जल-जंगल-ज़मीन पर विध्वंसकारी गतिविधियाँ बंद हों
मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ संदीप पांडेय कहते हैं कि यदि मनुष्य जल-जंगल-ज़मीन पर विध्वंसकारी गतिविधियाँ जारी रखेगा, जलवायु परिवर्तन को और बढ़ाएगा या दवाओं का लापरवाही से दुरुपयोग करेगा तो मानव स्वास्थ्य सुरक्षा कैसे मिलेगी? मानव स्वास्थ्य सुरक्षा चाहिए तो प्रदूषण, वनों की कटाई, पशु पालन में अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना दवाओं का उपयोग, और हम कैसे भोजन उगाते, बाँटते और ग्रहण करते हैं, इसपर भी ध्यान देना होगा क्योंकि हम सबका स्वास्थ्य इन पर भी निर्भर है।
“जूनौटिक रोग” वो हैं जो मानव और पशुओं में संक्रमित होते हैं
अब टीबी को ही ले लें। डॉ फ़्रेड क्विन जो इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टुबर्क्युलोसिस एंड लंग डिजीस के जूनौटिक टीबी-विज्ञान के अध्यक्ष हैं, कहते हैं कि दुनिया के सभी देशों ने संकल्प लिया है कि २०३० तक टीबी उन्मूलन हो जाएगा परंतु पशुओं से जो टीबी मानव आबादी में आती है उससे भी तो निजात मिलनी होगी। कुल टीबी रोगियों में से 1.4% ऐसे हैं जिनको टीबी पशुओं से होती है – यह प्रतिशत तो कम लग रहा होगा परंतु यदि इनकी संख्या देखें तो 140,000 लोग इस जूनौटिक टीबी से हर साल संक्रमित होते हैं। यदि हर जीवन मूल्यवान है तो यह नि:संदेह नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसीलिए पिछले अनेक सालों से यह समझ विकसित हुई है कि मात्र रोग नियंत्रण से रोग नियंत्रित नहीं होगा। लोग अस्पताल जा सकें, बिना विलम्ब अपना इलाज करवा सकें, आदि, के लिए एकीकृत स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा अत्यंत अहम है। इससे भी ज़्यादा अहम बात यह है कि हमारी मानव आबादी क्यों उन रोगों से ग्रसित है जिनसे काफ़ी हद तक मूलतः बचाव मुमकिन है? यह सरकार की मूल ज़िम्मेदारी है कि रोग उत्पन्न करने वाले कारणों पर विराम लगे। चाहे वह तम्बाकू हो या तरल पदार्थ वाले हानिकारक पेय या अन्य फ़ास्ट-फ़ूड? इसी तरह से ग़रीबी और सामाजिक असुरक्षा और शोषण और बहिष्कार के कारण भी लोग अनावश्यक रोगों को झेलते हैं। आख़िर क्यों टीबी को ग़रीबों की बीमारी की तरह देखा जाता है? टीबी अमीरों को भी होती है पर ग़रीबी और सामाजिक असुरक्षा से जुड़े अनेक कारण ऐसे हैं जो टीबी होने का ख़तरा बढ़ा देते हैं। इसीलिए यदि टीबी का अंत करना है तो उन सब कारणों का भी अंत करना होगा जिनके कारण टीबी होने का ख़तरा बढ़ जाता है जैसे कि, कुपोषण।
वादे हुए हैं वैश्विक स्तर पर, पूरे होंगे ज़मीनी स्तर पर
ज़मीनी या स्थानीय स्तर पर कार्य करने से ही तो सतत विकास के वैश्विक लक्ष्य पूरे होंगे। उदाहरण के तौर पर, यदि दुनिया को टीबी मुक्त करना है तो एक-एक इंसान और पशु को टीबी मुक्त करना होगा। यदि कोई भी इंसान या पशु, सेवाओं से वंचित रह गया तो टीबी मुक्त होने में दुनिया असफल हो जाएगी। इसीलिए यह ज़रूरी है कि सबका एकीकृत स्वास्थ्य और विकास कैसे हो, यह स्थानीय स्तर पर नियोजित किया जाए। स्वास्थ्य और सामाजिक विकास सुरक्षा कैसे सब तक पहुँचे, कोई गरीब या ग्रामीण या अन्य दूर-दराज क्षेत्र में रहने वाला इंसान या पशु, इन सेवाओं से छूट न जाए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
जब 'बर्ड फ़्लू' महामारी फैली थी तो दुनिया की सभी सरकारें चेती कि मानव स्वास्थ्य सुरक्षा का तालमेल पशु पालन और पशु स्वास्थ्य से भी है। इसीलिए "वन हेल्थ" (एकीकृत स्वास्थ्य) सोच के तहत, सभी सरकारें एकजुट हुई कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर कैसे एकीकृत होकर कार्यसाधकता के साथ काम किया जाए। 2008 की उच्च-स्तरीय मंत्रियों की वैश्विक बैठक में "वन हेल्थ" (एकीकृत स्वास्थ्य) को सर्व-सम्मति से पारित किया गया। यह प्रक्रिया बढ़ती गयी और आख़िरकार, मानव स्वास्थ्य पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य संस्था - विश्व स्वास्थ्य संगठन, पशु स्वास्थ्य पर केंद्रित - वर्ल्ड ऑर्गनिज़ेशन फ़ोर ऐनिमल हेल्थ, और खाद्य और कृषि पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र की संस्था - फ़ूड एंड ऐग्रिकल्चर ऑर्गनिज़ेशन, तीनों ने एकीकृत स्वास्थ्य पर कार्य करने के लिए एक साझा मंच बनाया – जिसका स्वरूप मई 2018 में अधिक ठोस हुआ। नवम्बर 2020 में इस साझा मंच से, संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संस्था - यूनाइटेड नेशंस इन्वायरॉन्मेंट प्रोग्राम - भी जुड़ी। नवम्बर 2011 में, मेक्सिको में सम्पन्न हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में उपरोक्त संस्थाओं के विशेषज्ञों ने निर्णय लिया था कि एकीकृत स्वास्थ्य की अवधारणा को ज़मीन पर उतारने के लिए, तीन मुद्दों पर कार्य किया जाए। यह तीन मुद्दे थे: रेबीज़, दवा प्रतिरोधकता (एंटी-मायक्रोबीयल रेज़िस्टन्स), और बर्ड फ़्लू। इसके बाद, डॉ रोनेलो और अन्य लोगों ने स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण मंत्रालय के साथ कार्य शुरू किया कि वह एकजुट हो कर एकीकृत स्वास्थ्य (मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण) पर विचार करें और साझा काम शुरू करें जिससे कि रेबीज़, दवा प्रतिरोधकता और बर्ड फ़्लू पर अंकुश लगे। डॉ तारा सिंह बाम जो इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टुबर्क्युलोसिस एंड लंग डिज़ीज़ के एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के निदेशक हैं, ने बताया कि "एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के 12 देशों के लगभग 80 शहरों से, स्थानीय नेतृत्व देने वाले लोग, जिनमें महापौर और सांसद भी शामिल थे, २ जून २०२२ को ऑनलाइन सत्र में मिले और एकीकृत स्वास्थ्य और विकास सुरक्षा की ओर कदम बढ़ाने का वादा किया। जिस तरह से पिछले वर्षों में अनेक शहरों के स्थानीय नेतृत्व ने, आपसी साझेदारी में, एकजुट हो कर अपने-अपने कार्यक्षेत्र में तम्बाकू नियंत्रण और ग़ैर-संक्रामक रोगों की रोकधाम पर मज़बूती से कार्य किया है, उसी तरह इस स्थानीय नेतृत्व मंच (एशिया पैसिफ़िक सिटीज़ अलाइयन्स फ़ोर हेल्थ एंड डिवेलप्मेंट - एपीसीएटी) को एकीकृत स्वास्थ्य पर भी कार्य करना होगा, ऐसा मानना है डॉ तारा सिंह बाम का जो इस मंच के बोर्ड निदेशक भी हैं। इंडोनेशिया के बोगोर शहर के महापौर और फ़िलिपींस के बलँगा सिटी के महापौर इस मंच के सह-अध्यक्ष हैं।
दहशत और उपेक्षा का चक्र
एकीकृत स्वास्थ्य के अलावा कोई और विकल्प है भी नहीं। यदि पिछले दशकों में महामारी या आपदा को देखें तो सरकारें और जनता सभी आपात स्थिति में दहशत में आते हैं, आनन-फ़ानन में आपदा प्रबंधन होता है, और भविष्य में आपदा से बचने के लिए वादे होते हैं। परंतु जब स्थिति सामान्य होने लगती है तो इन आपदा से बचाव के लिए किए गए वादों पर कार्य भी उपेक्षित हो कर ढीला पड़ जाता है। अर्थ-व्यवस्था को पुन: चालू करना आदि ज़्यादा ज़रूरी प्राथमिकता बन जाता है। क्या हम इस "दहशत और उपेक्षा" के चक्र से बाहर निकल पाएँगे? क्या हम ऐसी व्यवस्था का निर्माण कर पाएँगे जो सबसे स्वास्थ्य और सबके विकास को सही मायने में अंगीकार करे और भविष्य में आपात स्थितियों से बचाए?
शोभा शुक्ला, बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
(शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के सम्पादकीय से जुड़े हैं।
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