पटना, विश्वप्रसिद्ध मार्क्सवादी चिंतक व लिटररी थियोरिस्ट एजाज़ अहमद के श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन पटना के अदालतगंज स्थित केदारभवन में तीन संगठनों -केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान, भारतीय सांस्कृतिक सहयोग व मैत्री संघ तथा अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना- द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। श्रद्धाजंलि सभा में शहर के बुद्धिजीवी, रँगकर्मी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि उपस्थित थे। आगत अतिथियों का स्वागत अजय कुमार ने किया। सर्वप्रथम एजाज़ अहमद की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया। मौजूद लोगों ने उनकी तस्वीर पर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रद्धासुभन अर्पित किया। विषय प्रवेश करते हुए संचालक जयप्रकाश ने कहा " एजाज़ अहमद जैसा विद्वान विरले हुआ करता है। उन्होंने मार्क्सवादी दृष्टिकोण से राजनीति, समाज, दर्शन साहित्य व कला लभगग सभी अनुशासनों में लिखा और अपने विचार प्रकट किये। एजाज़ एहमद समय से पहले ही चीजों को भांप लेते थे । उन्होंने बहुत पहले यह कहा था कि दलित-पिछड़ों का रोमानीकरण नहीं करना चाहिए। साथ ही यह भी कहा था कि जिस दिन बंगाल में वामपंथियों के सरकार जाएगी उस दिन बड़े पैमाने पर हिंसा होगी। फोर्ड फाउंडेशन सरीखे संस्थानों ने बड़े व्यस्थित तरीके से उत्तर आधुनिकता को बढ़ावा दिया और उसी नजरिये से नाटक, संगीत, चित्रकला जैसे संस्थानों को बढ़ावा दिया जाता रहा है।"
माकपा सेंट्रल कमिटी सदस्य अरुण कुमार मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा " मुझे एजाज़ अहमद का एक लेक्चर सुनने का मौका मिला है। एजाज़ अहमद ने अमेरिका, कनाडा , भारत सहित कई देशों में पढ़ाया। समीर अमीन के बाद एजाज़ अहमद ने सोवियत संघ के विघटन के बाद मार्क्सवाद का बचाव किया। एजाज़ अहमद को पढ़ना आज के समय को समझने के लिए बेहद आवश्यक है।की इंटरव्यू पर आधारित किताब 'नथिंग ह्यूमन इज एलियन टू मी' एक बेहद महत्वपूर्ण किताब है। उनकी पहली किताब 'गजल्स ऑफ गालिब' जिसमें उन्होंने गालिब की नज़्मों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था। जब उत्तरआधुनिकता का हमला शुरू हुआ, पहचान की राजनीति की शुरुआत हुई तब उन्होंने क्लासिकल मार्क्सवादी की तरह, उसकी पद्धतियों का उपयोग कर जवाब दिया। उन्होंने ग्राम्शी के अध्ययन कर हमें समझाने का प्रयास किया। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद उन्होंने हिंदुत्व के उभार को समझने का प्रयास किया। वे कहा करते थे कि लिबरल संस्थाओं का इस्तेमाल कर धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। आर.एस. एस के सैंकड़ों संगठन है जिन्होंने रात दिन सक्रिय रहकर सत्ता तक पहुंचे।" सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सिंह ने अपने संबोधन में कहा " एजाज़ अहमद महान मार्क्सवादी थे। एजाज़ अहमद ने काफी पहले ही रूस व यूक्रेन के संभावित झगड़े के संबन्ध में बताया था। उनका लम्बा लेख ' लिबरल डेमोक्रेसी एन्ड एक्सट्रीम राइट' बेहद महतवर्ण आलेख है। अपने लेखों में बहुत तार्किक रूप आए अपने समय के बारे में लिखते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जिसे कोल्ड वार कहा जाता है वह और कुछ नहीं सोवियत संघ को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा था। एजाज़ एहमद ने पोस्ट मॉडरनिज्म की आलोचना यह कहकर किया कि यह दरअसल प्री मार्कसिज्म है। ऐसे लोगों ने ग्राम्शी तक को पोस्ट मॉडरनिस्ट घोषित कर दिया। क्लारा जेटकिन कहा करती थी फासीवाद वहीं आता है जहां क्रांति फेल कर जाता है। एजाज़ एहमद के अनुसार लिबर्लिज्म के प्रति लेफ्ट के भ्रम के कारण फासीवाद के प्रति जमीन तैयार आता है।"
सुप्रसिद्ध साहित्यकार व उपन्यासकार रणेंद्र ने एजाज़ एहमद के बारे में विचार प्रकट करते हुए कहा " एजाज़ अहमद के लेखन का रेंज उतना बड़ा है और चूंकि अंग्रेज़ी में लिखा था। पाकिस्तान में उन्होंने फिरोज अहमद के साथ मिलकर पत्रिका निकाला करता थे। पाकिस्तान के सौनिक तानाशाह याह्या खान के खिलाफ काम किया। सोवियत संघ के पतन के बाद उन्होंने एडवर्ड सईद के ओरिएंटलिज्म की आलोचना की। वे कहा करते थे मार्क्स असीम है इस कॉटन पूंजीवाद की आलोचना इस कारण अधूरी है जब तक कि उसपर काबू नहीं पा लिया जाता। पूंजीवाद के खत्म होने तक मार्क्सवाद रहेगा। ग्राम्शी को वे समझ रहे थे। कहा करते थे संस्कृति का सहारा लेकर ही वह साम्प्रदायिकता आती यही। हर देश वही फासीवाद मिलता है जिसका वह हकदार हुआ करता है। 'ऑफेंसीव ऑफ द फार राइट' और 'इराक, अफगानिस्तान एन्ड इम्पीरियलिज्म ऑफ आवर टाइम' भी उनकी प्रसिध्द कृति है। एजाज़ अहमद कहा करते थे कि सृजनशीलता एक सामूहिक गतिविधि हुआ करती है। जिया वक्त सबसे अधिक आवश्यकता थी उस वक्त वे चले गए। एकाज़ अहमद के लेखन को कैसे पहुंचाएं यह हमारे लिए चुनौती है। छठे वेतन आयोग ने कैसे पूंजीवाद के विषाणुओं को प्रवेश करता है।" प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में कहा " एजाज़ एहमद ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख मुस्लिम नेताओं मौलाना आज़ाद और जहां अब्दुल गफ्फार खान पर लिखा। उनका वस्तुपरक मूल्यांकन वर्गीय दृष्टिकोण से किया। एजाज़ अहमद हमेशा सही नतीजे ओर उस कारण पहुँचे की उन्होंने मार्क्सवादी पद्धति को कभी नहीं छोड़ा। एजाज़ अहमद ने भारतीय फासीवाद की तुलना इटली व जर्मनी के फासीवाद से करने को सही नहीं मानते थे। उन्होंने ग्राम्शी की पद्धति का इस्तेमाल करते हुए यह सवाल उठाया कि आखिर हिंदुस्तान की जमीन में ऐसी कौन सी कमजोरी थी , कमी थी जिससे साम्प्रदायिक ताकतों को इतनी बढ़त हासिल हो गई ? "
सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने कहा " एजाज़ अहमद ने कहा था कि फासीवाद का मतलब कॉर्पोरेशन और स्टेट का एक हो जाना। 1932 में लिखे इस लेख में ये बात लिखी गई थी। उसे ही एजाज़ अहमद याद दिला रहे थे। आज इलेक्टोरल पूंजी के वक्त यह बात साबित होती है। एजाज़ अहमद भारत की नागरिकता लेने का प्रयास कर रहे थे लेकिन उन्हें नहीं मिला। अलगाव की भावना इस प्रकार सृजित किया गया कि किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है। जब 1947 में दंगा हुआ स्टेट भाग गया था, 1984 व भोपाल गैस त्रासदी के वक्त स्टेट भाग गया था। 1978 में लिखी एडवर्ड सईद किताब की एजाज़ अहमद ने जमकर मुखालफत की। लंदन से देखते हैं तो जो देश वेस्ट एशिया नजर आता है तो यहां से वही नजर नहीं आता। मार्क्स को ओरियनटलिस्ट बताने पर एजाज़ ने एतराज जताया था। तीसरी दुनिया के देश के बारे में बताया था कि पाश्चात्य दृष्टि से देख रहे थे।" केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान, पटना के महासचिव नवीनचंद्र ने कहा " एजाज़ एहमद की समझ को अपनी समझ बनाना एक कठिन पर जरूरी काम उसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। उन्होंने क्लास कंसेप्ट के आधार पर विश्लेषण की बात की थी। जहां भी उसे संकुचित किया जाएगा। दिक्कत होगी। क्लास से पीछे हटेंगे तो राजनीति ग़ैरवर्गीय हो जाएगी। ऐसी राजनीति ग़ैरमज़दूर वर्गीय होगी तो सांगठनिक प्रक्रिया भी बुर्जुआ हो जाएगी। सांगठनिक प्रक्रिया पूंजीवादी होगी तो व्यवहार में व्यक्तिवाद, जातिवाद, संसदवाद को प्रवेश मिलेगा।" सभा को गोपाल शर्मा एवं ए. आई.एस. एफ नेता अमन ने भी संबोधित किया। इस श्रद्धाजंलि सभा में मज़दूर व किसान संगठन के प्रतिनिधि, छात्र व युवा संगठन के नेता, बुद्धिजीवी इकट्ठा थे। अंत में श्रद्धाजंलि सभा में एक मिनट का मौन रखकर एजाज़ अहमद को श्रद्धाजंलि अर्पित किया गया। प्रमुख लोगों में थे इसक्फ के महासचिव दिग्विजय रवींद्र नाथ राय ,जफर इकबाल, विजय कुमार चौधरी , विश्वजीत कुमार , अमरनाथ, एटक के महासचिव ग़ज़नफ़र नवाब, अभय पांडे, सीपीआई नेता विजय नारायण मिश्रा, पुष्पेंद्र शुक्ला, सीपीएम नेता गोपाल शर्मा, कपिलदेव वर्मा, विकास, हरदेव ठाकुर।
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