नयी दिल्ली, 28 मई, पूजा स्थलों के मामले में 1991 के एक कानून के खिलाफ के उच्चतम न्यायालय में एक नई याचिका दायर की गई है। भागवत कथा वाचक देवकीनंदन ठाकुर ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के प्रावधानों की वैधता को चुनौती देते हुए कहा है कि यह कानून संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। इसके साथ ही यह हिंदुओं और अन्य धर्मों के लोगों को उनके मंदिरों को अतिक्रमण मुक्त करने की मांग संबंधी अधिकारों से वंचित करता है। याचिकाकर्ता का दावा है कि 1991 के अधिनियम की धारा 2, 3, 4 ने हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के उनके पूजा स्थलों, तीर्थयात्रा और संपत्ति को (जो उनके देवताओं की है) वापस लेने के न्यायिक उपचार के अधिकार से वंचित कर दिया है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने एक अधिनियम के द्वारा घोषणा की थी कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थल और तीर्थस्थल का धार्मिक स्वरूप बना रहेगा। इस कानून को किसी भी अदालत में किसी मुकदमे के जरिए बदलाव करने की इजाजत नहीं होगी। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर 12 मार्च 2021 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। श्री उपाध्याय ने अपनी याचिका में 1991 के उस कानून की वैधता पर सवाल उठाया था और तब से लेकर अब तक इस मामले में कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं।
रविवार, 29 मई 2022
पूजा स्थलों पर 1991 के कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका
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