( अभियान सांस्कृतिक मंच द्वारा गान्धी संग्रहालय में हुआ भगवान प्रसाद सिन्हा की पुस्तक 'इबारतें' का लोकार्पण)
पटना । अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना के ततबधान में चर्चित लेखक भगवान प्रसाद सिन्हा की पुस्तक ' इबारतें' का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण करने वालों में थे प्रो नवल किशोर चौधरी, अरुण मिश्रा, नरेंद्र कुमार, प्रेम कुमार मणि, अरुण सिंह, अनिल कुमार राय और योगेश चन्द्र वर्मा । लोकार्पण समारोह में बड़ी संख्या में पूर्णिया, बेगुसराय तथा पटना शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रँगकर्मी, संस्कृतिकर्मी ,सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद थे। शुरुआत में युवा कवि सुधांशु ने एक अंग्रेजी कविता के अनुवाद का पाठ किया। पुस्तक ' इबारतें' के लेखक भगवान प्रसाद सिंह ने अपनी पुस्तक के संबन्ध में मार्क्स, लेनिन, ग्राम्शी, स्टालिन आदि का उदाहरण देते हुए अपने वैचारिक यात्रा से अवगत कराते हुए कहा " मैं नवोदय विद्यालय का शिक्षक था। उसने मुझे शिक्षार्थी बनाया। बाहर में एक्टीविस्ट दुनिया थी जहां नौकरी छोड़कर जाना पड़ता था। बोढ़न प्रसाद सिंह साठ साल तक बेगुसराय के सामाजिक-राजनीतिक जीवन के प्राण थे। कोरोना में बंटी और मुचकुंद मोनू के असमय मौत से बेहद दुखी था। फेसबुक से पहलक़दमी लेकर हमारे छात्रों ने कोरोना के दौरान काफी कार्य किया बहुतों की जान बचाई। मैं विचार के आधार पर लड़ने की बात करता हूँ। वामपन्थी इतिहासकारों ने पहली बार अंग्रेजों से इतर किसानों-मज़दूरों को केंद्र कर इतिहास लिखा। उनके योगदान को कोई नकारा नहीं जा सकता। जिस गांधी ने लेनिन की मौत पर शोक प्रस्ताव नहीं पास होने दिया था आज उसी गान्धी को बचाने का काम लेनिनवादी लोग कर रहे हैं। यदि कथनी व करनी में फर्क होगा तो कम्युनिस्ट नहीं हो सकता।" शिक्षाविद अनिल कुमार राय ने परचर्चा की शुरुआत करते हुए कहा " भगवान प्रसाद सिन्हा की यह पुस्तक 'इबारतें' फेसबुक के पोस्टों के आधार पर बनाई गई है। यह पुस्तक छह खंडों में विभक्त है। उनके फेसबुक पोस्टों से सीखने का अवसर मिलता रहा है। भगवान प्रसाद सिन्हा उन कुछ लोगों में हैं जिनकी वजह से फेसबुक जैसा माध्यम गंभीर बना हुआ है। यदि हम किसी पत्रिका के लिए लेख लिखते हैं तो सामग्री जुटाते हैं, आलेख को समृद्धतर करने की कोशिश करते हैं। भगवान प्रसाद सिन्हा की टिप्पणियां ' सपाउंटेनियस ओवरफ्लो और पावरफुल फ़ीलीनग्स' की तरह होता है। पुस्तक आपको कभी ऊबने नहीं देता। लेखक ने बार-बार अपनी मार्क्सवादी पक्षधरता को स्पष्टता के साथ कहा है। एक अंतर प्रवाह से लेख अन्तरगुन्धित हैं। जिनमे हिंदी, उर्दू, लैटिन लिपि को भी अपना कर उदारता बरती गई है।" चर्चित लेखक नरेंद्र कुमार कुमार ने 'इबारतें' पुस्तक पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा " भगवान प्रसाद सिन्हा अपने कई लेखों में एक्टीविस्ट की तरह खड़े दिखते हैं। कई ऐतिहासिक व्यक्तित्व को इसमें समेटा गया है। तीखे वैचारिक डिस्कोर्स है , तथ्य है, गति है इसमें। फेसबुक के रचनाओं की एक सीमा होती है। हम एक ऐसे दौर में है जब एक लड़ाई घर-घर में छिड़ी हुई है। विचारधारा के महासमर में है जहां वैचारिक प्रतिबद्धता के बगैर यह लड़ाई जीती नहीं जाती। जहां विचार का संघर्ष होगा प्रतिक्रियावादी शक्तियों के खिलाफ उदारतावाद के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।"साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने अपनी राय प्रकट करते हुए कहा " इस विचारहीन समय मे यह पुस्तक विचारोत्तेजक लगी। यह किताब तीन सौ बारह पृष्ठों की किताब है और 64 आलेख है। फेसबुक पर भले यह पोस्ट हो लेकिन मेरे लिए आलेख है। फेसबुक की ताकत का इस्तेमाल 2014 में मोदी ने किया। दूसरे समाजवादी लोग इसे काम की चीज नहीं मानते थे। मैं भी उसका शिकार था। ग्राम्शी का नोटबुक लिखा गया 1936-37 में लेकिन छपा 1971 में। इन्होंने स्टीफंस हॉकिंग पर लिखा है। छोटी-छोटी टिप्पणियां लिखी हैं। आज हमारा मुल्क किंस दिशा में बढ़ रहे हैं इसपर थोड़ा ध्यान देना चाहिए। नेहरू, गांधी, सोशलिस्टों, कम्युनिस्टों ने जो सपना देखा था वह किस हाल में है। दुनिया को एक करने की सनक में गई युद्ध होता है। दुनिया को एक ही विचारधारा पर करने की कोशिश से तनाव की स्थिति बनती है।हम देख रहे हैं कि अमेरिका, रूस में किंस तरह का समाज बन रहा है। सामाजिक न्याय प्राकृतिक न्याय से बेहतर होता है।सामाजिक न्याय कमजोर लोगों को सामने लाने की कोशिश करता है।" पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो नवल किशोर चौधरी ने कहा " हमलोग जिस समाज के लिए लिखते हैं उसका आम लोगों तक भी पहुंचना चाहिए खासकर पॉपुलर लेखन। जैसे अमर्त्य सेन के तकनीकी लेखन को समझना सबके लिए आसान नहीं है । गंभीर लेखन का कोई स्थानापन्न नहीं हो सकता लेकिन हमें लोकप्रिय ढंग से भी बात करनी चाहिए। आजकल प्रोफेसर लोगों को भी गंभीर चीजें पढ़ने करने की फुर्सत नहीं ऐसे में ऐसे में यह किताब गंभीर चीजों को सरल भाषा में लाती है। आज व्यवस्था को हमें ब्राइब करने की क्षमता बढ़ गई है। तर्क व इतिहास दोनों का पूंजीवाद ने इस्तेमाल किया सामंतवाद के खिलाफ लेकिन जब पूंजीवाद स्थापित हो गया तो उसी ने उसे छोड़ दिया क्योंकि तर्क व इतिहास दोनों उसके खिलाफ जाता था। आज सभी तरह के लोग तर्क व इतिहास से भाग रहे हैं।" एस. यू.सी.आई के राज्य सचिव अरुण सिंह ने अपने संबोधन में कहा" मेरा भगवान प्रसाद सिन्हा ने पुराना संबन्ध रहा है। मैं डी. एस. ओ से जुड़ा था जबकि ये एस. एफ.आई से थे। इनमें वैचारिक कट्टरता कभी भी न थी। दूसरों की बातों को भी सुनते थे। शुरू से ही काफी कुशाग्र बुद्धि के थे, बहुआयामी चरित्र था इनका। जैसे लेनिन को गोर्की मिले, गांधी को रवींद्रनाथ मिले यदि वैसा कुछ इनको मिला होता तो ये बहुत कुछ कर सकते थे।" सुनील सिंह ने कहा " मैं भगवान प्रसाद सिन्हा को फॉलो करता रहा हूँ। ये सोशल मीडिया जे बादशाह है। प्रगतिशील-जनवादी लोगों को इनका उपयोग करना चाहिए। लंबे समय से, सिलसिलेवार तरीके से बहस चलाते रहे हैं। आज कम्युनिकेशन का उपयोग भाजपा जैसी पार्टियां दुष्प्रचार करती है लेकिन कुछ ही लोग उसका काउंटर करते हैं। भगवान प्रसाद सिन्हा उन चंद लोगों में हैं। मुझे आश्चर्य होता है इनके द्वारा कवर किए गए विषयों को लेकर। गहन व सूक्ष्म रूप से लिखा करते हैं। स्टीफ़न हॉकिंग से लेकर तुलसी तक पर इन्होंने लिखा है। अजीत सरकार और ए.के राय जैसे लोगों पर ऊनी राय रखा।"
शिक्षाविद सर्वेश कुमार के अनुसार " भगवान जी के बारे में कहना मेरे लिए दुविधा रही है। यह पुस्तक बोढ़न प्रसाद सिंह, मुचकुंद दुबे जैसे लोगों को समर्पित है जो कोविड के शिकार हुए। एक सजग नागरिक के रूप में गुजरें और सूत्रों को पकड़ने की कोशिश करें तो उसे लंबी दूरी तक ले जाया सकता है। उनकी साहसिकता सँवाद की जरूरत को महसूस कराता है।" प्रगतिशील लेखक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नूतन आनन्द ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा " मैं इनके संपर्क में न आती तो वामपन्थी विचारधारा की। समर्थक न बनी होती। यदि इतिहास को हम नहीं पढ़ेंगे तो झूठी इबारतें खड़ी हो जाएंगी। युवा मुस्तकबिल के टूटने का दौर है। इस किताब के संदेश को लोगों के बीच ले जाने की जरूरत है।" कार्यक्रम की अध्यक्षता कम्युनिस्ट नेता अरुण मिश्रा ने कहा " सोशल मीडिया नई विधा है। भगवान प्रसाद सिन्हा इस नए माध्यम में काम करते हैं जिससे मैं बहुत प्रभावित रहा हूँ। आज का युवा वर्ग सोशल मीडिया और व्यतीत करता है। हमदोनों एक साथ ही एस. एफ.आई में काम करते रहे हैं। शिक्षक, एक्टीविस्ट के साथ-साथ जनवादी लेखक संघ से भी जुड़े रहे हैं। कांट ने अपने दर्शन के माध्यम से स्वर्ग पर हमला बोला। लेकिन अंत में भाग्यवादी हो जाता है। अपनी आलोचना में अपना वर्गीय दृष्टिकोण नहीं छोड़ना चाहिए। अन्यथा उदारतावाद के शिकार होंगे। तेलंगाना, तेभागा के साथ देश के नए शासक वर्ग ने क्या किया था उसे भी नहीं भूलना चाहिए। इस किताब से बहस आगे बढ़े तो यही इसकी सार्थकता होगी। " कार्यक्रम को अवकाश प्राप्त पुलिस पदाधिकारी उमेश कुमार सिंह, साइंस कॉलेज के प्राध्यापक अखिलेश कुमार, पत्रकार नीलांशु रंजन, नूतन आनंद आदि ने भी संबोधित किया। लोकार्पण समारोह का संचालन रँगकर्मी जयप्रकाश ने किया । कार्यक्रम में प्रमुख लोगों में मौजूद थे नीरज कुमार, अजय कुमार, विश्वजीत कुमार , सुमन्त शरण, उमेश कुमार सिंह, प्रकाश विप्लवी, गौतम गुलाल, विनीत राय, राकेश कुमार, उदयन राय, अमन कुमार, जीतेन्द्र कुमार, नूतन आनन्द, देवानन्द, विस्मित पराग, नवेन्दु प्रियदर्शी, अमरनाथ, गालिब खान, सुनील सिन्हा, मणिभूषण, अखिलेश कुमार, रामजीवन सिंह, चन्द्रनाथ मिश्रा, शशि सागर, राजकुमार शाही, अनीश अंकुर, सुशांत आदि ।
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