यासीन के खिलाफ एक और मामला अदालत में विचाराधीन है। इसमें आरोप है कि यासीन मलिक ने अपने साथियों संग मिलकर आठ दिसंबर 1989 को जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रूबिया सईद का अपहरण किया था। यासीन को अगस्त 1990 में हिंसा फैलाने के विभिन्न मामलों में पकड़ा गया और 1994 में वह जेल से छूटा। उसने अपना आतंकी चोला बदलने की कोशिश भी की और एलान किया कि वह अब बंदूक नहीं उठाएगा और महात्मा गांधी की राह पर चलेगा लेकिन कश्मीर की आजादी के लिए उसकी जंग जारी रहेगी। यासीन मलिक पर साल 1990 में पांच भारतीय एयरफोर्स के जवानों की हत्या का भी आरोप है। 25 जनवरी 1990 को सुबह साढ़े सात बजे रावलपोरा(श्रीनगर) में एयरफोर्स अधिकारियों पर हुए आतंकी हमले में तीन अधिकारी मौके पर ही शहीद हो गए थे जबकि दो अन्य ने बाद में दम तोड़ दिया था। वाहन का इंतजार कर रहे वायु सेना के अधिकारियों पर आतंकियों ने अंधाधुंध गोलीबारी की थी। इस हमले में एक महिला समेत 40 अधिकारी गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। इधर,कुछ मानवाधिकारवादी और अन्य भद्रजन यासीन को निर्दोष बताने का वृथा जतन कर रहे हैं। पहले भी याकूब मेमन,अफजल गुरु,बुरहान वानी आदि खूँख्वार आंकवादियों के पक्ष में हमारे यहां आवाज़ उठी थी।हालांकि ये सभी आतंकवादी देश-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाए गए थे, फिर भी हमारे यहां के तथाकथित भद्र-पुरुषों ने इनके प्रति सहानुभूति प्रकट की।क्या इस आचरण से यह निष्कर्ष निकाला जाय कि सदाचार के प्रति हम उत्तरोत्तर उदासीन और कदाचार के प्रति रुचिशील होते जा रहे हैं? दुष्ट का यशोगान क्यों?नराधम का बचाव क्यों? मीडिया खास तौर पर टीवी चैनलों को चाहिए कि वे दुष्ट और धूर्त को बिल्कुल भी ‘ग्लोरिफाइ’ या कवर न करें और अगर करना ही पड़े तो उस पापी का मात्र ‘समाचार’ देने तक अपने को सीमित रखे।
डॉ० शिबन कृष्ण रैणा
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