हम बात तेजस्वी यादव कर रहे थे। तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। लेकिन जल्दबाजी में भी नहीं हैं। जल्दबाजी का कोई लाभ भी नहीं होने वाला है। क्योंकि नीतीश कुमार 2025 तक के मुख्यमंत्री हैं। यह समय का फेर है। लेकिन तेजस्वी यादव उस स्तर पर जनाधार विस्तार का प्रयास भी नहीं कर रहे हैं, जिससे जनता में भरोसा पैदा हो कि वे गंभीर राजनीति कर रहे हैं। पहले इनका कार्यक्षेत्र 10 नंबर सर्कुलर रोड तक सीमित था, अब पार्टी मुख्यालय तक बढ़ा है। अभी भी पूरी रणनीति प्रेस कॉन्फ्रेंस और पार्टी मुख्यालय में आयोजित सभाओं को संबोधित करने तक सीमित है। हम शुरू से तेजस्वी यादव की कार्यशैली के आलोचक रहे हैं। खबरों में भी है और खेत-खलिहानों में भी। हमने राजनीतिक रूप से ज्यादा अपेक्षा कभी नहीं रखी। एक आम यादव की तरह कहें तो तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री थे, तब भी कोई जाति को फायदा नहीं था। और आज जब विपक्ष में हैं तो भी जाति को कोई नुकसान नहीं है। तेजस्वी यादव को देखने के लिए तब भी भीड़ उमड़ती थी और आज भी उमड़ती है। हम इससे आगे की बात करना चाहते हैं। हम यह बताना चाहते हैं कि तेजस्वी यादव को जनाधार विस्तार और जनता का विश्वास अर्जित करने के लिए क्या करना चाहिए। तेजस्वी यादव की राजनीतिक टीम में कौन-कौन लोग हैं, यह स्पष्ट नहीं है। जो लोग संगठन के पदाधिकारी हैं, वे उनकी वैचारिक टीम के सदस्य हों, यह भी जरूरी नहीं है। भाजपा की जिस वैचारिक और राजनीतिक टीम से तेजस्वी यादव को चुनौती मिलने वाली है या मिल रही है, इससे मुकाबले के लिए न टीम है, न वैचारिक प्रतिबद्धता। इतना स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी हाशिये की धारा हो गयी है। अब बिहार में जदयू की पहचान सरकार के रूप में है, पार्टी के रूप में वह धराशायी हो गयी है। अब जदयू को दो एमएलसी बनाने के लिए भी सहयोगी पार्टी की अनुकंपा की जरूरत पड़ेगी।
वैसी स्थिति में तेजस्वी यादव अब भाजपा के स्वाभाविक विकल्प हैं। भाजपा की वैचारिक धारा है और धारा के लिए त्याग करने वालों की बड़ी जमात है। राजद के पास कभी सामाजिक न्याय और समाजवाद की धारा थी। उसका अब अभाव दिखता है। धारा के लिए त्याग करने वाला कोई व्यक्ति पूरी समाजवादी आंदोलन में नहीं रहा है। हम यह कहना चाहते हैं कि तेजस्वी यादव को अपनी वैचारिक धारा और टीम के लिए नये सिरे से मंथन करना चाहिए। उनकी टीम में हर व्यक्ति सहमति से बंधा हुआ है। नेता की जयकारा से आगे वह सोच नहीं सकता है। हम यह नहीं कहते हैं कि उस टीम में असहमति के लिए जगह नहीं है। उस टीम में असहमति जाहिर करने वाले लोग नहीं हैं। हमने वीरेंद्र यादव न्यूज में कई आलेख प्रकाशित किये, जिसमें से कई तेजस्वी यादव को असहज भी लगा होगा, लेकिन उन्होंने उसे खारिज नहीं किया, बल्कि अपनी राय ही रखी। तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी खामी है कि पब्लिक के साथ उनका आई कंटेक्ट नहीं है। आम लोगों को वे आमने-सामने बैठाकर बात करने में विश्वास नहीं करते हैं। दरवाजे पर भीड़ खड़ी रहती है और घंटों इंतजार के बाद तेजस्वी गेट से बाहर आते हैं, दर्शन देते हैं और ओझल हो जाते हैं। इसका असर यह होता है कि जनता की समस्याओं को उतना ही समझ पाते हैं, जितना एससी में रहने वाली टीम उन्हें समझाती है। तेजस्वी यादव को भाजपा से मुकाबले के लिए नये सिरे की रणनीति बनानी होगी। अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से रणनीति तय करनी होगी। राजपूत-भूमिहार वाले इलाके लिए अलग रणनीति बनानी होगी और मुसलमान बहुल इलाकों में अलग रणनीति बनानी होगी। तेजस्वी यादव के पास लोकसभा चुनाव के लिए अभी पूरे दो साल का समय है। पिछले चुनाव के बाद से तेजस्वी यादव की राजनीतिक रणनीति ऐसी नहीं दिखी, जिससे लगे कि उन्होंने भविष्य के चुनाव को लेकर कोई बड़ी रणनीतिक कसरत की हो। नेता प्रतिपक्ष से बिहार को काफी उम्मीद है। लेकिन इसके साथ उनसे संघर्ष की भी अपेक्षा है। विधान सभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा राजद से अगले 20 वर्षों तक कोई नहीं छीन सकता है। लेकिन अण्णे मार्ग पर कब्जा के लिए तो बिहार को समझना होगा और बिहारी मिजाज को भी।
----- वीरेंद्र,वरिष्ठ संसदीय पत्रकार,पटना -------
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