- हाइब्रिड मोड में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ब्रिटेन में हिंदी साहित्य एवं शिक्षण में देश विदेश के लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकारों और हिंदी प्रेमियों की सहभागिता रही।
नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2022। वातायन-यूके की गरिमापूर्ण सौवीं संगोष्ठी, जिसमें देश-विदेश के लब्ध प्रतिष्ठित लेखकों, साहित्यकारों और हिंदी-प्रेमियों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में भाग लिया, का शुभारंभ डॉ एस के मिश्रा द्वारा संपादित एक लघु फ़िल्म से हुआ, जिसमें विश्व भर के हिंदी प्रेमियों ने वातायन-यूके की शतकीय संगोष्ठी के सुअवसर पर शुभकामनाएं प्रेषित की हैं। मनु सिन्हा द्वारा वंदना की प्रस्तुति के बाद विश्व हिंदी जगत की बेहतरीन प्रस्तुतकर्ता और पुरस्कृत लेखिका, अलका सिन्हा ने संचालन की बागडोर संभाली। संगोष्ठी के आयोजक-मण्डल, अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, वैश्विक हिंदी परिवार और अक्षरम, की ओर से श्याम परांडे जी ने स्वागत करते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं का प्रसार विदेशों में भी हो रहा है। वातायन-यूके की अध्यक्षा, मीरा मिश्रा कौशिक, ओबीई, ने अपने स्वागत-उदबोधन में कहा कि वातायन गत 19 वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साहित्य, संस्कृति, कला और भाषा से जुड़े हिंदी प्रेमियों के लिए एक सशक्त मंच बनकर उभरा है, विशेषतः लॉकडाउन के दौरान, दिव्या माथुर, डा पद्मेश गुप्त और अनिल शर्मा जोशी के मार्गदर्शन में वातायन-यूके की युवा टीम के साथ उन्हें भी कार्य करने का अवसर मिला।
ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नैस कॉलेज के निदेशक डॉ पद्मेश गुप्त ने वातायन की स्थापना, उद्देश्य एवं उपलब्धियों पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रवासी भवन-दिल्ली में वातायन के 100वें कार्यक्रम का आयोजन ऊर्जा प्रदान करता है। 2 अप्रैल 2020 से लॉकडाउन संगोष्ठियों का आयोजन प्रत्येक शनिवार को होता आया है; इसके अतिरिक्त, प्रति वर्ष वातायन सम्मान समारोह, पुस्तक लोकार्पण, परिचर्चा, संवाद, साक्षात्कार, स्मृति-संवाद, लोक-गीत जैसी श्रंखलाओं के माध्यम से विश्व भर के सैंकड़ों लेखकों और हिंदी प्रेमियों को जोड़ा जा चुका है। वातायन की सहयोगी संस्था यूके हिंदी समिति के हिंदी पाठ्यक्रम को 50 से अधिक हिंदी संस्थाओं ने मान्यता दी है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष, पूर्व राजदूत वीरेंद्र गुप्ता जी ने कहा कि कोविड काल में वातायन-यूके ने हिंदी सेवा का जो कार्य अपने कंधे पर लिया है, वह बदलाव ला रहा है; वर्तमान पीढ़ी को भी अपने ही देश में हिंदी के लिए अपनी संकुचित मानसिकता का त्याग करना चाहिए। सुप्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल ने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्व हिंदी सम्मेलन की परिकल्पना को साकार एवं सफल बनाने के पीछे ऐसे ही हिंदी प्रेमी संस्थाओं का अहम योगदान रहा है। भाषा के विकास के लिए सोचना होगा कि सिर्फ हम भारतीय ही केवल हिंदी में बोलें बल्कि इसे विदेशी मूल के लोग भी अपनाएं। राजभाषा राष्ट्रभाषा के प्रति जन जन की जिजीविषा हो इसके लिए वातायन यूके ने निरंतर सफल प्रयास किया है। सुविख्यात लेखिका नासिरा शर्मा ने ब्रिटेन में हिंदी साहित्य और शिक्षण के संदर्भ में कहा कि पाठ्यक्रम ऐसा हो कि लोगों को हिंदी से स्वयं मोहब्बत हो जाए। उन्होंने हिंदी गोष्ठियों और सम्मेलनों में विदेशी मूल के लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने की पैरवी की। कार्यक्रम के अध्यक्ष, पूर्व कुलपति प्रोफेसर सच्चिदानंद जोशी ने हिंदी सिनेमा का उदाहरण देते हुए कहा कि फिल्म में किसी पात्र का शुद्ध हिंदी बोलना हास्य-परिहास का बोध कराता है, हमें ऐसे मिथक तोड़ने होंगे। हिंदी के प्रति अंदर से उत्साह पैदा हो और ऐसे सकारात्मक वातावरण का संयुक्त प्रयास से निर्माण होना चाहिए तभी हम हिंदी को आगे बढ़ा सकते हैं ।
दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में प्रोफ़ेसर और 'वातायन' की स्मृति संवाद शृंखला की समन्वयक डॉ रेखा सेठी ने वातायन की साप्ताहिक संगोष्ठियों की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि वातायन से जुड़े सभी लोग रचना करते हैं यह प्रयास सराहनीय है। उन्होंने एशिया, यूरोप और अमेरिका में हिंदी भाषा पाठ्यक्रम के विभिन्न चरणों को विस्तार से बताया। साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय रचनाकारों द्वारा हिंदी शोध पर आधारित कार्यों का भी उल्लेख किया। केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हिन्दी की परीक्षक डॉ अरुणा अजितसरिया, एम.बी.ई, ने ब्रिटेन में हिंदी शिक्षण को लेकर प्रारंभ, प्राथमिक एवं उच्च स्तर तक की शिक्षण व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ब्रिटेन में हिंदी शिक्षण अब तक एक लघु उद्योग के रूप में चल रहा है, इसे विस्तार देना होगा। ब्रिटेन से सुरेखा चोफला ने यूके हिंदी समिति द्वारा हिंदी शिक्षण के कार्यों का विस्तृत उल्लेख किया। नारायण कुमार जी ने भारतीय भाषाओं के साथ ही हिंदी के सतत् विकास पर जोर देते हुए कहा कि विश्व भर में हिंदी प्रेमियों के लिए वातायन एक सशक्त मंच के रूप में स्वीकारा जा रहा है। केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने भाषा में भविष्य की पैरवी पर बल देते हुए कहा कि पैनडैमिक काल की चुनौतियों में वातायन-यूके ने हिंदी के प्रचार और प्रसार में जो पहल की, वह सराहनीय है। केन्द्रीय हिंदी संस्थान की निदेशक, डॉ बीना शर्मा जी के संक्षिप्त किन्तु सुंदर धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। वर्चुअल (ज़ूम) कार्यभार संभाला आशीष मिश्रा, कृष्ण कुमार, चेतन जी और आस्था देव ने; सभागार में उपस्थित थे वातायन-यूके की संस्थापक और लेखिका दिव्या माथुर, कोषाध्यक्ष शिखा वार्ष्णेय, अरुण सबरवाल और शुभम राय त्रिपाठी, वातायन-भारत की प्रमुख डॉ मधु चतुर्वेदी, डॉ मनोज मोक्षेंद्र, हरजेंद्र चौधुरी, डॉ एस के मिश्रा, आदेश पोद्दार, इत्यादि, विश्व के अनेक देशों से हिंदी प्रेमियों की वर्चुअल उपस्थिति स्मरणीय रहेगी, जिनमें सम्मिलित थे प्रो तोमियो मिज़ोकामी, प्रो लुडमिला खोंखोलोव, डॉ तात्याना ऑरनसकाया, अनूप भार्गव, संध्या सिंह, आराधना झा श्रीवास्तव, डॉ प्रभा मिश्रा, जय शंकर यादव, डॉ के के श्रीवास्वव, अथिला कोठवाल, विवेकमणि त्रिपाठी, डॉ निखिल कौशिक, जय वर्मा, डॉ शिव पांडे, डॉ सुनील जाधव, कादंबरी मेहरा, शैल अग्रवाल, इत्यादि।
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