नयी दिल्ली, 30 अप्रैल, भारत के मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमन ने शनिवार को देशभर में लंबित मुकदमों के अनुपात में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के साथ ही न्यायपालिका से जुड़ी व्यवस्था को मजबूत बनाने पर जोर दिया। न्यायमूर्ति रमन ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और राज्यों मुख्यमंत्रियों के 11 वें संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने तथा विवाद को प्रारंभिक स्तर पर ही सुलझाने और उसे उत्पन्न होने की स्थिति नहीं आने देना के उपायों पर गंभीरता से विचार करना समय की मांग है। उन्होंने न्यायिक व्यवस्था में अन्य भाषाओं को अपनाने भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों के 1104 स्वीकृत पदों में से 388 खाली पड़े हैं। खाली पदों को भरने के लिए उनका पहले दिन से ही प्रयास रहा है। उन्होंने एक वर्ष के दौरान विभिन्न उच्च न्यायालयों में खाली पदों की नियुक्तियों के लिए 180 सिफारिशें की हैं। इनमें से 126 नियुक्तियां हो चुकी हैं। इसके लिए भारत सरकार को धन्यवाद करते हुए उन्होंने कहा कि 50 प्रतिक्षित प्रस्तावों को भारत सरकार शीघ्र अनुमोदन की उम्मीद की। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों ने भारत सरकार को लगभग 100 नाम भेजे हैं, जो अभी उन तक नहीं पहुंचे हैं। न्यायमूर्ति रमन ने न्यायिक व्यवस्था को जिला स्तर पर मजबूत करने की अपील करते हुए कहा, "मैं माननीय मुख्यमंत्रियों से आग्रह करना चाहता हूं कि जिला न्यायपालिका को मजबूत करने के उनके प्रयास में मुख्य न्यायाधीशों को दिल से सहयोग दें।" देशभर में लगातार बढ़ते लंबित मुकदमों की संख्या और न्यायाधीशों के अनुपात पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, "जब हम आखिरी बार 2016 में ( संयुक्त सम्मेलन) में मिले थे, तब देश में न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 20,811 थी। अब यह 24,112 है, जो कि छह वर्षों में 16 फीसदी की वृद्धि है। वहीं, इसी अवधि में जिला न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या दो करोड़ 65 लाख से बढ़कर चार करोड़ 11 लाख हो गई है, जो कि 54.64 प्रतिशत की वृद्धि है। मुख्य न्यायाधीश ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में उदार रवैया अपनाने का अनुरोध करते हुए सरकार से कहा, “कृपया अधिक पद सृजित करने और उन्हें भरने में उदारता बरते ताकि न्यायाधीश और जनसंख्या का अनुपात सही हो सके। उन्होंने कहा, "हमारे पास प्रति 10 लाख की आबादी पर लगभग 20 न्यायाधीश स्वीकृत हैं, जो बेहद कम है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि स्वीकृत संख्या में वृद्धि कितनी अपर्याप्त है।” उन्होंने निचली अदालतों में सुरक्षा को लेकर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि कुछ जिला न्यायालयों का माहौल ऐसा है कि महिला मुवक्किलों की तो बात ही छोड़िए, महिला अधिवक्ताओं को भी अदालत कक्षों में प्रवेश करने में भी डर लगता है। उन्होंने कहा कि न्याय के मंदिर होने के नाते न्यायालय स्वागत करने वाले और अपेक्षित गरिमा तथा आभा संपन्न होने चाहिए। इसके लिए न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए नालसा और एसएलएसए की तर्ज पर राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण और राज्य न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति रमन ने मुकदमों की संख्या के बढ़ने के कुछ बड़े कारणों का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि कोई तहसीलदार भूमि सर्वेक्षण या राशन कार्ड के संबंध में किसी किसान की शिकायत पर कार्रवाई करता है तो किसान अदालत का दरवाजा खटखटाने के बारे में नहीं सोचेगा। इसी प्रकार यदि कोई नगरपालिका प्राधिकरण या ग्राम पंचायत अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन करती है तो नागरिकों को अदालतों का दरवाजा खटखटाने की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि राजस्व अधिकारी कानून की उचित प्रक्रिया के माध्यम से भूमि का अधिग्रहण करते हैं तो अदालतों पर भूमि विवादों का बोझ नहीं पड़ेगा। अगर पुलिस की जांच निष्पक्ष होती है, अगर अवैध गिरफ्तारी और हिरासत में यातना समाप्त हो जाती है तो किसी भी पीड़ित को अदालतों का रुख नहीं करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न सरकारी विभागों में आपसी मुकदमेबाजी का सिलसिला चिंताजनक है। इस पर तत्काल गौर किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति रमन ने जनहित याचिकाओं की संख्या लगातार बढ़ने के संदर्भ में कहा , " इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीआईएल के जरिए कई वास्तविक मुद्दे उठाए जाते हैं, लेकिन यह भी सही है कि कभी-कभी परियोजनाओं को रोकने या सरकारी अधिकारियों पर दबाव डालने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। इन दिनों कई लोग उसका दुरुपयोग राजनीतिक लाभ या कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्विता का अपना हित साधने के लिए करते हैं। इस प्रवृत्ति के मद्देनजर अदालतें जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने को लेकर अत्यधिक सतर्कता बरतती है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब उन्होंने पिछले साल 15 अगस्त को बिना किसी पर्याप्त जांच के कानूनों को पारित करने के बारे में चिंता व्यक्त की तो उन्हें कुछ हलकों द्वारा गलत समझा गया। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेरे पास विधायिका और निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए सबसे ज्यादा सम्मान है। उन्होंने कहा," लोकतंत्र में एक वार्ड सदस्य से संसद सदस्य द्वारा निभाई गई भूमिकाओं को मैं महत्व देता हूं। मैंने केवल कुछ कमियों की ओर इशारा कर रहा था।" इस संदर्भ में उन्होंने लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला का विचार साझा किया। उन्होंने कहा कि श्री बिड़ला ने कुछ हफ्ते पहले कहा था कि पर्याप्त बहस और चर्चाओं के बाद कानून बनाया जाना चाहिए।
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