खेती किसानी अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है. प्रत्येक देश का विकास कृषि उत्पादन पर निर्भर है. महामारी के दौरान खेती किसानी ही भारत की बड़ी आबादी के लिए ईंधन का काम किया है. अच्छे मौसम की वजह से रबी और खरीफ फसलों का उत्पादन भी बेहतर हुआ है. यह जरूर है कि सब्जियों और फलों की बिक्री कुछ दिनों तक प्रभावित रही है लेकिन ग्रामीण इलाकों में में भुखमरी की स्थिति नहीं बनी. इस दौरान किसानों ने नकदी फसल और फलों की खेती के लिए प्रयास जारी रखा. परंतु कृषि विभाग की उदासीनता की वजह से किसानों को बीज, रासायनिक उर्वरक, पानी, बिजली आदि के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ी. महंगाई की मार झेल रहे किसानों के लिए खेतीबाड़ी आसान काम नहीं था. इसके बावजूद वह तेलहन, दलहन के साथ फल की खेती, चावल, गेहूं, ज्वर, बाजरा, चना, मूंग, अरहर, मसूर, सरसों, तोड़ी, मूंगफली, आदि की खेती में लगे रहे. इस दौरान कुछ किसानों ने खेती में नया करने का सोचा. उन्होंने बालू की रेत पर तरबूज, खरबूज और सब्जी जैसी परंपरागत की खेती की जगह अमरूद की खेती शुरू की. जो इनके लिए वरदान साबित हुई.
बिहार के मुजफ्फरपुर जिला स्थित पारु ब्लॉक के धरफरी गांव के निवासी किसान हरिनाथ साह बालू पर अमरूद की खेती कर अपने इलाके में काफी चर्चित हैं. हरिनाथ साह पहले कोलकाता के एफसीआई कैंटीन में काम करते थे. इसी दौरान उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई. हरिनाथ साह के छोटे-छोटे चार बच्चे थे. उस समय हरिनाथ साह की उम्र लगभग पच्चीस साल थी. पत्नी की मृत्यु बाद बच्चों के लालन पालन की ज़िम्मेदारी के कारण उन्हें कोलकाता की नौकरी छोड़नी पड़ी. वह बताते हैं कि पत्नी की मृत्यु का दुख तो दूसरी तरफ, चार छोटे-छोटे बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी निभाते हुए घर-गृहस्थी चलाने के लिए खेती किसानी का काम करने लगे. इसी दौरान उन्हें खेती के परंपरागत ढांचा से अलग कुछ करने का ख्याल आया और इसी क्रम में उन्होंने बालू वाली ज़मीन पर अमरुद उगाने का काम शुरू कर दिया. इस सिलसिले में गांव के अन्य किसान चन्देश्वर साह, बसंत महतो, रामचन्द्र राय कहते हैं कि हरिनाथ आज अपने बालू की रेत पर अमरूद की खेती कर स्वावलंबन का एक नया तरीका ढूंढ़ निकाला है. इस क्षेत्र में अमरूद की खेती इससे पहले नहीं होती थी. हरिनाथ साह से प्रेरित होकर कई किसानों ने इसे खेती के तौर पर अपनाया और आज कई किसानों को नकदी आमदनी के लिए अमरूद की खेती करना फायदेमंद लग रहा है. हरिनाथ साह बताते हैं कि उनके एक करीबी विजयनंदन साह ने माली हालत सुधारने के लिए अमरूद की खेती की सलाह दी. जबकि विजयनंदन के रिश्तेदार ने उन्हें अमरूद के उन्नत किस्म की जानकारी दी तथा इसकी खेती का तौर-तरीका सिखाया. हरिनाथ ने पंद्रह वर्षों के लिए जमीन लीज पर लेकर अमरूद की खेती शुरू की. लीज पर ली गई जमीन के लिए उन्हें कई किसानों के साथ लीज एग्रीमेंट करना पड़ा. जमीन वाले को प्रत्येक साल अनाज के रूप में 10 किलो प्रति कट्ठा के हिसाब से एवं अलग से 10 किलो अमरूद फसल के समय डाली के रूप में देना तय कर अमरूद की खेती शुरू की. उन्होंने कुल 57 कट्ठा यानी लगभग ढाई हेक्टेयर भूमि पर कुल 560 अमरुद के पौधे लगाए. इस संबंध में हरिनाथ साह बताते हैं कि अमरूद की खेती में एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी कम-से-कम 12-15 फीट की होनी चाहिए. इस प्रकार के पौधे रोपने के लिए एक मजदूर एक दिन में मात्र 20 पौधे ही रोपते हैं. पौधे की रोपनी के समय उर्वरक, जैविक खाद, रासायनिक खाद, दवाइयां प्रत्येक पौधे में देनी पड़ती है. इसके अतिरिक्त प्रत्येक पौधे में डीएपी 200 ग्राम, यूरिया 200 ग्राम, जैविक खाद 500 ग्राम, पोटेशियम खाद 50 ग्राम, थाइमेट 10 ग्राम की मात्रा देना आवश्यक है. हरिनाथ साह को 560 पौधे रोपने में कुल 45146 रुपए की पूंजी लगी.
अब पौधे लगाने के एक साल के बाद पहली बार अमरूद के एक पौधे से लगभग 4 से 5 फल निकलते हैं. इस तरह से कुल पौधे को मिला कर 280 किलो अमरूद का फल निकलता है. उन्होंने बताया कि स्थानीय बाज़ार में अमरूद 25 से 30 रूपए प्रति किलो बिकता है. धीरे-धीरे फलों की संख्या प्रति पेड़ में बढ़ने लगती है. एक साल के बाद 25 से 50 फल प्रति पेड़ के हिसाब से बढ़ जाते हैं. अमरूद की खेती के जरिए हरिनाथ पूरे परिवार की देखभाल के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं. वह बताते हैं कि पहले एवं दूसरे साल फसल में लगी पूंजी निकली जबकि चौथे एवं पांचवें साल से अच्छा मुनाफा मिलने लगा है. उन्होंने कहा कि यदि वह और भी पहले से अमरूद की खेती शुरू कर देते तो अपने तीन बड़े बेटों को अच्छी शिक्षा देने में समर्थ होते. वर्तमान में इसी अमरूद की खेती से न केवल उनका सबसे छोटा बेटा आई टी आई कर चुका है बल्कि पोते और पोतियां भी अच्छे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम हो गए हैं. इस संबंध में स्थानीय पूर्व जिला पार्षद देवेश चंद्र कहते हैं कि आज हरिनाथ किसानों के रोल मॉडल हो चुके हैं. मुज़फ़्फ़रपुर के पारु ब्लॉक और उससे सटे वैशाली जिले में सबसे अधिक अमरूद की खेती और उसका व्यापार किया जाता है. यदि कृषि विभाग जिले के पश्चिमी दियारा में भी किसानों को अमरूद की उन्नत खेती की तकनीकी प्रशिक्षण, बैंक ऋण, सरकारी लाभ दे, तो यहां के किसान खेतों में सोना उगाएंगे. इस संबंध में पारू ब्लॉक स्थित कृषि विभाग के कृषि पदाधिकारी गुरु चरण चौधरी इसे एक सकारात्मक शुरुआत मानते हैं. जब उनसे पूछा गया कि किसान हरिनाथ साह ने ग्रामीण क्षेत्र दियारा में अमरूद की खेती की है उन्हें सरकारी लाभ कैसे मिलेगा? उन्होंने कहा कि जो भी किसान अपने या लीज लेकर किसी भी प्रकार के फलों की खेती करते हैं, तो उन्हें सबसे पहले सरकार की वेबसाइट पर जाकर पंजीकरण कराना होगा. जिसके बाद विभाग द्वारा जमीन की जांचोपरांत लागत का कम-से-कम उन्हें 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है. वहीं, फलदार पौधे पर सरकारी अनुदान 100 प्रतिशत तक देने का प्रावधान है. अनुदान के लिए किसानों को जमीन के मूल कागज, मालगुजारी रसीद, लगान की रसीद, बैंक पासबुक, आधार कार्ड की छायाप्रति के साथ चार पासपोर्ट साईज फोटो विभाग में जमा करना पड़ता है. बहरहाल अनुदान मिले या न मिले, लेकिन हरिनाथ जैसे किसान खुद के बलबूते अमरूद की खेती करके न केवल अपने घर की माली हालत को सुधार रहे हैं बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन रहे हैं.
फूलदेव पटेलमुजफ्फरपुर, बिहार
(चरखा फीचर)
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