- कर्ज व भूख से हुई मौतों पर सरकर की संवेदनहीनता के खिलाफ माले का राज्यव्यापी प्रदर्शन
- विद्यापति नगर व पातेपुर की घटना पर संझान ले सरकार, कर्जों को माफ करे
- नोटबंदी, कोरोना, लाॅकडाउन व बढ़ती महंगाई ने आम लोगों की कमर तोड़ दी है.
पटना, 11 जून, 6 जून को समस्तीपुर जिले के विद्यापतिनगर प्रखंड अंतर्गत मउ गांव में कर्ज के दबाव में एक ही परिवार के 5 लोगों द्वारा सामूहिक आत्महत्या और वैशाली जिले के पातेपुर में भूख से तंग आकर एक ही परिवार के 5 सदस्यों द्वारा जहर खाकर मौत की हृदयविदारक घटना के खिलाफ आज भाकपा-माले, खेग्रामस व ऐपवा से जुड़ी स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति के बैनर से राज्यव्यापी प्रतिवाद दर्ज करते हुए कर्जा मुक्ति दिवस का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम के तहत आज राजधानी पटना में कारगिल चैक पर कर्जा मुक्ति दिवस का आयोजन किया गया. जिसे ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, एआइपीएफ के कमलेश शर्मा, पटना नगर सचिव अभ्युदय, ऐक्टू के राज्य सचिव रणविजय कुमार, ऐपवा की अनिता सिन्हा आदि ने संबोधित किया. कार्यक्रम का संचालन ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव ने किया. मौके पर पार्टी के वरिष्ठ नेता केडी यादव, शंभूनाथ मेहता, नसीम अंसारी, जितेन्द्र कुमार, अनुराधा देवी, अनय मेहता, आइसा नेता कुमार दिव्यम, संतोष पासवान सहित दर्जनों पार्टी कार्यकर्ता उपस्थित थे. सभा को संबोधित करते हुए ऐपवा महासचिव ने कहा कि विद्यापतिनगर व वैशाली के पातेपुर की हृदयविदारक घटना पर बिहार सरकार का रवैया बेहद संवेदनहीन बना हुआ है. डबल इंजन की सरकार में परिवार के परिवार कहीं कर्ज के बोझ तले आत्महत्या करने को विवश हैं, तो कहीं भूख के कारण मौत को गले लगा रहे हैं. दोनों घटनाओं में 10 लोगों की मौत हुई है. इसका जिम्मेवार कौन है? हमारी सरकार बड़े-बड़े दावे करते नहीं अघाती लेकिन भूख से हो रही मौतों का लगातार विस्तार होना बेहद चिंताजनक है. हमने बारंबार कहा कि आम लोगों को कर्जे के फंदे से बाहर निकालने के बारे में सरकार का ठोस उपाय करे. कोरोना काल में भी माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने कर्ज वसूली में बेहद अमानवीय रूख अपनाया. लोग कर्ज लेकर अपनी जिंदगी चलाने को विवश हैं. उनके पास रोजगार के कोई दूसरे उपाय नहीं है. कर्ज का फंदा ऐसा है कि उन्हें अंततः वे आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं. सरकार इन कर्जों की माफी क्यों नहीं कर रही है? शशि यादव ने अपने संबोधन में कहा कि नोटबंदी, कोरोना, लाॅकडाउन और बढ़ती महंगाई ने आम लोगों की कमर तोड़ दी है. बड़ी आबादी के पास रोजगार के कोई उपाय नहीं है. गरीबों के साथ-साथ छोटे व्यवसायी और किसान आज अपनी जिंदगी गुजर बसर करने के लिए महाजनी, माइक्रोफाइनसेंस कंपनियों आदि से कर्ज ले रहे हैं, जिसका सूद चक्रवृद्धि ब्याज की दर से बढ़ता है. हालत ऐसी हो जाती है कि कर्ज चुकाने के लिए फिर कर्ज लेना पड़ता है. और इस प्रकार वे कर्ज के भंवर में उलझ जाते हैं. कमलेश शर्मा ने कहा कि सरकार को चाहिए था कि संकट से घड़ी से उबारने के लिए प्रत्येक गैर आयकर दाता परिवार को प्रति माह जीवन चलाने के लिए न्यूनतम 7500 रु. उन्हें नगद दिया जाता. यह लंबे समय से मांग रही है, लेकिन सरकार इसे अनसुना करती रही है. जिस प्रदेश में भूख से हाहाकारी मौतें हों, वहां खाद्य पदार्थों से एथेनाॅल बनाया जा रहा है. इसी से बिहार सरकार की असली मंशा समझ में आ जाती है. अन्य वक्ताओं ने मांग की कि महाजनी सूदखारी पर सरकार अविलंब रोक लगाए, क्योंकि यह आम लोगों की तबाही का सबसे बड़ा कारण है. और 5 लाख तक के सभी कर्जे माफ किए जाएं साथ ही, मृतक परिवार को 20 लाख रू. का तत्काल मुआवजा देने तथा बच रहे परिजनों की दबंग सूदखोरों से पूरी सुरक्षा देने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएं. राजधानी पटना के अलावा बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा, हिलसा, गया, अरवल, आरा, सिवान, पूर्णिया, नवादा आदि स्थानों पर भी कर्जा मुक्ति दिवस मनाया गया.
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