इटावा/ मैनपुरी, 22 मार्च, लोकसभा में आजमगढ़ का प्रतिनिधित्व करने के बजाय मैनपुरी के करहल से विधायक बने रहने के समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव के फैसले के निहितार्थ निकाले जाने लगे हैं। कहा जा रहा है कि अखिलेश उत्तर प्रदेश में एमएलए रह करके योगी सरकार को घेरने के साथ साथ पार्टी को मजबूती देने की दिशा में काम करने में जुटेंगे तो सपा को खासा फायदा पहुंचेगा। 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद समाजवादी पार्टी ने राम गोविंद चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। अब अखिलेश यादव खुद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन सकते हैं। इसके जरिए वह आसानी से भाजपा की सरकार को घेर सकते हैं। दूसरी ओर अखिलेश के साथ रामपुर की सांसदी छोड़ने वाले आजम खान जैसे नौ बार विधायक रहे नेता अगर विधानसभा में मौजूद रहते हैं तो उनके अनुभव का भी सपा को फायदा होगा।
सपा एमएलसी और करहल में प्रमुख नेताओं में सुमार अरविंद प्रताप सिंह यादव कहते है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव के एमएलए रहने के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने में खासा फायदा पहुंचेगा। राज्य की योगी सरकार की नीतियों पर सवाल उठा कर पार्टी को मजबूती मिलेगी। अखिलेश के उत्तर प्रदेश की राजनीति करने से 2024 संसदीय चुनाव में पार्टी को खासा फायदा मिलने की उम्मीद भी बनेगी । अखिलेश के करहल विधानसभा सीट से निर्वाचित होने के बाद कयास लगाये जाने लगे थे कि सपा अध्यक्ष प्रदेश की राजनीति करेंगे या फिर केंद्र की । जाहिर है कि इसके लिए उन्हें एमपी एमएलए किसी एक सीट से त्यागपत्र देना जरूर था और आज वह भी वही जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आजमगढ़ संसदीय सीट से इस्तीफा देने का निर्णय करते हुए अपना इस्तीफा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को जाकर सौप दिया । होली के मौके पर अखिलेश यादव जब अपने पैतृक गांव सैफई आए थे । उस समय उन्होंने करहल विधानसभा सीट से जुड़े जुड़े हुए सेक्टर प्रभारी जिला पंचायत सदस्य, बूथ प्रभारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक सैफई में ली थी जहां पर सभी ने एकजुट होकर के उनसे करहल विधानसभा सीट को बरकरार रखने की अपील की थी। अखिलेश ने हालांकि इस बैठक में कोई निर्णय नहीं सुनाया था लेकिन यह जरूर कहा था कि कोई भी निर्णय पार्टी हाईकमान के स्तर पर तय किया जाएगा इसी बीच सोमवार को अखिलेश यादव ने आजमगढ़ का भी दौरा किया। जाहिर है अखिलेश यादव ने अपने करीबियों को इस बात के लिए मना लिया होगा कि वे अब आजमगढ़ के सांसद के बजाय करहल विधानसभा क्षेत्र से एमएलए रहना चाहते हैं । इसलिए त्वरित ढंग से ठीक दूसरे दिन ही मंगलवार को अखिलेश यादव ने अपना इस्तीफा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को जा करके सौंप दिया है।
बतौर सांसद अखिलेश यादातर समय दिल्ली में गुजारते थे। इसके चलते उनपर यूपी से दूरी बनाने का कई बार आरोप भी लगता रहा है। इस बार मिली हार के बाद अखिलेश ने अपनी रणनीति बदली है। अब वह दिल्ली की राजनीति करने की बजाय यूपी की राजनीति पर ही फोकस करना चाहते हैं। अखिलेश यादव अभी तक आजमगढ़ से लोकसभा के सदस्य थे। अब उनके इस्तीफे के बाद यहां उप-चुनाव होंगे। अखिलेश को भरोसा है कि यह सीट दोबारा समाजवादी पार्टी जीत लेगी। उनका यह भरोसा हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम को देखते हुए बना है। सपा ने आजमगढ़ की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की है। लोकसभा से इस्तीफा देने से साफ है कि अब 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं। यूपी में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। अखिलेश अब कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। यही कारण है कि अब उनका फोकस सिर्फ और सिर्फ यूपी पर रहेगा। 2017 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद अखिलेश यादव वापस दिल्ली की राजनीति में कूद पड़े थे। इसके चलते यूपी में विपक्ष काफी कमजोर हो गया था। इसका नतीजा था कि 2019 और फिर 2022 में भाजपा के आगे विपक्ष पस्त हो गया। अब अखिलेश अपनी पुरानी गलती नहीं दोहराना चाहते हैं। 1999 में पहली दफा कन्नौज से सांसद निर्वाचित होने के बाद अखिलेश यादव ज्यादातर दिल्ली की राजनीति में ही केंद्रित रहे हैं लेकिन 2022 विधानसभा के चुनाव में उन्होंने पहली दफा उतरने का फैसला लिया । जिसके तहत अखिलेश यादव मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से उतरे और जीत हासिल की। अभी तक अखिलेश यादव संसदीय राजनीति को केंद्र बिंदु बनाए हुए थे लेकिन अब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रतिनिधि बनकर के भारतीय जनता पार्टी को घेरना का बड़ा मौका अखिलेश यादव के हाथ लग गया है, आने वाले दिनों में अखिलेश यादव सड़को पर संघर्ष कर सपा को पुराने दौर में लाने में अपने को खपायेंगे।
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