- · राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित की'आर्मेनियाई जनसंहार : ऑटोमन साम्राज्य का कलंक' किताब
- · बीसवीं सदी के इस पहले जनसंहार से ज्यादातर भारतीय अब तक हैं अनजान
- · पहले के तमाम नरसंहारों की कड़ी निंदा की गयी होती तो बीसवीं सदी में आर्मेनियाई जनसंहार जैसा भयावह कृत्य नहीं हुआ - युरी बाबाखान्यान, भारत में आर्मेनिया के राजदूत
नई दिल्ली। आर्मेनियाई जनसंहार बीसवीं सदी का पहला जनसंहार था जिसमें लाखों आर्मेनियाइयों को जान गंवानी पड़ी थी। दुखद यह है कि 107 साल पहले की इस भयावह घटना से भारत समेत पूरी दुनिया में बहुत कम लोग परिचित हैं। सुमन केशरी और माने मकर्तच्यान ने इस ऐतिहासिक अत्याचार से संबंधित साहित्य को संकलित संपादित कर 'आर्मेनियाई जनसंहार : ऑटोमन साम्राज्य का कलंक' किताब की शक्ल देकर और राजकमल प्रकाशन ने इस किताब को प्रकाशित कर सराहनीय पहल की है। इससे लोग आर्मेनियाई जनसंहार के बारे में जान सकेंगे। इससे आर्मेनिया के लोगों की इंसाफ की उस मांग को भी बल मिलेगा जिसका वे अब भी इंतज़ार कर रहे हैं। ये बातें सामने आई इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आर्मेनियाई जनसंहार की 107वीं बरसी पर आयोजित 'आर्मेनियाई जनसंहार : ऑटोमन साम्राज्य का कलंक' किताब के लोकार्पण में। सरकारी आकड़ों के अनुसार 1915 से 1923 के बीच हुए आर्मेनियाई जनसंहार में करीब 15 लाख लोग मरे गए थे। जबकि अन्य आकड़ों के मुताबिक 60 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। आर्मेनिया दूतावास और राजकमल प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित लोकार्पण में आये लोगों का स्वागत करते हुए आर्मेनिया गणराज्य के राजदूत युरी बाबाखान्यान कहा, यदि 20वीं शताब्दी के पहले हुए तमाम नरसंहारों की कड़ी निंदा की गयी होती तो बाद के अर्मेनियाई जैसे भयावह जनसंहार नहीं हुए होते जिनमें लाखों निर्दोष लोगों ने अपनी जान गवा दी। एक सदी से अधिक समय बीत चूका है अर्मेनियाई लोग अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के बतौरवरिष्ठ कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा, आर्मेनियाई जनसंहार पुरे मानव समाज के लिए शर्म की घटना है । दुखद यह है कि आज के समय में भी देश-विदेश में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. इन घटनाओं के विरोध में आवाज उठाना बहुत जरूरी हो गया है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि के रूप में जे एन यु के रूसी और मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र की अध्यक्ष अर्चना उपाध्याय ने कहा, आज हम यहां 15 लाख अर्मेनियाई लोगों की स्मृति को याद करने के लिए एकजुट हुए हैं। सवाल है कि क्यों मानव समाज में इस तरह के जनसंहार बार- बार होते रहे हैं। मेरे मानना है कि लोगों का सेलेक्टिव होना और अपराधों के प्रति चुप्पी साध लेना सबसे बड़ा कारण है। अगर भविष्य में ऐसे नरसंहारों से बचना है तो आवाज बुलंद करनी होगी। 'आर्मेनियाई जनसंहार: ओटोमन साम्राज्य का कलंक' पुस्तक की सम्पादक सुमन केशरी ने भारत के आर्मेनिया से पुराने संबंधों का हवाला देते हुए कहा, भारत के आर्मेनिया से नजदीकी संबंधों के बावजूद भारत के कुछ मुठ्ठी भर ही लोग आर्मेनियाई जनसंहार के बारे में जानते हैं जो मेरे लिए बड़ी दुखद और चौकाने वाली बात थी। इसलिए मैं इस किताब पर जी -जान से जुट गई । यह किताब इस मामले में भी खास है क्योंकि यह साहित्य के नजरिये से इस जनसंहार को देखती है। पुस्तक की सह सम्पादक माने मकर्तच्यान ने कहा, ‘यह पुस्तक आर्मेनियाई जनसंहार पर 5 वर्षों के अथक प्रयास का फल है। इसका उदेश्य वैश्विक स्तर पर जनसंहारों और अपराधों के खिलाफ चेतना जागृत करना है। ओटोमन साम्राज्य के अधीन रहे हर आर्मेनियाई की ऐसी दुःखदाई स्मृतियाँ हैं जो दिल दहलाने वाली हैं, जिसका बोध आपको इस किताब को पढ़ते हुए होगा’। राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने इस पुस्तक के प्रकाशन को न्याय की माँग का समर्थन करार दिया। उन्होंने कहा, हम आभारी है आर्मेनियाई दूतावास के जिनके सहयोग से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। हमें ख़ुशी है की इस तरह के पुस्तक हमारे यहाँ से आई है।
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