अक्सर यह माना जाता है कि शादी के बाद महिलाओं का करियर समाप्त हो जाता है क्योंकि घर और बच्चों से उसे फुर्सत ही नहीं मिलेगी कि वह अपने सपनों को पूरा करने के बारे में सोचे. लेकिन जैसे जैसे वक़्त बदल रहा है यह धारणा गलत साबित होती जा रही है. अब महिलाएं शादी के बाद भी बिजनेस जैसे क्षेत्र में अपने हुनर के जरिए पहचान बना रही हैं. इतना ही नहीं, अन्य महिलाओं को भी प्रोत्साहित कर रही हैं ताकि वह भी अपने हुनर को परवान दे सकें. इसकी मिसाल कुमारी किरण और शिखा रॉय जैसी कर्मवीर महिलाएं हैं. जिन्होंने न केवल शादी के बाद बिजनेस के क्षेत्र में कदम रखा और आज सफलतापूर्वक अपना व्यवसाय चला रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं को भी ट्रेनिंग देकर उन्हें आर्थिक रूप से मज़बूत बना रही हैं.
बिहार के समस्तीपुर स्थित ताजपुर ब्लॉक की रहने वाली 40 वर्षीय कुमारी किरण ने महुआ कॉलेज हाजीपुर से मात्र इंटर तक पढ़ाई की है. दसवीं पास करने के बाद ही उनकी शादी हो गई थी, मगर अपने पिता द्वारा सीखे हुनर से उन्होंने अपनी नयी पहचान गढ़ी और इसे बिजनेस का रूप दे दिया. वह बताती हैं कि उन्होंने अपने पिता से बांस हस्तशिल्प कला को सीखा था और अब बांस द्वारा कलात्मक वस्तुएं बनाते हुए उन्हें 20 साल हो गए हैं. किरण के अनुसार वर्ष 2015 में राज्य सरकार के जीविका मिशन से जुड़ने के बाद उनके पंखों को एक नयी उड़ान मिली. साल 2018 में पटना महारथी से जुड़ने के बाद कई मौकों पर स्टॉल आदि लगाने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसमें साल 2021 के फरवरी में दिल्ली के प्रगति मैदान में नोएडा हार्ट मेला प्रमुख है, जहां उन्हें अपने उत्पाद को बड़े स्तर पर मार्केटिंग करने का अवसर मिला. किरण बांस के द्वारा बेड लैंप और स्टडी लैंप के साथ साथ विभिन्न डिज़ाइन बनाती हैं. इसके अतिरिक्त घर की सुंदरता में चार चांद लगाने वाले सोफा सेट, टेबल सेट और डाइनिंग सेट भी तैयार किये जाते हैं. उनके द्वारा बनाए गए बालों में लगाने वाले पिन को महिलाओं द्वारा हाथों हाथ ख़रीदा जाता है. बांस द्वारा बनाए गए वस्तुओं की कीमत 50 रुपयों से लेकर अधिकतम 50 हजार रुपयों तक होती है. किरण अपनी कला द्वारा हर महीने लगभग 20 से 25 हजार रुपये तक शुद्ध लाभ अर्जित कर लेती हैं. अपनी कला को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए वह सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल करती हैं. उन्होंने अपना फेसबुक प्रोफाइल बनाया हुआ है, जहां से भी उन्हें काफी आर्डर मिलते हैं. किरण कस्टमर की मांग के अनुसार भी डिज़ाइन तैयार करती हैं. उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए साल 2021 में उन्हें राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है. किरण अब तक लगभग 20 महिलाओं को बांस कला में प्रशिक्षित कर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी हैं.
राजधानी पटना की रहने वाली 55 वर्षीय शिखा रॉय 'शिखा क्रिएशन' के नाम से बुटीक चलाती हैं. जहां कांथा कला से बने उत्पाद ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. यह कला उन्होंने अपनी नानी और मां को देखकर सीखा था, लेकिन अपनी इस कला को उन्होंने 2010 में व्यवसाय का रूप उस समय दिया, जब अपने बेटे का एडमिशन करवाने के बाद उनके पास खाली समय बचने लगा. कांथा कला दरअसल बंगाल की प्राचीन कला में से एक है, जिसमें तात की साड़ी के बॉर्डर से धागा निकालकर सुजनी तैयार की जाती थी, जिसे स्थानीय भाषा में गेंदरी भी कहते हैं, जो बच्चों को सुलाने के काम आती है. मगर अब कांथा कला में समय को देखते हुए कुछ बदलाव हुए हैं. अब कुर्ती, साड़ी, दुपट्टे आदि पर धागों के द्वारा कांथा कढ़ाई की जाती है. इसमें फूल, पत्तियों, स्थानीय दृश्यों और प्राकृतिक छंटाओं को काढ़ा जाता है. अपनी कला को लोगों तक पहुंचाने के लिए शिखा विभिन्न मेलों में अपने स्टॉल्स लगा चुकी हैं. उन्होंने लगातार 2015 से लेकर 2018 तक पटना में आयोजित हुए सरस मेला में भाग लिया है. साल 2016 और 2018 में उन्होंने बिहार सरकार के उद्योग विभाग द्वारा आयोजित उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान, पटना में आयोजित प्रदर्शनी में भी भाग लिया था. इसके अतिरिक्त वह वर्ष 2019 में राष्ट्रीय खादी महोत्सव और बिहार महिला उद्योग संघ द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में भी अपने स्टॉल लगा चुकी हैं, जहां उनके उत्पादों को काफी सराहा गया था. शिखा अभी तक 20 से 25 महिलाओं को कांथा कला में प्रशिक्षित कर चुकी हैं. कुमारी किरण और शिखा रॉय जैसी कई महिलाओं ने अपनी हुनर से यह साबित कर दिया है कि शादी का मतलब उसका करियर ख़त्म होना नहीं होता है. यह केवल एक पड़ाव है, जिसे समाज ठहराव समझने की भूल करता है. हमारे देश में ऐसी असंख्य महिलाओं के उदाहरण हैं जिन्होंने शादी के बाद बिजनेस से लेकर यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा को पास कर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है. दरअसल उसे मान्यताओं या परंपराओं के नाम पर किसी बंदिश में कैद नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह उन्मुक्त उड़ान भरना जानती हैं. महिलाओं ने अपनी काबलियत से वक़्त को बदला है, अब समय है समाज को अपनी सोच बदलने की.
सौम्या ज्योत्सनामुजफ्फरपुर, बिहार
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें