पटना, केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान , पटना द्वारा प्रख्यात मज़दूर नेता की स्मृति में ' बजट-2022, केंद्रीय व राज्य बजट के राजनीतिक फलितार्थ' विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। विमर्श में खासी संख्या में पटना के नागरिक, अकादमिक जगत से जुड़े प्रतिनिधि , सामाजिक कार्यकर्ता, सहित मज़दूर-किसान संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद थे। वक्ताओं ने बताया कि कैसे केंद्र व राज्य बजट में लोगों की जीवन स्थिति में बेहतरी के लिए, रोजगार पैदा करने के लिए कुछ नहीं किया गया है। शिक्षा , स्वास्थ्य के बजट में कटौती की गई है। आगत अतिथियों का स्वागत केदारदास संस्थान के सचिव अजय कुमार जबकि संचालन अनिल कुमार राय ने किया। पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य नवल किशोर चौधरी ने अपने संबोधन में कहा " यदि सीधे-सीधे कहा जाए तो केंद्रीय व बिहार बजट दोनों जनपक्षधर कतई नहीं बल्कि जनविरोधी है। बजट जिस सरकार का होता है वह उसका राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक दर्शन हुआ करता है। और उसी दर्शन से प्रभावित उसकी विचारधारा और नीति होती है और उसी नीति को लागू करने वाला इंस्ट्रूमेंट होता है बजट। यह बजट स्टेट स्ट्रक्चर से जुड़ा होता है यह बुनियादी बात हमें समझना चाहिए। इस बजट में इम्पोर्ट सब्सक्रिप्शन के बदले इम्पोर्ट लिबरलाइजेशन को लागू की बात की जा रही है। पब्लिक सेक्टर को समाप्त किया जा रहा है। एसेट मॉनिटाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, एडमिनिस्टर्ड प्राइसेस के बदले मार्केट द्वारा कीमत तय करना यह सब बजट के माध्यम से पूरा किया जा रहा है। बजट एक खास वर्गीय हितों की पूर्ति करता है। कैपिटल एकपेन्डीचर 35 प्रतिशत है। सरकार का विकास का मॉडल ट्रिकल डाउन वाला है यानी विकास रिस-रिस कर पहुंचने वाला है। इनकम का दो ही तरीका है या तो रोजगार दें या सीधे कैश ट्रांसफर करें।" अर्थशास्त्र के शोधार्थी सचिन ने अपने संबोधन में कहा " यदि केंद्रीय बजट नीतिगत स्तर पर दिशा निर्धारित कर देता है तब राज्य के लिए उससे अलग कर पाना मुश्किल होता है। अभी जिस नरेगा को रोजगार प्रदान करने वाला माना जाता है । उसके एक प्रमुख कार्यकर्ता ज्यां देज के अनुसार नरेगा से मात्र 10 प्रतिशत लोगों को फायदा होता है। आज हमारे बजट पर साम्राज्यवाद का गहरा प्रभाव है। यह ओस प्रभाव है जिसमें आप गरीबों के पक्ष में कोई काम नहीं कर सकते।"
शनिवार, 12 मार्च 2022
बिहार : केंद्र व राज्य दोनों बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य में कटौती की गई है।
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