नयी दिल्ली 29 मार्च, राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कहा कि जल संकट दुनिया के लिए सबसे बड़ा संकट बन कर धीरे धीरे भयानक रूप ले रहा है और आने वाले समय में वैश्विक संघर्ष का बड़ा कारण बन सकता है इसलिए समय रहते इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की सख्त जरूरत है। श्री कोविन्द ने मंगलवार को यहां तीसरे राष्ट्रीय जल पुरस्कार समारोह में जल शक्ति अभियान ‘कैच द रेन अभियान 2022’ की शुरुआत करते हुए कहा कि जो परिस्थितियां पैदा हो रही है उसे देखते हुए कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने तो यहां तक कह दिया है कि भविष्य में यह अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष का एक प्रमुख कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि मानवता को ऐसी विकट स्थितियों से बचाने के लिए सतर्क रहने और समय पर कदम उठाने की आवश्यकता है और इस बात पर खुशी जताई कि भारत इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रहा है। उन्होंने कहा कि जल का मुद्दा जलवायु परिवर्तन जैसे और भी बड़े संकट का एक हिस्सा है। जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ तथा सूखे की स्थिति लगातार और अधिक गंभीर होती जा रही है। हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। ऐसे परिवर्तनों के गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका किसानों, महिलाओं तथा गरीबों के जीवन पर और भी अधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है। श्री कोविंद ने कहा कि जल संरक्षण के काम में हर एक व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी के लिए स्थानीय जनता को प्रेरित करने में जिलाधिकारियों और ग्राम सरपंचों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। उनका कहना था कि जिस तरह देश में इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है उसी प्रकार सभी को इतिहास का सबसे बड़ा जल संरक्षण अभियान चलाने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने मानव को जल संसाधनों का वरदान दिया है। भारतीय संस्कृति में नदियों को माता के रूप में पूजा जाता है। हमारे पास नदियों की पूजा के लिए समर्पित स्थल हैं जिनमें उत्तराखंड में गंगा व यमुना के लिए, मध्य प्रदेश में नर्मदा के लिए और बंगाल में गंगा-सागर के लिए। इस तरह के धार्मिक अभ्यासों ने हमें प्रकृति से जोड़े रखा है। तालाबों और कुओं के निर्माण को एक पुण्य कार्य माना जाता था लेकिन दुर्भाग्य से आधुनिकता और औद्योगिकीकरण के कारण प्रकृति से हमारा वह जुड़ाव खत्म हो गया है। हम अपना आभार व्यक्त करने और यमुना की पूजा करने के लिए यमुनोत्री की कठिन यात्रा करते हैं लेकिन जब हम राजधानी दिल्ली लौटते हैं तो हम पाते हैं कि वही नदी बेहद प्रदूषित हो गई है और अब यह हमारे शहरी जीवन में उपयोगी नहीं है। श्री कोविंद ने कहा कि शहर को पूरे साल जल देने वाले तालाब और झील जैसे जल स्रोत भी शहरीकरण के दबाव में लुप्त हो गए हैं और इससे जल प्रबंधन अस्त-व्यस्त हो गया है। भूजल का स्तर भी लगातार घट रहा है और इसका स्तर भी नीचे जा रहा है। एक तरफ शहरों को सुदूर इलाकों से पानी लाना पड़ता है तो दूसरी ओर मानसून में सड़कों पर जल भराव हो जाता है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक और कार्यकर्ता भी पिछले कुछ दशकों से जल प्रबंधन के इस विरोधाभास को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते रहे हैं। भारत में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है क्योंकि हमारे देश में विश्व की आबादी का लगभग 18 फीसदी हिस्सा है जबकि हमारे पास केवल चार फीसदी शुद्ध जल संसाधन हैं। जल की उपलब्धता अनिश्चित है और यह काफी सीमा तक वर्षा पर निर्भर करती है। राष्ट्रपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना और पृथ्वी की रक्षा आज की एक प्रमुख चुनौती है जिससे निपटने के लिए सरकार ने एक नया दृष्टिकोण अपनाया है। सरकार ने 2014 में पर्यावरण और वन मंत्रालय का नाम बदला और इसमें 'जलवायु परिवर्तन' जोड़कर एक परिवर्तन की शुरुआत के संकेत दिये हैं। इस काम को आगे बढाते हुए 2019 में दो मंत्रालयों का विलय करके जल के मुद्दे पर एकीकृत एवं समग्र तरीके से काम करने और इसे सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया। राष्ट्रपति ने इस पर प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और जल के कुशल उपयोग, जल स्रोतों के संरक्षण, प्रदूषण को कम करने तथा स्वच्छता की सुनिश्चितता के माध्यम से जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि हालिया वर्षों में सरकार की नीतियों में नदियों के संरक्षण, नदी घाटियों का समग्र प्रबंधन, जल सुरक्षा को स्थायी रूप से मजबूत करने के लिए लंबे समय से लंबित सिंचाई परियोजनाओं को तेजी से पूरा करना और मौजूदा बांधों का संरक्षण शामिल है। उन्होंने जल पुरस्कार विजेताओं के जल प्रबंधन के लिए किए गए अनुकरणीय कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे उदाहरणों के आधार पर हमें जल-सुरक्षित भविष्य को प्राप्त करने की उम्मीद है। उन्होंने पुरस्कार से सम्मानित लोगों को बधाई दी और उनसे सभी के लिए अनुकरणीय तथा प्रेरणा के स्रोत बने रहने का अनुरोध किया।
बुधवार, 30 मार्च 2022
वैश्विक संघर्ष का कारण बन सकता है जल संकट : कोविंद
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