विश्व की प्रमुख संस्कृति बनने का उपयुक्त समय : शेखर कपूर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

  
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

बुधवार, 4 मई 2022

demo-image

विश्व की प्रमुख संस्कृति बनने का उपयुक्त समय : शेखर कपूर

shekhar-kapoor-696x464
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) द्वारा ‘भारतीय सिनेमा और सॉफ्ट पावर’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए फिल्म निर्देशक शेखर कपूर ने कहा कि एशियाई देशों के लिए विश्व की प्रमुख संस्कृति बनने का यही बिल्‍कुल उपयुक्त समय है। जब मैं युवा था तो एक समय ऐसा भी आया था जब मैं अमेरिकियों की तरह ही बनने की ख्वाहिश रखता था। इसका मुख्‍य कारण अमेरिकी मीडिया का व्‍यापक प्रभाव था। कपूर ने कहा कि अब हमारी बारी है, एशिया का उदय हो रहा है और भारत एवं चीन दो ऐसे देश हैं, जो अपनी सॉफ्ट पावर के बल पर दुनिया में प्रमुख प्रभावक बन सकते हैं। चीन इसे हासिल करने के लिए पहले से ही हरसंभव प्रयास कर रहा है। प्रौद्योगिकी उन्नयन की आवश्यकता पर विशेष जोर देते हुए शेखर कपूर ने कहा कि यदि भारत को सिनेमा का उपयोग एक सॉफ्ट पावर के रूप में करना है, तो हमें दुनिया भर में आने वाली पीढ़ियों के दिलो-दिमाग को जीतना होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका और दुनिया में 90 फीसदी युवा फिल्मों एवं ओटीटी के अलावा विभिन्‍न गेम का आनंद उठाते हैं। हमें नवीनतम तकनीकों का उपयोग करके गेमिंग जैसे लोकप्रिय मीडिया के माध्यम से अपनी कहानियों को बयां करने के बारे में सोचने की जरूरत है। मैं भारतीय परिधानों में भारतीय पात्रों को दर्शाने वाले गेम देखना चाहता हूं। इस मौके पर आईसीसीआर के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि आज दुनिया भर में भारतीय संस्कृति के लिए व्‍यापक सद्भावना और आकर्षण है, लेकिन हमें भारत के बारे में गहरी समझ विकसित करने की जरूरत है और सिनेमा इसके लिए एक प्रभावकारी माध्यम हो सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी हालिया फिल्में मुख्‍यत: महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित हैं। कई बार फिल्म से होने वाले बिजनेस को ध्यान में रखते हुए कहानी के नकारात्मक पक्ष को दिखाया जाता है, लेकिन हमें पूरी तस्वीर पेश करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के लोगों का व्‍यापक संघर्ष, अनिवासी भारतीयों के विदेश में ही रहने या स्वदेश लौट जाने की दुविधा जैसे विषयों को अब भी मुख्यधारा के सिनेमा के जरिए दर्शाने की जरूरत है।

कोई टिप्पणी नहीं:

undefined

संपर्क फ़ॉर्म

नाम

ईमेल *

संदेश *