आदर्श ग्राम की संकल्पना महात्मा गांधी ने आजादी से पहले अपनी किताब "हिन्द स्वराज" में की थी. जिसमें उन्होंने आदर्श गांव की विशेषता बताई थी और उसे मूर्त रूप देने की कार्य योजना की भी चर्चा की थी. गांधी के सपनों का गांव आज तक बन तो नहीं सका लेकिन समय-समय पर इसकी योजनाएं जरूर बनाई गई हैं. लोहिया ग्राम, अंबेडकर ग्राम और गांधी ग्राम जैसी कई योजनाएं हैं, जो आदर्श ग्राम बनाने का दावा करती हैं. लेकिन यह धरातल पर कितना साकार हुआ है, यह किसी से छुपा नहीं है. साल 2009-10 में गांवों के विकास की एक योजना "प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना" चलाई गई. इसमें ऐसे गांवों का चयन करना था जहां अनुसूचित जातियों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक हो, इसका उद्देश्य ऐसे समुदायों को सामाजिक रूप से विकसित बनाना है. संविधान में देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता का अधिकार दिया गया है. लेकिन कई जगह यह समानता दिखाई नहीं देती है.
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में ऐसे कई ज़िले हैं जहां अनुसूचित जातियों की संख्या अधिक है. प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रदेश के 13 जिलों में 191 गांव आदर्श गांव बनेंगे. समग्र विकास के लिए केंद्र सरकार सहायतित योजना में समाज कल्याण विभाग को 20 करोड़ 45 लाख 60 हजार रुपये का बजट दिया गया है. भारत सरकार की यह योजना वर्ष 2018-19 में उत्तराखंड को मिली. इस योजना में उत्तराखंड के ऐसे गांव जिसकी जनसंख्या पांच सौ से अधिक हो एवं पचास प्रतिशत अनुसूचित जाति की संख्या हो, को शामिल किया गया है. वर्ष 2019-2020 के लिए 70 गांवों का चयन हुआ है. जिन्हें आदर्श गांव बनाने पहल की जाएगी. केंद्र सरकार की मंशा है कि केंद्र और राज्य के दस विभागों की योजना उक्त गांवों में चलनी चाहिए. हम बात कर रहा है उन गांवों की जो आज तक विकास से वंचित है.
उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित पिंगलो गांव, जो ब्लॉक कपकोट से 50 किलोमीटर की दूरी पर बसा हैं. यह गांव भी एक आदर्श गांव बनने की हैसियत रखता है, इसके लिए गांव में क्या क्या व्यवस्था की आवश्यकता है? लोग कैसे इन समस्याओं से जूझ रहे हैं? यह समझने का प्रयास करते हैं? सबसे पहले बात करते हैं स्कूल की. स्कूल एक ऐसी बुनियादी जरूरत है जिसके ऊपर गांव के सभी बच्चों का जीवन और भविष्य आधारित होता है. अगर गांव में स्कूल होगा तो बच्चे पढ़ने भी जाएंगे और नई-नई चीजें भी सीखेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि उनका मानसिक विकास भी होगा जो सबसे जरूरी है. बच्चा जब बड़ा होने लगता है तो उसके जीवन में सबसे पहले माता-पिता आते है फिर उसके बाद टीचर आते है, जो उसे शिक्षित बनाने और जिंदगी जीने का सलीका सिखाते हैं.
आज तकनीक के इस दौर में एजुकेशन कितनी जरूरी है यह सभी जानते हैं. अगर किसी गाँव में स्कूल नहीं होगा तो उस गाँव में शिक्षा और जागरूकता का स्तर क्या होगा? इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है. जो उम्र बच्चों की पढ़ाई करने की होगी उस उम्र में वह गलत संगत में या नशे की ओर जा रहे होंगे, जो गांव के भविष्य के लिए बहुत बुरा होगा. एक आदर्श गाँव में स्कूल का होना बहुत जरुरी है और उसमें बच्चों की संख्या ज्यादा से ज्यादा हो ये भी जरुरी है. इतना ही नहीं स्कूल के अंदर सभी व्यवस्थाएं होनी चाहिए. जैसे बच्चों विशेषकर किशोरियों के लिए शौचालय, पीने का साफ़ पानी, मध्यान भोजन की व्यवस्था, क्लास में बैठने की व्यवस्था, विद्यालय में लाइट की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे बच्चों को पढ़ने में आसानी हो. विद्यालय में प्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या होने चाहिए, हर विषय के लिए अलग शिक्षक नियुक्त होने चाहिए और स्कूल में इस प्रकार का वातावरण होनी चाहिए कि जिससे गांव की हर लड़की उस स्कूल में पढ़ सके. जो अभी भी इस गांव में अपर्याप्त है.
इसी प्रकार और भी ऐसी बुनियादी ज़रूरतें हैं जो एक आदर्श गांव के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. जैसे गांव में सभी के लिए पीने के पानी की व्यवस्था, अस्पताल की व्यवस्था, पक्की सड़क और रास्तों आदि की व्यवस्था आवश्यक है. क्योंकि यदि गांव में पक्की सड़क नहीं होगी तो न केवल लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा बल्कि इससे विकास के कार्य भी रुक जाते हैं. गांव में सड़क की ऐसी पक्की व्यवस्था होनी चाहिए कि लोग आराम से आ-जा सके. एक आदर्श गांव की कल्पना में उन्नत सुविधाओं से लैस अस्पताल का होना अति आवश्यक है ताकि आपातकालीन समय में बीमार मरीज़ को बेहतर उपचार उपलब्ध कराई जा सके. इसके अतिरिक्त वहां महिला डॉक्टरों समेत विशेषज्ञ डॉक्टर की पर्याप्त संख्या होनी चाहिए, जिससे कि गांव की किशोरी महिला डॉक्टर से अपनी समस्या को खुल कर बता सके, कई बार अस्पताल में महिला डॉक्टर की नियुक्ति नहीं होने की वजह से गांव की महिलाएं और किशोरियां अस्पताल नहीं जाती हैं. अस्पताल में जांच के लिए मशीन होनी चाहिए जहां सभी प्रकार के रोगों की जांच हो सके और उनका इलाज संभव हो सके.
अक्सर हम सभी ने दीवारों पर लिखा नारा पढ़ा होगा कि 'जल ही जीवन है' इसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता है, ऐसे में कल्पना करना मुश्किल है कि जिस गांव में पीने का पानी उपलब्ध न हो, उस गांव के हालात कैसे होंगे? कैसे लोग वहां जीवित रहते होंगे? कितनी दूर से वह लोग पीने के लिए पानी लाते होंगे? ऐसे में गांव की महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता होगा? प्रतिदिन पानी ढ़ो कर लाने से उनके स्वास्थ्य पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता होगा? अगर जल है तो जीवन है. अगर पानी नहीं होगा तो जानवर गाय, भैंस, बकरी आदि कहां से जीवित रहेंगे? पेड़-पौधे भी सूख जाएंगें। इसका पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इन सभी समस्याओं को दूर कर के गांव को एक आदर्श गांव के सपने को मूर्त रूप दिया जा सकता है. इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी सामाजिक और राजनीतिक चेतना की आवश्यकता है. संविधान ने हमें मौलिक अधिकार प्रदान किया है, जिसके माध्यम से आदर्श गांव बनाया जा सकता है, लेकिन यह तब तक हासिल नहीं होगा जब तक समाज शिक्षित और जागरूक नहीं हो जाता है.
पिंगलो, कपकोट
उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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