सबका होता है एक सपना, जो होता है उसका अपना,
सपना तो एक मेरा भी है, पूरा करना जो मुझे यही है,
कलम पकड़ी थी मैंने हाथों में, वह करके कुछ जज्बातों में,
उस कलम को ही अपना सपना बना लिया, उसी में अपना जीवन छुपा लिया।।
कहना था कुछ, पर कहती किससे, इसलिए मैंने दोस्ती कर ली इससे,
इससे अच्छा दोस्त मुझे मिलता कहा, और कौन है किसका यहां।।
अपने मन की सब लिख दी, इसी से बजाय कहने के यहाँ,
और किसी से लिखते लिखते मुझे याद आया, जो कविता रुप पाया।।
मैंने जो जज्बात अपने लिखे थे, तो अब तक एक कविता बन चुकी थी,
फिर सोचा मैंने ये भगवान की ही है मर्जी, अब उसी के दरबार में है अर्जी।।
यही मेरा सपना जो पूरा करना है, नाम करना है बहुत और ये जीवन संवारना है।
कक्षा-8
बघर, कपकोट
बागेश्वर उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें