कभी अपने आराध्य की रक्षा तो कभी अपने भक्तों का संकट हरने, समय-समय पर बजरंगबली ने कई रुप धरे है। कुछ ऐेसा ही हुआ है तीनों लोकों में न्यारी, ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी, शौर्य-साहस के अनंत जीवन निवारण का गवाह, सांस्कृतिक धरोहरों की विरासत केन्द्र के साथ खूबसूरत मंदिरों के लिए मशहूर भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी में। इस जगह को कहते काशी का संकटमोचन, जो कैंट स्टेशन से बीएचयू लंका मार्ग पर स्थित है। इस जगह ऐसा मंदिर है जहां विराजमान है स्वयं अद्भूत रुप में संकटमोचन बजरंगबली, दर्शन देते है ऐसे रुप में जिसमें बसते है भक्तों के प्राण। जो सिर्फ सवापाव मग्दल की चढ़ावे से ही हो जाते है प्रसंन, देते है हर मनोकामना पूरी व सफल होने का बरदानबेशक, काशी को यूं ही तीनों में सबसे न्यारी या मोक्ष की नगरी नहीं कहा जाता, बल्कि इसके एक-दो नहीं कई कारण है। यहां देवों के देव आराध्य देव भगवान भोलेनाथ तो बसते ही है, उनके अंश यानी 11वें रुद्रावतार बजरंगबली का आना-जाना लगा रहता है। इसकी गवाही खुद संकटमोचन मंदिर देता है, जहां बजरंगबली ने तुलसीदास जी को दर्शन देकर उन्हें संत सिरोमणी महान कवि बना दिया। वह स्थान आज भी मौजूद है, तुलसीघाट व संकटमोचन मंदिर के रुप में। तुलसीघाट गंगा जी के किनारे है तो संकटमोचन मंदिर कैंट स्टेशन से बीएचयू लंका मार्ग पर। जहां पूरी आन-बान-शान से स्थापित संकटमोचक मूर्ति को देख भक्तों के मन में सवाल उठ खड़ा होता है कि भला यह कैसा रुप। दरअसल, यह रुप उस वक्त का याद दिलाता है जब कुष्ठ ब्राह्मण के रुप में बजरंगबली ने न सिर्फ महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी को दर्शन दी, बल्कि उन्हें भगवान राम से भी मिलवाया। अपने आराध्य देवों के दर्शन बाद तुलसीदास जी ने अपने ही हाथों निर्मित बजरंगबली की मूर्ति स्थापित कर पूरी रामचरित मानस लिख डाली। कहते है संकटमोचन बजरंगबली का आना-जाना यहां आज भी होता है। यही वजह है कि संकटमोचन बजरंगबली का मंदिर अपनी विशालता और उंचाई के लिए तोे जाना ही जाता है, साथ अपनी चमत्कारी और मान्यताओं के चलते देश-विदेश के भक्तों को अपनी ओर खीचता है। यहां आने वाले भक्तों की हर अधूरी इच्छा तो पूरी होती ही है हनुमान जी के बारे में करीब से दर्शन का मौका मिलता है। हर मंगलवार और शनिवार को हजारों की तादाद में श्रद्धालु हनुमान की पूजा अर्चना अर्पित करने पहुंचते है और मुरादों की झोली भरकर ले जाते है।
मंदिर में तुलसीदास ने लिखी रामचरितमानस
बात 1608 से 1611 के बीच उस वक्त की है जब महान कवि गोस्वमी तुलसीदास अपने ही उपासक भगवान श्रीराम की पटकथा लिख रहे थे। वह जगह आज भी तुलसी आश्रम व घाट के रुप में स्थापित है। मान्यता है कि गंगा घाट के पास आज भी मौजूद विशाल पीपल पेड़ के नीचे बैठकर ही तुलसीदास जी रामचरित मानस की चौपाईयां लिखा करते थे। चूकि भगवान हनुमान अवतार भगवान शिव का शक्तिशाली और रुद्र अवतार के रूप में जाना जाता है, इसलिए चौपाई लिखने से पहले तुलसीदास जी ने अपने ही हाथ से निर्मित बाल हनुमान मूर्ति की स्थापना की। जिसकी ऐतिहासिकता आज भी कायम है और ये मंदिर वर्तमान में लोगों की श्रद्धा का केन्द्र भी बना हुआ हैं। दक्षिणामुखी हनुमान जी की इस मूर्ति को काफी जागृत माना जाता है। इस मंदिर के उपरी तल पर राम-जानकी मंदिर है जिसकी स्थापना भी तुलसी दास जी ने ही की थी। इस मंदिर के पास ही एक कोने में तुलसीदास जी का चित्र लगाया गया है। यह वही स्थान है जहां तुलसीदास जी बैठकर चौपाईयां लिखा करते थे। रोजाना चौपाईयां लिखने से पहले तुलसीदास जी अपने आराध्य हनुमान जी की अपने ही स्थापित मूर्ति पूजन किया करते थे। उसी दौरान एक दिन तुलसीघाट पर स्थित पीपल के पेड़ पर रहने वाले दैत्य से तुलसीदास का सामना हो गया। उस दैत्य ने पहले तो उन्हें खूब छकाया, बाद में जब उन्होंने दैत्य के सामने हनुमान जी का मंत्र पढ़कर आह्वान करना शुरु किया तो दैत्य नतमस्तक हो गया।
पौराणिक मान्यताएं
तुलसीदास जी के कार्यो से प्रसंन दैत्य ने तुलसीदास को हनुमान घाट पर होने वाले रामकथा में श्रोता के रूप में प्रतिदिन आने वाले कुष्ठी ब्राह्मण के बारे में विस्तार से जानकारी दी। दैत्य ने उन्हें आभास करा दिया कि वह कुष्ठी ब्राह्मण कोई और नहीं, पवनपुत्र ही है। फिर क्या तुलसीदास जी प्रतिदिन उस कुष्ठी ब्राह्मण का पीछा करने लगे। अन्ततः एक दिन उस कुष्ठी ब्राह्मण ने तुलसीदास जी को अपना दर्शन हनुमान जी के रूप में दिया। तुलसीदास जी साक्षात हनुमान का दर्शन पाकर निहाल हो उठे और अपने इष्टदेव भगवान राम से मिलने की इच्छा जताई। प्रसंचित हनुमान ने बताया कि भगवान राम चित्रकूट में मिलेंगे। तुलसीदास जी चित्रकूट पहुंच गए और वहां उनका दर्शन हुआ। चौपाई भी है, चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसय तिलक देत रघुबीर। भगवान राम का साक्षात दर्शन पाने के बाद तुलसीदास पुनः काशी आ गए। और जहां हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिया था, वो आज भी दुर्गाकुण्ड से लंका जाने वाले मार्ग पर करीब 3 सौ मीटर आगे बढ़ने पर दाहिनी ओर मौजूद है, पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर दी। जो आज संकटमोचन के नाम से भारत ही नहीं पूरी दुनिया में विख्यात है। साढ़े आठ एकड़ भूमि पर फैले इस भव्य संकटमोचन मंदिर परिसर हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित है।अद्भूत है हनुमान मूर्ति, जो कहीं नहीं मिलती
मान्यता है कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस, हनुमान चालिस सहित कई रचनाओं के अंश संकटमोचन मंदिर के पास विशाल पीपल पेड़ के नीचे बैठकर लिखा था। हनुमान जी की महिमा गुणगान में उन्होंने लिखा है, को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारों, जैसी चौपाई मंदिर भक्ति की शक्ति का अदभुत प्रमाण देता है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को देखकर ऐसा आभास होता है जेसै साक्षात हनुमान जी विराजमान हैं। यहां मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई है कि वह भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं, जिनकी वे निःस्वार्थ श्रद्धा से पूजा किया करते थे। मंदिर में हनुमान जी की सिन्दूरी रंग की अद्वितीय मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि यह हनुमान जी की जागृत मूर्ति है। गर्भगृह की दीवारों पर लिपटे सिन्दूर को लोग अपने माथे पर प्रसाद स्वरूप लगाते हैं। गर्भगृह में ही दीवार पर नरसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित है। हनुमान मंदिर के ठीक सामने एक कुंआ भी है जिसके पीछे राम जानकी का मंदिर है। श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन के उपरांत राम जानकी का भी आशीर्वाद लेते हैं। वहीं एक तरफ शिव मंदिर है। इस भव्य और बड़े हनुमान मंदिर में अतिथिगृह भी है जिसमें मंदिर में होने वाले तमाम सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने आये अतिथि विश्राम करते हैं। हनुमान जी के मंदिर के पीछे हवन कुण्ड है जहां श्रद्धालु पूजा पाठ करते हैं। मंदिर परिसर में बंदरों की बहुतायत संख्या है। पूरे मंदिर में बंदर इधर-उधर उछल कूद करते रहते हैं। कभी-कभी तो ये बंदर दर्शनार्थियों के पास आकर उनसे प्रसाद भी ले लेते हैं। हालांकि झुंड में रहने वाले ये बंदर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते।
मौजूद है तुलसीदास की काव्य ग्रंथ: बिशम्भरनाथ मिश्र
मंदिर के महंत बिशम्भरनाथ मिश्र के मुताबिक तुलसीदास का सर्वाधिक समय अस्सी घाट पर ही बीता, जिसे अब तुलसीघाट कहा जाता है। यही तुलसी मंदिर या तुलसीदास का अखाड़ा है, जिसमें गोस्वामी जी रहते थे। यही उनका देहावसान हुआ। संवत 1680 अस्सी गंग के तीर। श्रावण कृष्ण तीज शनि तुलसी तज्यों शरीर।। उनका बचपन बहुत ही कष्टमय व्यतीत हुआ, भिक्षाटन तक करना पड़ा। दर-दर भटकना पड़ा। उनकी शादी रत्नावली नाम की कन्या से हुई थी। उनकी खड़ाऊं आज भी तुलसीघाट में महंत परिवार के पास सुरक्षित है। जिस नाव पर बैठकर वह मानस लिखा करते थे, उसका टुकड़ा आज भी वहां सहेज कर रखा गया है। इस दौरान वह कई-कई दिनों तक घाट के ऊपर ही बैठे रह जाते थे और मानस को लिखते थे। उनके रहने के घर को राजा टोडरमल ने बनवाया था। रामचरित मानस कवितावली, विनय पत्रिका, दोहावली, श्रीकृष्ण गीतावली, पार्वती मंगल रामाज्ञा, कृष्ण हनुमान, बहूक हनुमान चालिसा, रामलला नक्षुजानकी मंगल, वैराज्ञ संदीपनी आदि उनके ग्रंथों की कुछ पांडुलिपियां अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास, तुलसीघाट में सुरक्षित है।
चारों पहर होती है आरती
मंदिर में हनुमान जी की पूजा नियत समय पर प्रतिदिन आयोजित होती है। पट खुलने के साथ ही आरती सुबह साढ़े 5 बजे घण्ट-घडियाल नगाड़ों और हनुमान चालीसा के साथ होती है जबकि संध्या आरती रात नौ बजे सम्पन्न होती है। आरती की खास बात यह है कि सबसे पहले मंदिर में स्थापित नरसिंह भगवान की आरती होती है। मौसम के अनुसार आरती के समय में आमूलचूल परिवर्तन भी हो जाता है। दिन में 12 से 3 बजे तक मंदिर का कपाट बंद रहता है। आरती के दौरान पूरा मंदिर परिसर हनुमान चालीसा से गूंज उठता है। हनुमान जी के प्रति श्रद्धा से ओत-प्रोत भक्त जमकर जयकारे लगाते हैं। वहीं मंगलवार और शनिवार को तो मंदिर दर्शनार्थियों से पट जाता है। इस दिन शहर के अलावा दूर-दूर से दर्शनार्थी संकटमोचन दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। माहौल पूरी तरह से हनुमानमय हो जाता है। कोई हाथ में हनुमान चालीसा की किताब लेकर उसका वाचन करता है तो कुछ लोग मंडली में ढोल-मजीरे के साथ सस्वर सुन्दरकांड का पाठ करते नजर आता हैं। बहुत से भक्त साथ में सिन्दूर और तिल का तेल भी हनुमान जी को चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं। परंपराओं की मानें तो कहा जाता है कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती है। संकट मोचन का अर्थ है परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला।
प्रसाद में चढ़ता है बेसन का लड्डू
भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाया जाता हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि ग्रह के क्रोध से बचाते हैं अथवा जिन लोगों की कुंडलियों में शनि गलत स्थान पर स्तिथ होता है, वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं। कहते है कोई काम शुरु करने से पहले भक्त संकटमोचक दर्शन करना नहीं भूलते। दर्शनोंपरांत हनुमान चालिसा का पाठ भक्तों को दिला देता है रक्षा कवच, डाक्टर-इंजिनियर, गीत-संगीत, आईएएस, आईपीएस, पीसीएस सहित परीक्षा में उत्तीर्ण होने का वरदान। 7 मार्च, 2006 को वाराणसी में हुए आतंकवादी हमलों में से तीन विस्फोटों से एक विस्फोट मंदिर में हुआ था। उस दौरान मंदिर में आरती हो रही थी, जिसमें भारी मात्रा में उपासकों और शादी में उपस्थित जन मौजूद थे। लेकिन हनुमान की कृपा थी कि किसी को कुछ नहीं हुआ। विस्फोट का श्रद्धालुओं पर कोई असर नहीं हुआ। अगले दिन फिर से श्रद्धालुओं की बड़ी सख्या के साथ मंदिर में पूजा पुनः आरंभ हुई।
मालवीय जी ने कराई मंदिर का जीर्णोद्वार
परंपराओं की मानें तो कहा जाता है कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती है। संकट मोचन का अर्थ है परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला। इस मंदिर की रचना बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापक श्री मदन मोहन मालवीय जी द्वारा 1900 ई. में हुई थी। यहां हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस दौरान एक विशेष शोभायात्रा निकाली जाती है जो दुर्गाकुंड से सटे ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर से लेकर संकट मोचन तक जाती है। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाए जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि ग्रह के क्रोध से बचाते हैं अथवा जिन लोगों की कुंडलियों में शनि गलत स्थान पर स्तिथ होता है, वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं।
जब धमाकों से दहल उठा मंदिर
7 मार्च, 2006 को वाराणसी में हुए आतंकवादी हमलों में से तीन विस्फोटों से एक विस्फोट मंदिर में हुआ था। उस दौरान मंदिर में आरती हो रही थी, जिसमें भारी मात्रा में उपासकों और शादी में उपस्थित जन मौजूद थे। लेकिन हनुमान की कृपा थी कि किसी को कुछ नहीं हुआ। विस्फोट का श्रद्धालुओं पर कोई असर नहीं हुआ। अगले दिन फिर से श्रद्धालुओं की बड़ी सख्या के साथ मंदिर में पूजा पुनः आरंभ हुई।
जयंती पर होता है भव्य आयोजन
मंदिर में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की बात की जाये तो सालभर कुछ न कुछ बड़े आयोजन होते रहते हैं लेकिन हनुमान जयंती, राम जयंती और सावन महीने में मंदिर में होने वाले कार्यक्रमों की बात ही निराली है। मंदिर में हर साल अप्रैल महीने में हनुमान जयंती मनायी जाती है। जयंती के अवसर पर हनुमान जी की भव्य झांकी सजायी जाती है। साथ ही इस मौके पर होने वाला पांच दिवसीय संकटमोचन संगीत समारोह तो काफी प्रसिद्ध है। वैसे तो सावन के महीने में शिव की इस नगरी में हर तरफ मेले जैसा नजारा होता है। इस दौरान पूरे महीने संकटमोचन मंदिर के आस-पास भी मेला लगा रहता है। वहीं सावन के अंतिम दो मंगलवार को हनुमान जी का अलौकिक श्रृंगार किया जाता है। इसी महीने में कृष्ण तृतीया को गोस्वामी तुलसीदास की पुण्यतिथि मनायी जाती है। जिसमें काफी संख्या में ब्राह्मणों, साधु, संतों मंदिर में भोजन करते हैं।
--सुरेश गांधी--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें