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए थे, जिसमें भारत द्वारा पाकिस्तान के माध्यम से अफगानिस्तान को गेहूं की भारी मानवीय आपूर्ति की अनुमति देना शामिल था।नई सुरक्षा नीति भी बातचीत के लिए माहौल बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक उत्साहजनक लक्षण है। सामाजिक कार्यकर्त्ता और प्रसिद्ध लेखक अश्विनी कुमार चरंगू ने अपने विचार यों व्यक्त किए: “आतंकवाद को रोकने में विफलताओं के लिए सरकारों और प्रशासन की आलोचना करना हमेशा एक फैशन बन गया है। कौन नहीँ जनता कि पाकिस्तान पिछले तीन दशकों से अधिक समय से जम्मू और कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने और समर्थन करने में पूरी तरह से शामिल रहा है। दुर्भाग्य से आतंकवाद इस देश की नीति रही है। चरंगू ने आगे कहा कि यदि पाकिस्तान भारत के साथ सार्थक वार्ता चाहता है तो उसे अपने यहाँ स्थापित पूरे आतंकी ढांचे को खत्म करना होगा, जैसा कि दो दशक पहले भारत के साथ शिखर सम्मेलन की बैठकों में पाक वादा कर चुका है। शांति और मैत्रीपूर्ण संबंधों के सपनों को साकार करने के लिए पाकिस्तान के लिए शांति स्थापना के विशेष संदर्भ में नए सिरे से सोचना और कार्य करना उचित होगा।
वेबनार में सहभागियों ने चर्चा के दौरान इन चार प्रमुख मुद्दों पर बल दिया:
1.दोनों देशों की हजारों साल पुरानी साझी संस्कृति, सभ्यता, विरासत, परंपरा आदि को मान्यता देना और उसे आत्मीयतापूर्वक अपनाना;
2. आतंकवाद के बुनियादी ढांचे को पाकिस्तान उसके नियंत्रण वाली भूमि से स्थायी रूप से नष्ट करें ;
3. कश्मीर मुद्दे को, वयवहार-कुशलता से, बहस और चर्चा की मेज से दूर रखना; तथा
4. पश्चिमी शक्तियों को भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता और वार्ता के मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति न देना।
निश्चित ही यह चार-सूत्री एजेंडा दोनों देशों के लोगों और संबंधित सरकारों के समर्थन के साथ परस्पर संबंध विकसित और सुदृढ़ करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।यह अजेंडा काफी हद तक बर्फ को पिघलाने में भी मदद करेगा और इस तरह मौजूदा भरोसे की कमी और एक-दूसरे के खिलाफ नफरत को अलविदा कहेगा। यह आशा की जाती है कि भारत और पाकिस्तान में सद्भाव, शांति और समृद्धि की अभिलाषा के हित में सभी संबंधितों पक्षकारों में बेहतर तालमेल की भावना प्रबल होगी। (मूल आलेख श्री अश्विनी कुमार चरंगु द्वारा लिखित।)
हिंदी रूपांतर: शिबन कृष्ण रैणा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें