इमरती तथा लंबी मूली व लौकी के लिए विख्यात जौनपुर में दलों के बीच कांटे की टक्कर है। यहां की नौ विधानसभा सीटों में कहीं अपना दल-सपा तो कहीं भाजपा-सपा तो कहीं भाजपा-सपा व बाहुबलि धनंजय सिह के बीच टक्कर है। बाजी किसके हाथ लगेगी इसका फैसला तो 10 मार्च को होगा, लेकिन यहां मड़ियाहं विधानसभा में भाजपा व अपना दल गठबंधन के डा आरके पटेल के मैदान में होने से रोचक मुकाबला है। गोपालापुर के उमाकांत बरनवाल का कहना है कि डा आरके पटेल सिर्फ डाक्टर ही नहीं समाजसेवी भी है। वे हर मरीज को अपना समझते है और इलाज के दौरान धन की कमी आड़े नहीं आती। उनके व्यवहार से हर तबका प्रभावित है, इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलता दिख रहा है
भारत में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर गोमती नदी के किनारे बसा ऐतिहासिक रूप से चर्चित शहर है। यहां की खासियतें गिनने लगेंगे तो अंगुलियों की पोर कम पड़ जायेगी। जहां चमेली के तेल, तंबाकू की पत्तियों और मिठाइयों के लिए लिए पूरे देश दुनिया में प्रसिद्ध है। बात मूली की किया जाएं तो उसकी लंबाई इंच की जगह फीट में नापा जाता है और जहां की भूमि ऐसी उर्वरा हो कि गांव की खेतो से फसल के साथ डॉक्टर-इंजिनियर, आइएएस-पीसीएस और वैज्ञानिक उगते हो उस जौनपुर की इमरती की नरमी तो सात समुंदर पार तक मशहूर है। फिरहाल, इस जिले में कुल 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। जिसमें बदलापुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हनी, मुंगरा बादशाहपुर, मछलीशहर, मड़ियाहू, जफराबाद व केराकत शामिल हैं। इन सीटों पर सात मार्च को मतदान होना है, इसके लिए 121 प्रत्याशी मैदान में हैं। कुछ स्थानों पर चुनावी समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं, लेकिन अधिकांश सीटों पर भाजपा-सपा की लड़ाई है। कुछ सीटों पर कांग्रेस और बसपा भी मुकाबले को रोचक बना रही हैं। हालांकि, एक-एक सीट पर निषाद पार्टी, सुभासपा और अपना दल और जेडीयू भी लड़ाई में हैं। कहते है जिले की नौ विधानसभा सीटों में से जो ज्यादा सीटें जीतता है, सत्ता उसी की बनती है। पिछले विधान सभा चुनाव में जौनपुर जिले की 9 सीटों में से भाजपा को केवल 4 पर ही जीत मिली थी. जिले में तीन विधायक सपा और एक बसपा का था. यहां से 2019 के लोक सभा चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. ये सीट बसपा ने जीती थी. इसके साथ ही बसपा ने लोक सभा चुनाव में लालगंज और घोसी सीट पर भी कब्जा किया था.
मड़ियाहूं विधानसभा
मड़ियाहूं विधानसभा में इस बार रोचक मुकाबला है। यहां अपना दल एस और भाजपा गठबंधन से भदोही के डॉक्टर आरके पटेल व सपा से मुंगरा बादशाहपुर से विधायक सुषमा पटेल के बीच आमने-सामने की टक्क्र है। खास यह है कि शनिवार को भाउपुर-गोपालापुर में अनुप्रिया पटेल की सभा में उमड़ी भीड़ से लौट रहे जगदीश पटेल ने तो दावे के साथ कहा इस बार भी भगवा फहरेगा। जबकि गोपालापुर के उमाकांत बरनवाल का कहना है कि डा आरके पटेल सिर्फ डाक्टर ही नहीं समाजसेवी भी है। वे हर मरीज को अपना समझते है और इलाज के दौरान धन की कमी आड़े नहीं आती। उनके व्यवहार से हर तबका प्रभावित है, इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिल रहा है। बता दें, मड़ियाहूं सीट पर भाजपा और अपना दल यस का गठबंधन था और इस सीट पर लीना तिवारी 2017 में विधायक चुनी गई थी। लीना तिवारी ने सपा के श्रद्धा यादव को 11350 वोटों के मार्जिन से हराया था। बसपा से आनंद कुमार दुबे उम्मीदवार बनाए गए हैं। जबकि अच्छे लाल आप और कांग्रेस से मीरा रामचंद्र पांडेय है. मड़ियाहूं विधानसभा क्षेत्र में कुल तकरीबन साढ़े तीन लाख मतदाता हैं। अनुमानों के मुताबिक इस विधानसभा क्षेत्र में पटेल मतदाताओं की बहुलता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और यादव मतदाता भी मड़ियाहूं विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में मौर्य के साथ ही मुस्लिम मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं।
बीजेपी का गढ़ है मड़ियाहूं
मड़ियाहूं विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रही है. पिछले सात में से चार दफे बीजेपी के उम्मीदवार जीते हैं. 2017 में बीजेपी के गठबंधन सहयोगी अपना दल की लीना तिवारी विधायक निर्वाचित हुई थीं.मड़ियाहूं, जौनपुर जिले का एक कस्बा और नगर पंचायत है. नानवाग वंश के देवता मांडव के नाम पर इस नगर का नाम मड़ियाहूं नानवाग राजा नान राव ने रखा था. ये विधानसभा सीट ग्रामीण इलाकों की सीट है. इस विधानसभा क्षेत्र की अधिकतर आबादी के ललिए आजीविका का मुख्य साधन कृषि है.
एक नजर मड़ियाहूं विधानसभा पर
कुल मतदाता- 3,35,772
ब्राह्मण- 62,342
पटेल- 65,946
यादव- 38,000
अनुसूचित जाति- 35,000
मुस्लिम- 27,000
क्षत्रिय- 20,400
मौर्य- 14,000
सरोज- 12,000
चौहान- 12,000
पाल- 6,000
जौनपुर विधानसभा
मुस्लिम मतदाता बहुल जौनपुर विधानसभा सीट पर मतों के ध्रुवीकरण ने 2017 के चुनाव में कमल खिलाया था। प्रदेश सरकार में मंत्री गिरीश चंद्र यादव पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे। सपा से गठबंधन के बावजूद दोबारा मैदान में उतरे कांग्रेस के सिटिंग विधायक नदीम जावेद को मात दे दी थी। इस बार के चुनाव में यहां से बीजेपी ने गिरिश चंद्र यादव, सपा ने अरशद खान, बसपा ने सलीम, कांग्रेस ने नदीम जावेद को प्रत्याशी बनाया है. सियासी समीकरणों के हिसाब से गिरीश पर दांव लगाना भाजपा के लिए मुफीद रहा था। इस बार भी 2022 के चुनाव में मंत्री गिरीश की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जीत को दोहराना उनके लिए चुनौती है। शाही पुल से गुजर रहे जय किशुन राजभर एवं शकील अहमद आपस में बात कर रहे हैं। वोट की चर्चा करने पर बिफर पड़ते हैं। जय किशुन कहते हैं- क्या बताये साहब, बहुत विधायक व सांसद देख लिये। जाम की समस्या जस की तस है। जेसीपी चौराहा, शाहंगज रोड पर ओवरब्रिज एवं बाईपास रिंग रोड की मांग अरसे से की जा रही लेकिन किसी के कान में जू तक नहीं रेंग रहा। किसी भी मुहल्ले में जाइए, विकास पता चल जायेगा। 15 साल में शहर की अधिकांश सड़के जस की तस है। दिनेश यादव कहते है मुददों की बात करें तो यहां बिजली कटौती अब मुद्दा ही नहीं रहा। बेरोजगारी, कल कारखानों का अभाव जरुर है। लेकिन अब जाति व व्यक्ति आधारित वोट मिलते है। इसलिए प्रत्याशी की कर्मठता व योगदान को देखकर ही वोट करेंगे। संजय जासवाल कहते है वास्तव में यहां जातिवादी राजनीति का गणित चलेगा। लंबे समय में यहां कोई बड़ा कल कारखाना नहीं लगा है। लेकिन चुनाव के समय मुद्दे गायब हो जाते है, जातिवादी ही चलती है। यादव ब्राह्मण व क्षत्रिय बाहुल क्षेत्र होने के चलते इस सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी रहेगा। क्योंकि भाजपा से गठबंधन करने वाली अपना दल की अनुप्रिया पटेल का समर्थन है। बनिया, ठाकुर, ब्राह्मण, पासी, मौर्या आदि वोट भाजपा के पक्ष में जा सकता है। बता दें, जौनपुर विधानसभा सीट के मतदाता ने 1980 के बाद से किसी भी नेता को लगातार दो बार अपना विधायक नहीं चुना है. 1977 और 80 में कांग्रेस के कमला प्रसाद सिंह लगातार दो बार निर्वाचित हुए थे. उस समय यह सीट कांग्रेस की मजबूत गढ़ हुआ करती थी. 2012 में 22 साल बाद नदीम जावेद ने कांग्रेस को जीत दिलाई थी. यहां से सपा दो बार 1996 और 2007 में जीती थी. बसपा सिर्फ एक बार 1993 में जीती थी. भाजपा को 2002 में पहली बार सुरेंद्र प्रताप ने जीत दिलाई थी. इसके बाद 2017 में जीती है.
शाहगंज विधानसभा सीट
वैसे तो जातिगत आंकड़ों के हिसाब से ये सीट बसपा की है। लेकिन पिछले 2 दशक से इस सीट पर सपा का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार काटे की टक्कर है। शाहगंज से सपा के शैलेंद्र यादल ललई विधायक हैं. उन्होंने सुभासपा के राणा अजीत प्रताप सिंह को 9,162 मतों से हराया था. 2017 में यहां 31.65 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार के चुनाव में बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी ने रमेश सिंह, सपा ने शैलेंद्र यादव ललई, बसपा ने इंद्रदेव यादव, कांग्रेस ने परवेज आलम को प्रत्याशी बनाया है.
मल्हनी विधानसभा सीट
मल्हनी विधानसभा सीट से 2017 में सपा के पारसनाथ यादव ने जीत हासिल की. उन्होंने निशाद पार्टी के धनंजय सिंह को 21,210 मतों से हराया. इस सीट पर 2017 में 60.04 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने यहां से डॉक्टर केपी सिंह, सपा ने लकी यादव, बसपा ने शैलेंद्र यादव, कांग्रेस ने पुष्पा शुक्ला और जनता दल यूनाइटेड ने धनंजय सिंह को प्रत्याशी बनाया है. 2012 में भी पारसनाथ यादव विधायक रहे. वहीं 2020 में उनके निधन के बाद सपा के लकी यादव विधायक निर्वाचित हुए. यह विधानसभा सीट बाहुबली नेता और पूर्व सांसद धनंजय सिंह की वजह से चर्चा में बनी रही है। 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में दिग्गज सपा नेता पारसनाथ यादव को मिनी मुलायम भी कहा जाता था, वहां से उन्होंने जीत दर्ज की थी। पारसनाथ यादव के निधन के बाद यहां उपचुनाव हुआ और उसके बाद उनके पुत्र लकी यादव ने इस विधानसभा पर जीत दर्ज की। यह विधानसभा सीट 2008 में अपने अस्तित्व में आयी थी। मल्हनी विधानसभा में लगभग साढ़े तीन लाख के करीब मतदाता है। जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 79 हजार 960 है। तो वहीं महिला मतदाताओं की संख्या 161039 है। इस विधानसभा पर यादव मतदाता की संख्या ज्यादा है वहीं 7000 दलित एवं मुस्लिम के साथ-साथ अन्य वर्ग के मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। इस विधानसभा सीट से 1952 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की, 1957 में पुनः कांग्रेस के राम लखन सिंह ने जीत दर्ज की, 1962 में जनसंघ के कुंवर श्रीपाल सिंह यहां से जीते, 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी राज बहादुर सिंह ने जीत दर्ज की ,1969 में कांग्रेस के विधायक ने जीत दर्ज की ,1974 और 1977 में जनता पार्टी से राज बहादुर यादव दो बार विधायक रहे। 1977 के कार्यकाल के दौरान विधायक राज बहादुर का निधन हो गया, 1978 में उपचुनाव में कांग्रेस के सूर्यनाथ उपाध्याय एक बार फिर जीतकर विधायक बने, वहीं 1993 बसपा से लाल जी विधायक बने। 1996 में इस सीट से सपा के श्रीराम यादव ने जीत हासिल की, 2002 में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार बाहुबली धनंजय सिंह विधायक बने। 2007 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाईटेड के सिंबल पर धनंजय सिंह दोबारा विधायक बनकर लखनऊ पहुंचे। 2007 के बाद धनंजय सिंह जौनपुर से सांसद चुने गए। 2009 के उपचुनाव में अपने पिता राजवीर सिंह को विधायक बनवाया। 2012 के चुनाव में सपा के पारसनाथ यादव विधायक बने। 2017 में इस सीट से पारसनाथ यादव ने जीत दर्ज कर उन्होंने धनंजय सिंह को चुनाव में शिकस्त दी। 2019 में तत्कालीन विधायक पारसनाथ यादव के निधन के बाद यह सीट खाली हुई। 2020 के उपचुनाव में पारसनाथ यादव के बेटे लकी यादव जीतकर विधायक बने।
मुंगरा बादशाहपुर
मुंगरा बादशाहपुर विधानसभा सीट से 2017 में बसपा की सुषमा पटेल विधायक बनीं. उन्होंने बीजेपी की सीमा को 5,920 मतों से हराया. इस सीट से 2012 में बीजेपी की सीमा द्विवेदी विधायक बनीं. इस सीट पर पिछली बार 57.72 प्रतिशत मतदान हुआ थाी. बीजेपी ने अजय शंकर दुबे, सपा ने पंकज पटेल, बसपा ने दिनेश शुक्ला और कांग्रेस ने डॉक्टर प्रमोद सिंह को प्रत्याशी बनाया है.
मछली शहर विधानसभा
मछली शहर (सुरक्षित) विधानसभा सीट से सपा के जगदीश सोनकर विधायक हैं. उन्होंने बीजेपी की अनीता को 4,179 मतों से हराया. पिछली बार 2017 में 57.06 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने मिही लाल गौतम, सपा ने डॉक्टर रागिनी सोनकर, बसपा ने विजय पासी और कांग्रेस ने माला देवी सोनकर को प्रत्याशी बनाया है.
जफराबाद विधानसभा
जफराबाद विधानसभा सीट से बीजेपी के हरेंद्र प्रसाद सिंह विधायक हैं. उन्होंने 2017 में सपा के सचींद्र नाथ को 24,865 मतों से हराया था. 2017 में यहां 56.07 प्रतिशत मतदान हुआ था. यहा्ं से 2012 में सपा के सचींद्र नाथ त्रिपाठी, 1996,2002, 2007 में बसपा के जगदीश नारायण विधायक रहे. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने डॉ. हरेंद्र प्रसाद सिह, सुभासपा ने जगदीश राय, बसपा ने डॉक्टर संतोष मिश्रा और कांग्रेस ने लक्ष्मी नागर को प्रत्याशी बनाया है. जफराबाद में 1,94,931 पुरुष और 1,73,267 महिला मतदाता हैं.
केराकत विधानसभा
केराकत (सुरक्षित) विधानसभा सीट से बीजेपी के दिनेश चौधरी विधायक हैं. उन्होंने सपा के संजय कुमार सरोज को 15,259 मतों से हराया. इस सीट पर 2017 में 58.46 प्रतिशत मतदान हुआ था. यहां से 2012 में सपा के गुलाब चंद, 2007 में बसपा के बिरजू राम, 2002 में बीजेपी के सुमरू राम सरोज, 1996 में बीजेपी के अशोक कुमार, 1993 में बसपा के जगन्नाथ चौधरी , 1991 में बीजेपी के सुमरू राम और 1989 में जनता दल के राजपति विधायक बने. इस बार के चुनाव में यहां से बीजेपी ने दिनेश चौधरी, सपा ने तूफानी सरोज, बसपा ने डॉक्टर लाल बहादुर और कांग्रेस ने राजेश गौतम को प्रत्याशी बनाया है. यहां करीब चार लाख मतदाता हैं.
बदलापुर
यहां भाजपा- निवर्तमान विधायक रमेश चंद्र मिश्रा, सपा- बाबा दुबे, बसपा- मनोज, कांग्रेस- आरती सिंह, आप- राहुल शर्मा है। यहां इस बार कांटे का मुकाबला देखने को मिल रहा है। माना जा रहा है कि इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर हो सकती है। वर्ष 2012 में विधायक रहे ओम प्रकाश दुबे बाबा वर्ष 2017 में भाजपा प्रत्याशी रमेश चंद्र मिश्रा से हार का हिसाब बराबर करने की कोशिश में लगे हैं। वहीं, सिटिंग विधायक रमेश चंद्र मिश्रा भी लगातार दूसरी बार रिकॉर्ड बनाने की तैयारी किए हैं। बसपा भी दोनों दिग्गजों के सियासी समीकरण बिगाड़ने के लिए मनोज तो कांग्रेस ने आरती सिंह को मैदान में उतारा है।
--सुरेश गांधी--
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