- 14 मई को ए.एन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में होने वाले सेमिनार को रद्द करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करें
पटना, 4 मई । केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान बिहार में अकादमिक स्वतन्त्रता के क्षरण पर को लेकर अपनी चिंता व क्षोभ प्रकट करता है। अकादमिक स्वतन्त्रता और असहमति को दबाने के मामले में बिहार हिंदी प्रदेशों के शेष राज्यों की तुलना में थोड़ा बेहतर स्थिति में समझा जाता था। लेकिन हाल में बिहार में ए.एन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में एक निर्धारित कार्यक्रम को कैंसल कर देना अकादमिक स्वतन्त्रता पर कुठाराघात की जीवित मिसाल है। ए.एन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान द्वारा 16 मई को 'आज़ादी के अमृत महोत्सव ' पर आयोजित कार्यक्रम में चर्चित इतिहासकार ओ.पी जायसवाल, टाटा इंस्टीट्यूट फॉर सोशल स्टडीज के चेयरपर्सन पुष्पेंद्र था ए.सिन्हा इंस्टीट्यूट फॉर सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक रहे वाई.डी प्रसाद मुख्य वक्ता थे। विषय था ‘ *फर्स्ट अंटचेबल रिवोल्युनशरी हीरो हू चैलेंज्ड ब्राह्मनिकल ऑर्डर इन एनशिएंट इंडिया*‘। 14 मई को 3 बजे से ए.सिन्हा समाज अध्ययन। संस्थान के सेमिनार हॉल – 1 में आयोजित यह कार्यक्रम का आमन्त्रण पत्र लोगों तक पहुँच चुका था। आमन्त्रण पत्र संस्थान के निदेशक असङ्गा चुबा ओ, रजिस्ट्रार नीलरत्न तथा सेमिनार कमिटी के संयोजक विद्यार्थी विकास की ओर भेजा गया था। ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर होने वाले इस सेमिनार को लेकर पटना के बौद्धिक जगत में एक उत्सुकता बनी हुई थी । लेकिन अचानक सोशल मीडिया के माध्यम से यह सूचना आती है कि इस सेमिनार को रद्द कर दिया गया है। ज्ञातव्य हो कि ए.सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान न सिर्फ राजधानी पटना अपितु बिहार भर के पढ़ने-लिखने वाले बौद्धिक लोगों का केंद्र रहा है। यहां की होने वाली गतिविधियों से प्रदेश भर को एक वैचारिक दिशा मिलती रही है। अकादमिक जगत के लोगों के लिए इस संस्थान के महत्व से सभी परिचित है। परन्तु जिस ढ़ंग से एकबारगी 14 मई वाले सेमिनार ( जिसमें ओ.पी जायसवाल, पुष्पेन्द्र तथा वाई.डी प्रसाद जैसे प्रतिष्ठित विद्वान शामिल हों ) का रद्द किया जाना निंदनीय है। जिस ढ़ंग का विषय सेमिनार के लिए चुना गया वह उन मसलों पर रौशनी डालता जिसपर अमूमन कम चर्चा होती है। आजकल फासिस्ट शक्तियां देश भर में अपने नैरेटिव से इतर हर विचार को नियंत्रित या प्रतिबंधित करती हैं। क्या बिहार जैसा प्रदेश, जिसे अब तक इन प्रवृत्तियों आए अपेक्षाकृत कम प्रभावित माना जाता रहा है, इसे दिशा में कदम बढ़ा चुका है ? यह सवाल हम सबों के मन मे तैर रहा है। केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान पटना में देश व समाज से जुड़े मसलों पर अध्ययन के लिए जाना जाता रहा है। हम इस संस्थान से जुड़े लोग 14 मई के सेमिनार को रद्द किए जाने की घटना को प्रदेश के लिए एक निरंकुश कदम के तौर पर देखते हैं। विभिन्न विषयों और बहस-मुबाहिसा, विचार-विमर्श अकादमिक स्वास्थ्य की निशानी होती है। लेकिन प्राचीन भारत में हुए विद्रोह के अछूत नायक को लेकर होने वाली बातचीत से साम्प्रदायिक शक्तियों को छोड़ किसे परेशानी हो सकती है ? वैसे भी प्राचीन भारत आज समकालीन भारत मे सबसे अधिक विवाद का केन्द्र बना हुआ है। धर्म आधारित राष्ट्र की व्याख्या के लिए प्राचीन भारत के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर अपने अनुकूल बनाने की कोशिश साम्प्रदायिक व फासिस्ट ताकतों की हमेशा से रही है। 14 मई वाले सेमिनार को रद्द किया जाना इसे रौशनी में देखा जाना चाहिए। केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान ए.एन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के प्रशासन से यह मांग करता है कि उक्त विषय पर होने वाले सेमिनार को नियत तिथि पर ही करे। साथ ही संस्थान बिहार सरकार से भी यह मांग करता है कि इस सेमिनार को कैंसल करने वाले अधिकारियों को चिन्हित कर उनपर कार्रवाई करे। बिहार की अकादमिक जगत में किसी भी किस्म के हस्तक्षेप राज्य के बौद्धिक समाज के लिए खतरे की घण्टी है। केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों से आग्रह करता है कि इस घटना की मुखालफत में आगे आएं ताकि ऐसी असहमति की आवाजों को दबाने वाली निरंकुश प्रवृत्तियों पर लगाम लगाई जा सके।
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