यूक्रेन में ऑक्सिजन की कमी
पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अलार्म जारी किया था कि यूक्रेन में ऑक्सिजन की कमी हो रही है। यह ऑक्सिजन की कमी कोरोना वाइरस के कारण नहीं है बल्कि रूसी हमले के कारण हुई है। यह ऑक्सिजन की कमी पूरी तरह से टाली जा सकती थी यदि शांति रहती और युद्ध के बजाय संवाद से रूस और यूक्रेन ने अपने मसले सुलझाए होते। सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका शोभा शुक्ला ने कहा कि एक ओर सरकारें कहती हैं जन स्वास्थ्य आपदा है और सतत विकास लक्ष्य पूरे करने हैं और दूसरी ओर ऐसी स्थिति पैदा कर रही हैं कि लोग गम्भीर ख़तरा उठाने के लिए मज़बूर हैं, प्राणघातक स्थिति में घिर रहे हैं। ऐसे में क्या युक्रैन-रूस हमले से जान बचा के भागते लोगों से, कोरोना वाइरस से बचाव की बात करना कितना बेमायने है - आप स्वयं निर्णय लें। शांति नहीं रहेगी तो न स्वास्थ्य सुरक्षा रहेगी न सतत विकास। बल्कि युद्ध के कारण समुदाय एक लम्बे अरसे तक पीड़ा झेलता है क्योंकि जो भी विकास युद्ध के पूर्व हुआ होता है वह पलट जाता है या ध्वस्त हो चुका होता है। 2016 में रेड क्रॉस के तत्कालीन अध्यक्ष पीटर माउरर ने कहा था कि तब से 3 साल पहले तक 11 देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था के ऊपर 2400 हमले हो चुके थे। सरहद बग़ैर डॉक्टर (डॉक्टर विधाउट बॉर्डर) की तत्कालीन अध्यक्ष जोआन लियु ने कहा था कि 2016 में सीरिया में 10 दिन के भीतर 300 से ऊपर हवाई हमले हुए थे। उनके अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान, सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक, साउथ सूडान, सीरिया, यूक्रेन और येमन में स्वास्थ्य व्यवस्था पर बमबारी करना, उनको लूट लेना, या जला के राख कर देना, स्वास्थ्यकर्मी और रोगियों को डराना-धमकाना, और यहाँ तक की रोगियों को उनकी अस्पताल शैय्या पर गोली मार देना रिपोर्ट हुआ था। सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने कही थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच में से चार स्थायी सदस्य देश ही इन हमलों के लिए ज़िम्मेदार रहे हैं। अब आप ही सोचें यदि वह देश जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं वहीं युद्ध अपराध करेंगे, तो उनकी जवाबदेही कैसे होगी, युद्ध विराम कैसे होगा? संयुक्त राष्ट्र की ऐसे में क्या भूमिका होनी चाहिए?
हम लोग कैसे भूल सकते हैं कि इसराइल ने ग़ाज़ा पर हमला करके हज़ारों लोगों को मृत किया था। अमरीका की सेना ने अफ़ग़ानिस्तान में सरहद बग़ैर बॉर्डर के अस्पताल पर हमला किया था। मानवाधिकार के लिए चिकित्सक (फ़िज़िशियंस फ़ोर ह्यूमन राइट्स) के अनुसार, जब से सीरिया विवाद शुरू हुआ है तब से २५० स्वास्थ्य सेवा केंद्रों पर ३६० से अधिक हमले हो चुके हैं। ७३० से अधिक स्वास्थ्यकर्मी मृत हो चुके हैं। तब यह हालत थी कि बमबारी और हमलों के कारण आधे से अधिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र बंद हो चुके थे या पूरी तरह से सक्रिय नहीं थे। इसी तरह की तबाही और स्वास्थ्य व्यवस्था को चकनाचूर किया गया था येमन में। ६०० से अधिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र बंद हो गए थे - या तो हमले के कारण या स्वास्थ्यकर्मी ही पर्याप्त नहीं थे या दवा आदि की कमी थी। कुछ महीने पहले तक, अफ़ग़ानिस्तान में यह हालत थी कि ज़रूरी जीवनरक्षक दवाएँ ख़त्म हो गयी थी और स्वास्थ्यकर्मी को उनके पदों पर कार्यरत रखना मुश्किल हो रहा था। इथियोपिया के टिगरे क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं जैसे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन तक को भीतर जाने की अनुमति नहीं मिल रही थी। जुलाई २०२१ से वहाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन ज़रूरी दवाएँ और स्वास्थ्य सम्बन्धी राहत सामग्री पहुँचवाने के लिए प्रयासरत रहा है पर उसको अनुमति ही नहीं मिल रही थी। यदि स्वास्थ्य अधिकार सर्वोपरि है तो सरकारों को इस पर खरा उतरना पड़ेगा। सरकारों द्वारा लिए गए निर्णय से कोई भी इंसान अनावश्यक पीड़ा न झेले। हम लोग यह कैसे भूल सकते हैं कि कोविड महामारी के पहले भी, हमारे देशों में आबादी के एक बड़े भाग को ऐसे हालात में रहने पर मजबूर किया गया था कि न तो साफ़ पीने का पानी मुहैया था, न स्वच्छता, न पौष्टिक आहार और न ही स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा। समाज में जो ग़ैर-बराबरी और सामाजिक अन्याय व्याप्त है, उसको अंत किए बिना सबका सतत विकास कैसे मुमकिन है? शांति और युद्ध विराम के बिना न सिर्फ़ स्वास्थ्य अधिकार बल्कि सतत विकास और मानवाधिकार की सभी बातें बेमायने हैं। संयुक्त राष्ट्र को अधिक प्रभावकारी भूमिका में आना ही होगा जिससे कि युद्ध जैसी वीभत्स स्थिति कहीं भी उत्पन्न ही न हो।
बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
(विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक से पुरस्कृत बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) से जुड़े हैं।
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