नई दिल्ली, हम सभी के जीवन में कोविड-19 महामारी का बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। वायरस होने और इसकी जटिलताओं से जुझने संबंधित चिंताओं, निकटतम और प्रियजनों की मृत्यु और लंबे समय तक चले लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई सामाजिक दूरी की स्थिति ने निश्चित रूप से हमारी दुनिया को उलट कर रख दिया। महामारी के मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में अभी भी अध्ययन किया जा रहा है। एक कला के रूप में, जो कि सामाजिक भावनाओं, विचारों और चिंताओं को कैप्चर करता है, इन सभी घटनाओं की ओर फिल्में अपनी आंखें कैसे मूंद सकती हैं? इसलिए यह बहुत ही सामान्य है कि फिल्म निर्माता अपनी कहानी बयां करने के लिए कोविड महामारी को अपने विषय के रूप में चुनते हैं। वर्तमाम समय में चल रहे मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के 17वें संस्करण में भी कोविड-19 महामारी विषय पर उत्कृष्ट फिल्मों का एक समूह प्राप्त हुआ है। ये फिल्में कोविड के दौरान मानवीय बातचीत, इसके तनावों, बोरियत और अलगाव जैसे मुद्दों का एक मिश्रित बैग प्रदर्शित करती हैं। इन फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता, राष्ट्रीय प्रतियोगिता, उत्तर-पूर्व फिल्म पैकेज, छात्र फिल्म, मैक्सिकन एनिमेशन पैकेज और पोलैंड पैकेज जैसे विभिन्न संभागों में फैलाया गया है। आइए एक नज़र डालते हैं #एमआईएफएफ2022 की उन फ़िल्मों पर जो हमें कोविड समय की याद दिलाते हैं।
ओसीडी
यह फिल्म कोविड-19 के वैश्विक क्वारंटाइन के समय का है जिसने एक युवा जोड़े के वैवाहिक जीवन को जटिल बना दिया है। पति आसक्त है और पत्नी उसकी संवेदनाओं को नहीं समझ पाती है। आज, पिछले सभी वर्षों की तरह, एक बहस होनी चाहिए थी, लेकिन चीजें अलग तरह से निकल जाती हैं।
2. टूगेदर
यह फिल्म कोरोनोवायरस की दूसरी लहर के दौरान बनी है, जो अत्यधिक सामूहिक चिंता का समय है। मुनमुन, एक प्रवासी घरेलू कामगार और उसकी नियोक्ता, रेखा, जो एक-दूसरे के साथ संघर्ष करते हैं, महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान खुद को एक ही छत के नीचे पाते हैं। मुनमुन को रेखा के पति राजेंद्र, जो कि कोविड-19 से गंभीर रूप से संक्रमित हैं और रेखा जो कि एक पुरानी गठिया रोगी है, उसकी देखभाल करनी पड़ती है। चूंकि मुनमुन की अपनी 16 वर्षीया बेटी भी संक्रमित हो जाती है, इसलिए मुनमुन को तत्काल अपने घर वापस जाना पड़ता है जबकि राजेंद्र की हालत बहुत खराब हो जाती है। यह फिल्म भावनाओं और वर्ग मतभेदों के बदलते स्वरूप के बारे में बताती है जब एक साथ मिलकर संकट का सामना किया जाता है।3. द अनसर्टेन इयर्स (हुन कीरह)
जब कोविड-19 महामारी ने दस्तक दी, तो पूरे देश में लॉकडाउन लग गया था। मिजोरम में भी जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। एक फिल्म निर्माता लॉकडाउन के पहले दिन से अपने कैमरे के माध्यम से अपने आसपास की घटनाओं का आवलोकन करता है। यह फिल्म हमें महामारी के दौरान जीवन की एक आंतरिक झलक प्रदान करती है और समाज द्वारा, दोनों आम जनों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं जैसे चिकित्सा स्वयंसेवकों द्वारा इसे संभालने के बारे में बताती है।
4. हालात
यह फिल्म एक खाली बॉक्स में एक शून्य की तरह लॉकडाउन-स्थिरता और विचारों की प्रस्तुति करती है। गुजरते हुए समय का कोई मतलब नहीं है। केवल खालीपन। एक अनिश्चित कल की चिंताएं, उत्साह और मिश्रित उम्मीदें।
5. डेड्रीमिंग
लॉकडाउन के दौरान एक कलाकार घर के दिवास्वप्नों में फंस जाता है।
6. अटेंशन एट टेंशन
यह फिल्म एक निर्माता की उसकी चिंताओं को दर्शाती है जो महामारी के दौरान उसपर गुजरता है। जैसे-जैसे उसके मन में सवाल उठते हैं, वह जवाब पाने की उम्मीद में जर्नल प्रविष्टियाँ बनाकर इस बात पर विचार करती है कि वह क्या कर रही है।
7. इफ...इफ...इफ
यह फिल्म लॉकडाउन की वास्तविकताओं को दर्शाती है। यह एकांतवास के दर्द को दर्शाता है कि दुनिया भर में मनुष्य इतने लंबे समय तक प्रकृति से अलग रहने के बाद कैसे पीड़ित महसूस करते हैं।
8. सर्चिंग फॉर द नेरेटिव
यह फिल्म 2020 में भारत में लगे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के आठ महीनों के दौरान एक ऐसे परिवार के जीवन के बारे में बताती है जो एक साथ रहने में असहज महसूस करते है।
9. माई डीयर क्वारंटीन
फिल्म महामारी से जुड़ी हुए एक साधारण कहानी है, जो अलगाव, अकेलेपन और बोरियत के समय पर एक काव्य चित्रण करती है।
पीआईबी एमआईएफएफ टीम| बीएसएन/ एए/ डीआर/ एमआईएफएफ- 45
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