आखिर पढ़ने-लिखने की कोई तय उम्र नहीं होती है. इसके बाद बेटे द्वारा प्रेरित किए जाने पर उन्होंने वर्ष 2012 में दोबारा से इंटर की परीक्षा दी. हालांकि उस वक्त आशा को सफलता नहीं मिली लेकिन उन्होंने हार ना मानने के बजाय पुन: वर्ष 2015 में इंटर का फॉर्म भरा और फर्स्ट डिवीजन से पास हुई. उसके बाद आशा का उत्साह दोगुना हो गया और उन्होंने फर्स्ट डिवीजन के साथ ग्रेजुएशन भी कंप्लीट किया. वर्तमान में आशा एक स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ झारखंड के कोल्हान यूनिवर्सिटी से हिंदी साहित्य में एमएम कर रही हैं. आशा कहती हैं कि शुरू में उनके पति और ससुराल वाले उनके दोबारा पढ़ने के निर्णय से सहमत नहीं थे, लेकिन आज वह सभी आशा की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करते हैं. मूल रूप से धनबाद की रहने वाली दीपिका बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी. वर्ष 2001 में इंटर करने बाद आगे पढ़ना चाहती थीं लेकिन अपने तीन बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी होने के कारण मां-बाप ने उसी साल अच्छा घर-परिवार मिलने पर एक बिजनेसमैन से दीपिका की शादी कर दी. शादी के बाद एक संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियां निभाने और दो बेटों के परवरिश के कारण दीपिका की पढ़ाई ठहर-सी गई. करीब 10 वर्षों बाद अपने भाई-बहनों द्वारा प्रेरित किये जाने पर दीपिका ने धनबाद के पीके मेमोरियल कॉलेज से हिंदी साहित्य में स्नातक किया. आगे वर्ष 2015 में रांची यूनिवर्सिटी से एमए में एडमिशन लिया और उसमें अपने विषय की पीजी टॉपर होने के साथ ही डिपार्टमेंट टॉपर भी रहीं. उसके बाद दीपिका ने तीन वर्षों तक एक स्थानीय स्कूल में बतौर टीचर जॉब किया फिर डीएलएड किया. दीपिका कहती हैं कि शादी के बाद ससुराल में किसी भी महिला का सबसे बड़ी ताकत उसका जीवनसाथी होता है. अगर वह उसे सपोर्ट करता है, तो फिर किसी भी उम्र और परिस्थिति में रहते हुए कोई भी महिला कुछ भी कर सकती है. दीपिका की शिक्षा में भी उनके पति तथा मायके का पूरा सहयोग रहा.
पटना निवासी रश्मि झा की शादी वर्ष 1999 में इंटर पास करते ही हो गई थी. उन्होंने अपनी दो बेटियों के जन्म के बाद दोबारा करीब 12 वर्षों बाद पटना विमेंस कॉलेज के वुमेन स्टडीज कोर्स में एडमिशन लिया. रश्मि बताती हैं कि ''मैं एक बार घर में रोजमर्रा के खर्चों का हिसाब लिखने के लिए बाजार से एक कलम खरीद कर लाई थी. हिसाब लिखने के दौरान ही मन में यह ख्याल आया कि क्या मैं इसका और कुछ बेहतर इस्तेमाल नहीं कर सकती? बस वहीं से मेरे जीवन की दिशा बदल गई. मैंने अगले ही दिन जाकर वुमेन स्टडीज के ग्रेजुएशन कोर्स का पता किया और कुछ समय बाद एडमिशन के लिए अप्लाई कर दिया. रश्मि बताती हैं कि करीब 12 वर्षों बाद जब मैंने दोबारा अपनी पढ़ाई शुरू की, उस वक्त मैं अपने क्लास की सबसे सीनियर स्टूडेंट थी. पहले दिन तो सारी लड़कियों ने मुझे ही टीचर समझ लिया था मगर फिर धीरे-धीरे सब एडजस्ट हो गई." आगे फिर उसी विषय से एमए किया और उसी कॉलेज में बतौर टीचर पढ़ाने लगी.'' हमारे आसपास ऐसे और भी कई उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक महिला एक गृहणी, एक मां, एक पत्नी, एक बहु समेत और भी अनेक जिम्मेदारियों को निभाते हुए शिक्षित होकर आगे बढ़ रही हैं. कहा जाता है कि अगर आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं, तब केवल एक व्यक्ति शिक्षित होता है और जब एक महिला शिक्षित होती है, तब पूरा परिवार शिक्षित होता है. शिक्षा का अधिकार जितना पुरुषों का है, उतना ही एक महिला का भी है. इन महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि उम्र चाहे जितनी भी हो, शिक्षा की कोई उम्र नहीं होती है.
पटना, बिहार
(चरखा फीचर)
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