हाई कोर्ट के द्वारा रोक व सरकार को फटकार
राजधानी पटना में आशा संयुक्त संघर्ष मंच के बैनर तले बिहार विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन करने का निश्चय किया गया था. तब माननीय पटना हाई कोर्ट ने प्रस्तावित 17 फरवरी 22 से होनेवाली आशा हड़ताल पर रोक लगाकर बिहार सरकार को फटकार लगाई थी. माननीय कोर्ट ने कहा कि जल्द से जल्द वार्ता करके मांगो को माने. लेकिन 51 दिनों के बाद भी अभी तक बिहार सरकार के द्वारा किसी तरह से कोई वार्ता नहीं की गयी.इससे 90 हजार आशा कार्यकर्ताओं में आक्रोश व्याप्त है.इनके साथ आशा फैसिलिटेटरों में भी आक्रोश व्याप्त है.
इस संदर्भ में भाकपा-माले विधायक ने 30 मार्च 2020 को सीएम को लेटर सौंपा
भाकपा-माले विधायक अनुसूचित जाति दरौली विधानसभा,सिवान से निर्वाचित हैं सत्यदेव राम. बिहार के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ मे पत्र दिए थे.पत्र दिये 10 दिनों के बाद भी अभी तक कोई वार्ता आयोजित नहीं की गई. इससे आशा कार्यकर्ताओं और आशा फैसिलिटेटर में भारी रोष हैं.ऐसा प्रतीक हो रहा है व्याकुल आशा और आशा फैसिलिटेटर कभी भी हड़ताल पर जा सकते हैं.अगर ऐसा होता है तब सारा दोष सरकार की होगी.विधायक सत्यदेव राम के द्वारा प्रेषित पत्र में कहा गया है कि ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ आशा और आशा फैसिलिटेटर को मासिक मानदेय नहीं दिया जा है. विधायक ने आगे लिखा है कि बिहार विधान सभा के सदन में पक्ष-विपक्ष के सभी समूहों की ओर से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ आशा कार्यकर्ताओं के मासिक मानदेय बढ़ाने की मांग की गयी थी.
आशा कार्यकर्ताओं को माननीय पटना उच्च न्यायालय के द्वारा तारीफ
पटना उच्च न्यायालय ने कोरोना काल में आशा कार्यकर्ताओं के द्वारा निभाई भूमिका की तारीफ की है. संस्थागत प्रसव, टीकाकरण आदि के मामले में राज्य की जो उल्लेखनीय उपलब्धि दर्ज हुई है.उसमें आशा और आशा फैसिलिटेटर की अहम भूमिका है.इनका कार्य का चरित्र 24 घंटे और सातों दिन का है.
बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघः
बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष शशि यादव के नेतृत्व में आशा संयुक्त संघर्ष मंच के बैनर तले विधानसभा के समक्ष 11 मार्च को हजारों की संख्या में आशाओं ने प्रदर्शन किया और पिछले दो दिनों की राष्ट्रीय हड़ताल में उनके मुद्दे चर्चा में है. आशा और आशा फैसिलिटेटर का मुद्दा बना है. उन लोगों की ओर से मुझे बार बार मांग पत्र सौंपा गया है.
न्यूनतम 10 हजार रुपये का मासिक मानदेय की घोषणा हो
आशा और आशा फैसिलिटेटर को न्यूनतम 10 हजार रुपये का मासिक मानदेय की घोषणा हो.विधायक ने सीएम से निवेदन किया था कि आशा कार्यकर्ताओं के संबंध में इस बजट में सरकार कोई न्यायोचित घोषणा करें. परन्तु ऐसा नहीं हो सका.
सरकार मांगों के संदर्भ में अपेक्षित घोषणा करेंगी
उम्मीद है कि सरकार मांगों के संदर्भ में अपेक्षित घोषणा करेंगी क्योंकि जानलेवा महंगाई के दौर में आशा कार्यकर्ताओं का परिवार बहुत दयनीय स्थिति में है.2018 में ही आपकी पहल पर राज्य सरकार ने 1000 रुपये मासिक मानदेय देने का निर्णय लिया, उसे दिया तो जा रहा है लेकिन मानदेय शब्द को पारितोषिक राशि कर दिया जो कि गलत है. आपसे आग्रह है कि उन्हें सरकार मासिक मानदेय के रूप में घोषित करें और इस मानदेय राशि को न्यूनतम 10 हजार रुपये किए जाये.कोरोना काल की उल्लेखनीय भूमिका के लिए सरकार ने कोई राशि आशा कार्यकर्ताओं को नहीं दी है.आशा और आशा फैसिलिटेटर को सरकार एकमुश्त 10 हजार रूपये सेवा भत्ता दें.आशा कार्यकर्ताओं को कठिन कामों के लिए बहुत कम राशि मिलती है लेकिन उसमें भी बड़े पैमाने पर कमीशनखोरी होती है. कमीशनखोरी पर रोक लगे.आशा-आशा फैसिलिटेटर को स्वास्थ्य विभाग के नियमित कर्मचारी के बतौर समायोजन हो. आशा फैसिलिटेटर को पूरे माह का भत्ता दिया जाए. आपके ठोस निर्देश पर आशा संघों के साथ स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव की वार्ता आयोजित हो.
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