- सावरकर काफी होनहार और संगठन बनाने में माहिर थे - अशोक कुमार पांडेय
- सावरकर बन्दुक के सहारे आजादी चाहते थे मगर उन्हें खुद बन्दुक चलानी नही आती थी- अशोक कुमार पांडेय
अशोक कुमार पांडेय ने आगे कहा कि इसमें शक नहीं कि सावरकर होनहार थे। वे संगठन बनाने में माहिर थे, उस समय 1857 के समर्थन में लन्दन में कार्यक्रम करना बहुत बड़ी बात थी जो सावरकर ने किया। सावरकर के अंग्रेजों से माफी मांगने को लेकर अकसर उठने वाली बहस पर अशोक कुमार पांडेय ने कहा, मैं समझता हूँ कि सावरकर का माफी माँगना कोई इतनी बड़ी बात नही थी। अंडमान जेल से रिहा होने का यह एकलौता तरीका था। लेकिन तथ्यों से यह भी स्पष्ट है कि सावरकर अंग्रेजों के सामने बहुत जल्दी टूट गये थे।अंग्रेजों को समझ में आ गया कि सावरकर इस हद तक टूट चुके हैं कि वे उनके काम आ सकते हैं। उन्होंने आगे कहा, सावरकर बन्दूक के सहारे आजादी चाहते थे मगर रिपोर्ट के अनुसार उन्हें खुद बन्दूक चलानी नही आती थी।परिचर्चा के बीच गिरिराज किराडू ने कहा कि अशोक कुमार पांडेय कीपुस्तक सावरकर की वैचारिक और व्यावहारिक यात्रा पर केंद्रित है। यह सावरकर की जीवनी नहीं है। लेखक ने पूरे तथ्यों के साथ इस किताब को लिखा है जो सावरकर के जेल जाने से पहले और जेल से निकलने के बाद उनके व्यक्तित्व और विचारों में आई तब्दीली की पड़ताल करती है। गौरतलब है कि अशोक कुमार पांडेय आधुनिक भारतीय इतिहास के बहसतलब मुद्दों पर लिखने के लिए खासे चर्चित हैं।कश्मीर और कश्मीरी पंडित और उसने गांधी को क्यों मारा उनकी अन्य चर्चित किताबें हैं. कवि और कहानीकार के बतौर भी अलहदा पहचान रखने वाले अशोक कुमार पांडेय की इन किताबों के अनुवाद अनेक भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
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