- काॅरपोरेट लूट व बुलडोजर राज के खिलाफ बिरसा मंुडा की विरासत के साथ लड़ाई जारी है.
पटना 9 जून, भाकपा-माले ने उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के प्रखर योद्धा शहीद बिरसा मुंडा को उनके 122 वें स्मृति दिवस पर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है. पार्टी राज्य कार्यालय में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में पार्टी महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य सहित बिहार पार्टी सचिव कुणाल, अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव राजाराम सिंह, खेग्रामस महासचिव धीरेन्द्र झा, कविता कृष्णन, बगोदर से माले विधायक विनोद सिंह, झारखंड के राज्य सचिव मनोज भक्त, बंगाल से वरिष्ठ पार्टी नेता कार्तिक पाल, रामजी राय, जनार्दन प्रसाद, प्रभात कुमार चैधरी, रूबुल शर्मा, अमर, वी. शंकर व अरिंदन सेन, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर आदि नेताओं ने उनकी तस्वीर पर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. इस मौके पर माले महासचिव ने कहा कि बिरसा मुंडा की क्रांतिकारी विरासत के साथ काॅरपोरेट लूट और बुलडोजर राज के खिलाफ संघीय-लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष भारत में आदिवासी अधिकार व सांस्कृतिक विविधता की रक्षा की लड़ाई जारी है. आजादी के 75 साल के मौके पर जनता को और ताकत मिले. विदित हो कि एक छोटे बटाईदार के बेटे बिरसा मुंडा (1875-1900) के नेतृत्व में छोटानागपुर के इलाके में मुंडा समुदाय ने ब्रिटिश हुक्मरानों, जागीरदारों व ठेकेदारों के खिलाफ जबरदस्त विद्रोह हुआ था. बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आदिवासी समुदाय ने गांव-गांव बैठकें की और ब्रिटिश राज के पुतले फूंके. सैल रकाब की पहाड़ी पर लड़ी गई लड़ाई हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की एक ऐतिहासिक लड़ाई है. जिसमें सैंकड़ों की संख्या में लोग शहीद हुए. हालांकि सैल रकाब की पहाड़ी पर विद्रोह की पराजय हुई और ब्रिटिश सरकार ने जनवरी 1900 मे बिरसा मुंडा को पकड़कर जेल में डाल दिया. 5 महीने बाद आज ही के दिन 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा की मौत हो गई. लेकिन यह बिरसा मुंडा के नेतृत्व में लड़ी गई उस ऐतिहासिक लड़ाई का ही नतीजा था कि ब्रिटिश सरकार ाके छोटानागपुर में 1902-1910 का भूमि सर्वेक्षण व बंदोवस्ती की कार्रवाई करनी पड़ी और 1908 में ही छोटानागपुर टेनेंसी ऐक्ट बना जिसने खूंटकट्टी को कानूनी मान्यता प्रदान की. इस प्रकार मुंडा समाज ने अपनी लड़ाई के बल पर बिहार के समतल किसानों की तुलना में पूरी एक पीढ़ी पहले भूमि पर अधिकार का अपना कानूनी हक पाया था.
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