- -- राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक ने कहा कि गीतांजलि श्री को बुकर पुरस्कार मिलने से हमारे श्रेष्ठ साहित्य की ओर दुनिया का ध्यान नए सिरे से गया है
- -- भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों की विशिष्टताओं पर संकोच छोड़कर चर्चा करने की जरूरत है
लंदन। वरिष्ठ कथाकार गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ को इस वर्ष का अन्तरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्रदान किये जाने पर राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा है कि यह हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं की सुदीर्घ और समृद्ध कथा-परम्परा का सम्मान है। उन्होंने कहा, इस कथा-परम्परा का आधार हमारे अनेक लेखकों द्वारा रचा गया श्रेष्ठ साहित्य है। इस बुकर पुरस्कार के बहाने हमारे श्रेष्ठ साहित्य की ओर दुनिया का ध्यान नए सिरे से गया है । अशोक महेश्वरी ने कहा, ‘रेत-समाधि’ को बुकर पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के साथ ही अन्तरराष्ट्रीय जगत में हिन्दी साहित्य और भारतीय भाषाओं के साहित्य की नए सिरे से चर्चा हो रही है। यह उत्साहवर्द्धक है। ‘रेत-समाधि’ को पुरस्कृत कर बुकर फाउंडेशन ने ऐसी एक कृति को रेखांकित किया है जो लीक से हटकर है। उन्होंने कहा, खुशी के इस खास अवसर पर हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं के पाठकों, समीक्षकों और विश्लेषकों से मैं यह कहना चाहता हूँ कि हमें ऐसी कृतियों पर गौर करना चाहिए, उनके बारे में बातें करनी चाहिए और उनकी विशिष्टताओं को सामने लाना चाहिए जो लीक से हट कर हों। दरअसल हमारे समाज में लेखक प्राय: संकोची होते हैं। अपने लेखन के बारे में खुद कहने से बचते हैं। दूसरी तरफ, एक पाठक और समीक्षक के रूप में हम अपने लेखकों के महत्त्व और योगदान के बारे में प्रायः तभी विचार करते हैं जब वे हमारे बीच नहीं रहते। मेरा अनुरोध है कि अब यह संकोच खत्म होना चाहिए। एक पाठक और समीक्षक के रूप में हमें उन कृतियों के बारे में बातें करने में हिचकना नहीं चाहिए जो लीक से हटकर नया प्रस्थान रचती हों। लेखकों को भी अपनी कृत्तियों पर बात करने को लेकर संकोच नहीं करना चाहिए। राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक ने कहा, मेरी राय में ‘रेत-समाधि’ हिन्दी उपन्यास की प्रचलित परम्परा से काफी हटकर है। यह अपने प्रयोगों से उस परम्परा में काफी कुछ जोड़ती है, उसका विस्तार करती है। इसमें चकित करनेवाली नवीनता है। बुकर जूरी के सदस्यों ने ‘रेत-समाधि’ की इन खासियतों को पहचाना। वे इस उपन्यास पर मुग्ध थे। वास्तव में यह भारतीय परिवार का ‘महाभारत’ है। महाभारत से आशय इस उपन्यास की महाकाव्यात्मकता से है। भारतीय परिवार में जो कुछ है, जो कुछ हो सकता है वह सब कुछ ‘रेत-समाधि’ में है। परिवार ही नहीं, पृथ्वी का चराचर जगत जिस रूप में ‘रेत-समाधि’ में व्यक्त हुआ है वैसा शायद ही किसी अन्य उपन्यास में हुआ हो। इसमें मनुष्य और मनुष्येत्तर जीव ही नहीं, सरहद जैसी निर्जीव चीजें भी संवाद करती हैं। दुनिया को देखने की यह एक विलक्षण दृष्टि है जो गीतांजलि श्री के इस उपन्यास में अपने पूरे वैभव के साथ हमें मिलती है। अशोक महेश्वरी ने कहा कि हमें इस बात की खुशी और सन्तोष है कि ‘रेत समाधि’ को पुरस्कृत करने के लिए बुकर फाउंडेशन और उसकी जूरी ने उसकी जिन विशेषताओं को आधार बनाया, और जिस पर आज समूचा साहित्य-जगत गौर कर रहा है, उन विशेषताओं को हमने 2018 से पहले ही पहचान लिया था जब हमने उसे प्रकाशित करने के लिए चुना था।
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