भारत में गुजरा मार्च का महीना पिछले 122 सालों के दौरान सबसे गर्म मार्च रहा। इस अप्रत्याशित गर्मी की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में गेहूं के उत्पादन में 10 से 35 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई। भारत के कुछ विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न भीषण गर्मी से लोगों को राहत दिलाने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत पर भी जोर दे रहे हैं। गुजरात इंस्टिट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर और कार्यक्रम प्रबंधक डॉक्टर अभियंत तिवारी ने कहा "न्यूनीकरण संबंधी कदम उठाते वक्त भविष्य की वार्मिंग को सीमित करना बहुत आवश्यक है। तपिश के चरम, बार-बार और लंबे वक्त तक चलने वाले दौर अब भविष्य के खतरे नहीं रह गए हैं, बल्कि वे एक नियमित आपदा बन चुके हैं और अब उन्हें टाला नहीं जा सकता।" "गर्मी से निपटने की हमारी कार्य योजनाओं में अनुकूलन के उपायों को भी सुनिश्चित करना आवश्यक होगा। जैसे कि जन अवशीतलन क्षेत्र, निर्बाध बिजली आपूर्ति की सुनिश्चितता, सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता और सर्वाधिक जोखिम वाले वर्ग में आने वाले श्रमिकों के काम के घंटों में विशेषकर अत्यधिक तपिश वाले दिनों में बदलाव किया जाना चाहिए।" इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ गांधीनगर के निदेशक डॉक्टर दिलीप मावलंकर ने कहा : "भारतीय मौसम विभाग भारत के 1000 शहरों के लिए अगले 5 वर्षों तक की अवधि में पूर्वानुमान परामर्श जारी कर रहा है। अहमदाबाद ऑरेंज अलर्ट वाले जोन में है और यहां तापमान 43-44 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है और इसमें वृद्धि भी हो सकती है।" उन्होंने कहा "लोगों को इन परामर्श पर गौर करने की जरूरत है। घर के अंदर रहें, खुद को जल संतृप्त रखें और गर्मी से संबंधित बीमारी के सामान्य लक्षण महसूस करने पर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जाएं। खास तौर पर बुजुर्गों और कमजोर वर्गों का ध्यान रखें, जैसा कि हमने कोविड-19 महामारी के दौरान रखा था, क्योंकि इन लोगों को घर के अंदर बैठे रहने पर भी हीट स्ट्रोक का असर हो सकता है।"
नगरों को रोजाना विभिन्न कारणों से होने वाली मौतों के आंकड़ों पर नजर रखनी चाहिए। खासकर अस्पतालों में दाखिल किए जाने वाले मरीज और एंबुलेंस को की जाने वाली कॉल के डाटा पर ध्यान देना चाहिए ताकि पिछले 5 वर्षों के डाटा से उसका मिलान किया जा सके और मृत्यु दर पर गर्मी के असर के वास्तविक संकेत को देखा जा सके। "यह बहुत ही जल्दी आई हीटवेव है और इनकी वजह से मृत्यु दर भी आमतौर पर ज्यादा होती है क्योंकि मार्च और अप्रैल के महीनों में लोगों का गर्मी के प्रति अनुकूलन कम होता है और वे एकाएक तपिश को सहन करने के लिए तैयार नहीं होते। केंद्र और राज्य तथा नगरों की सरकारों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए। खासतौर पर जब मौसम विभाग के अलर्ट ऑरेंज और रेड जोन की घोषणा करें तो उन्हें इस बारे में अखबारों में विज्ञापन के तौर पर चेतावनी प्रकाशित करानी चाहिए। इसके अलावा टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से भी जनता को आगाह किया जाना चाहिए। यह एक चेतावनी भरा संकेत है कि आगामी मई और जून में क्या होने वाला है। अगर हम अभी से प्रभावी कदम उठाते हैं तो हम बड़ी संख्या में लोगों को बीमार होने और मरने से बचा सकते हैं।" पश्चिम बंगाल में स्थानीय सरकार ने स्कूलों को यह सलाह दी है कि वे जल्द सुबह कक्षाएं शुरू करें और रिहाइड्रेशन साल्ट्स की व्यवस्था करें ताकि अगर कोई बच्चा बीमार हो जाए तो उसका समुचित उपचार हो सके। राज्य के कुछ स्कूलों ने तो ऑनलाइन क्लास शुरु कर दी है ताकि बच्चों को भयंकर तपिश में स्कूल ना आना पड़े। इसी बीच, उड़ीसा में उच्च शिक्षा की कक्षाओं को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है । जहां दक्षिण एशिया में इस हफ्ते तापमान के सर्वाधिक चरम पर पहुंच जाने की आशंका है, वही यह भी सत्य है कि सिर्फ यह उपमहाद्वीप ही इस वक्त ऐसी भयंकर गर्मी से नहीं जूझ रहा है। अर्जेंटीना और पराग्वे में भी तपिश अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। पराग्वे में आज तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की आशंका है। वहीं, चीन में 38 डिग्री और तुर्की तथा साइप्रस में 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने की संभावना है। जैसे-जैसे प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन की वजह से तापमान और भी ज्यादा बढ़ेगा, खतरनाक तपिश और भी ज्यादा सामान्य बात होती जाएगी।
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