बिहार में नेता प्रतिपक्ष हैं तेजस्वी यादव। सामाजिक रूप से मजबूत जाति यादव का राजनीतिक आधार है। मुसलमानों का भी भरोसा हासिल है। पिछले विधान सभा चुनाव में दर्जन भर विधायकों के अभाव में सरकार बनाने का मौका दरवाजे से आकर लौट गया। इसके बाद से तेजस्वी यादव सरकार बनाने की राह तलाश रहे हैं। पार्टी का आधार विस्तार की जमीन तलाश रहे हैं। यह एक स्वाभाविक राजनीतिक प्रक्रिया है। लेकिन सवाल यह है कि सत्ता की राह तलाशने के फेर में तेजस्वी यादव कहां जा रहे हैं? जिस राह की ओर जा रहे हैं, क्या वह राह उन्हें सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा पायेगी? 3 मई को परशुराम जयंती थी। इसको लेकर भूमिहारों की ओर से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। उसी में एक आयोजन पटना के बापू सभागार में हुआ था। इसमें तेजस्वी यादव मुख्य अतिथि थे। भूमिहारों की भीड़ में एक अकेला यादव। 32 दांत में एक जीभ। भूमिहारों के पक्ष में बोलना था और बोले भी। लेकिन सवाल यह था कि वह बोल क्या रहे थे? उन्होंने कहा कि विधान परिषद चुनाव में राजद ने 5 भूमिहारों को टिकट दिया और तीन जीत गये। इसका आशय यह हुआ कि भूमिहार राजद के साथ आ रहे हैं। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा जा सकता है कि परिषद चुनाव में राजद ने 10 यादव को टिकट दिया और 9 हार गये। उसी फार्मूले पर इसका आशय हुआ कि यादव राजद का साथ छोड़ रहे हैं। विधान परिषद चुनाव में जिन पांच सीटों की बात तेजस्वी यादव कर रहे हैं, उन सीटों पर कुल वोटरों की 4 फीसदी हिस्सेदारी भी भूमिहार वोटरों की नहीं है। हम पटना की बात करें तो पटना में जिला परिषद सदस्यों की संख्या 45 है, जिसमें सिर्फ 2 भूमिहार हैं। तेजस्वी यादव को लोकल बॉडी में वोटरों की जातीय संख्या की भी गिनती करवा लेनी चाहिए। राजद ने औरंगाबाद, रोहतास, गोपालगंज और सहरसा में राजपूत को टिकट दिया था। जिस कोसी इलाके में राजपूतों की संख्या कम है, वहां राजद जीत गया। जिन इलाकों में सवर्णों की संख्या अधिक है, वहां राजद हार गया। इसका मतलब यह है कि राजद के सवर्ण उम्मीदवारों ने गैरसवर्णों वोटों के कारण जीत दर्ज की। यह अलग बात है कि इस चुनाव में पैसे की बंदरबांट में न कोई जाति पीछे रही, न कोई पार्टी। 4 मई को हम अपनी पत्रिका वीरेंद्र यादव न्यूज को बांटने के लिए कई नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के घर गये। राजद से जुड़े सभी लोगों ने भूमिहार सम्मेलन में तेजस्वी यादव के जाने को लेकर सवाल खड़ा किया। राजद के एक वरिष्ठ नेता कहा कि समाजवादी आंदोलन को खड़ा करने में कई पीढि़यों ने अपना उत्सर्ग किया और तेजस्वी यादव ने एक झटके में सब गुड़ गोबर कर दिया। राजनीतिक गलियारे में लोग हमें तेजस्वी यादव का करीबी मान लेते हैं। इसलिए जो बात लोग तेजस्वी यादव से नहीं कह सकते हैं, वह हम पर उड़ेल देते हैं। तेजस्वी यादव तक सीधे संदेश पहुंचाना या उनसे मिलना राजद के विधायक और वरिष्ठ नेताओं के लिए संभव नहीं है तो आमलोगों की बात ही कौन करे। तेजस्वी यादव नेता प्रतिपक्ष हैं। उनके समर्थक उन्हें ‘अगली सुबह’ का मुख्यमंत्री मानते हैं। इस अपेक्षा को पूरा करने के लिए तेजस्वी यादव अब भूमिहारों को ‘कहार’ समझ रहे हैं। पार्टी उनकी है, सरकार उनको बनाने का मौका मिलना है। आम आदमी को क्या फर्क पड़ता है कि मुख्यमंत्री गोवार है या भूमिहार। लेकिन तेजस्वी यादव को इतना जरूर समझना चाहिए कि लालू यादव का ‘जिन्न’ सवर्णों के दरवाजे से नहीं निकला था। जिन्न की ताकत गैर-सवर्णों में समाहित थी, जिसे तेजस्वी यादव नजरअंदाज कर रहे हैं।
--- वीरेंद्र यादव,वरिष्ठ संसदीय पत्रकार,पटना ---
--- birendrayadavnews.com---
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