आज़ादी के बाद हमारे देश ने कई मुद्दों पर तेज़ी से तरक्की किया है. कम समय में हम जहां अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन गए वहीं बड़े बड़े बांध और आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल का निर्माण कर हमने विश्व में अपनी काबलियत का लोहा मनवाया है. लेकिन विकास की इस यात्रा में हमने खुले में शौच की प्रवृत्ति को दूर करने में वक्त लगा दिया. दरअसल पूर्ववर्ती सरकारों ने इस मुद्दे को कभी गंभीरता से नहीं लिया जबकि यह स्वास्थ्य और स्वच्छ वातावरण के लिए लाज़मी था. हालांकि अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण का ख्याल रखना हम सब की समान जिम्मेदारी है. ऐसे खुले में शौच करना न सिर्फ हमें बीमार करता है, बल्कि हमारे आसपास के वातावरण को भी दूषित करता है. शहरी क्षेत्रों में खुले में शौच पर लगभग काबू पाया जा चुका है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी देखा जाए, तो शौचालय न होने की वजह से लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की तरह पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के भी दूर दराज़ के कई गांवों में आज भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है और लोग खुले में शौच करते हैं. इसका एक उदाहरण राज्य के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का लमचूला गांव है, जहां लोग घर में शौचालय की सुविधा नहीं होने के कारण खुले में शौच को मजबूर हो रहे हैं. इस संबंध में गांव की एक किशोरी हेमा बताती है कि करीब 600 की आबादी वाले इस गांव के बहुत कम घरों में शौचालय की सुविधा है. अधिकतर आबादी घर में शौचालय की सुविधा से होने वाले लाभों से अनजान हैं. यही कारण है कि वह घर में शौचालय बनाने को प्राथमिकता नहीं देते हैं. इसके नहीं होने के कारण स्वयं उन्हें और परिवार वालों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. सबसे अधिक असुविधा गांव की किशोरियों और महिलाओं को होती है, जिन्हें खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. इससे वह कई प्रकार की बीमारियों का भी शिकार हो जाती हैं.
हेमा का मानना है कि माहवारी के दिनों में डॉक्टर महिलाओं और किशोरियों को साफ-सफाई का ध्यान रखने को कहते हैं, परंतु घर में शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण हमें इस दौरान भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. जहां संक्रमण का खतरा बना रहता है. ऐसे में हमें स्वयं की साफ-सफाई का ख्याल रखना बहुत कठिन हो जाता है. गांव की कई किशोरियां खुले में शौच के कारण गंभीर बीमारियों का शिकार हो चुकी हैं. जिससे उनका आगे का जीवन काफी कष्टकर गुज़रा है. इतना ही नहीं गांव में शौचालय न होने के कारण अधिकतर ग्रामीण खुले में जाते हैं, कई बार तो लोग रास्ते में ही गंदगी कर देते हैं, जिसकी वजह से आने जाने वालों को भी बहुत मुसीबत होती है. इसी कारण से बहुत सी बीमारियां उत्पन्न होती हैं. यहां के लोग बीमार पड़ जाते हैं. अगर इसी प्रकार लोग गंदगी फैलाते रहे तो यहां पर लोगों के बीमार होने की संख्या बढ़ जाएगी और बहुत अधिक यहां बीमारियां भी फैल जाएंगी. अगर बड़े लोग खेतो मे शौच करते है तो छोटे बच्चे भी उन्हें देख कर खेत में ही शौच करते हैं. इस तरह यह गलत आदत नई पीढ़ी को भी लग जाती है. इसे समाप्त करने के लिए गांव के स्तर पर अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है. अगर घर में शौचालय सुविधा नहीं है तो लोगो को दूर कहीं जंगलों में जाना चाहिए, क्योंकि घर के आसपास या फिर खेतों में अथवा रास्तों पर शौच से गंदगी बढ़ेगी, जिससे मच्छर भी पैदा होंगे, जो बीमारीयां पैदा करेंगे. वही मच्छर उड़कर हमारे खाने पर बैठेंगे और खाने को दूषित करेंगे.
खुले में शौच के मुख्यतः दो प्रमुख कारण हैं, एक ओर जहां लोगों में इसके प्रति जागरूकता नहीं है और वह खुले में शौच से होने वाले नुकसान से परिचित नहीं होते हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन की भी लापरवाही है, जो खुले में शौच करने वालों पर जुर्माना तो लगाता है लेकिन घर में शौचालय बनाने के लिए सरकार की ओर से क्या योजनाएं चलाई जा रही हैं और इन योजनाओं को आसानी से कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इसका प्रचार प्रसार उचित माध्यम से करने में नाकाम रहता है. हालांकि वर्तमान की केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और ग्रामीण इलाकों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की. इसके तहत शहर, गांव और कस्बों तक के लोगों में सफाई को लेकर जागरूकता फैलाई गई. लोगों को घरों में शौचालय बनाने के लिए प्रेरित किया गया. इसके लिए सरकार की ओर से शौचालय बनाने के लिए योजनाएं भी चलाई गईं, क्योंकि खुले में शौच से न केवल वातावरण दूषित होता है बल्कि यह यौन हिंसा का एक बड़ा कारण भी बनता है. लोगों को शौचालय का महत्व बताने और उसे बनाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से देश के नामी कलाकार ने फिल्म भी बनाई, जो न केवल हिट हुई बल्कि इससे लोगों में एक सकारात्मक संदेश भी गया. याद रहे कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ तक ग्रामीण भारत में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 1.2 करोड़ शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है. जिससे खुले में शौच मुक्त भारत (ओडीएफ) संकल्पना को साकार किया जा सके. स्वच्छ भारत मिशन 2022 के अंतर्गत केंद्र सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब लोगों के घरों में मुफ्त में शौचालय बनवाने का प्रयास कर रही है. क्योंकि खुले में शौच का एक कारण आर्थिक रूप से कमज़ोर होना भी है. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण भी लोग अपने घरों में शौचालय नहीं बनवा पाते हैं. जिससे लक्ष्य की प्राप्ति अधूरी रहने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
लमचूला, गरुड़
उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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