आलेख : श्रीलंका का जन विद्रोह और पड़ौसी देश - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 14 जुलाई 2022

आलेख : श्रीलंका का जन विद्रोह और पड़ौसी देश

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वर्तमान में श्रीलंका अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। इसका मूल कारण यही माना जा रहा कि वहां का राजनीतिक नेतृव दिशाहीन होकर सत्ता का संचालन करने की नीति अपना रहा है। प्रमुख पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा जन हित और देश हित के लिए काम न करके केवल व्यक्तिगत हित को ही ध्यान में रखकर कार्य किया जा रहा है। श्रीलंका में जो स्थिति बनी है उसके पीछे राजनीतिक नेतृत्व पूरी तरह से जिम्मेदार दिखाई देता है। आज श्रीलंका में उपजे जन विद्रोह के कारण राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आम जनता के निशाने पर हैं। इसके पीछे मात्र यही कारण है कि राजनीतिक नेतृत्व ने जन भावनाओं का सम्मान नहीं किया। इसके फलस्वरूप आज श्रीलंका बहुत ज्यादा आर्थिक कठिनाई के दौर से गुजर रहा है। अभी हाल ही में जिस प्रकार से श्रीलंका की जनता द्वारा राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास में के समक्ष जिस प्रकार से प्रदर्शन किया गया, वह श्रीलंका की भयावह स्थिति को सबके सामने रख देता है। श्रीलंका में सरकार ने स्थिति को सुधारने का प्रयास किया, लेकिन ऐसा प्रयास करने के लिए यह निर्णय काफी देर से लिया गया। अगर यही निर्णय समय रहते लिया जाता तो शायद इस प्रकार की स्थिति नहीं बनती। यह विश्व के लिए एक बहुत बड़ा संदेश है कि आज श्रीलंका के समक्ष जो स्थिति बनी है वह एक दिन सभी देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। इसका कारण यह है कि विश्व के कई देश अपने मूल उद्देश्य से भटकते दिखाई देते हैं। श्रीलंका में आर्थिक विषमताओं के कारण उत्पन्न हुई स्थितियों से आज वहां पर भुखमरी के हालात पैदा हो गए हैं। कोई भी चीज आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही है। सभी चीजों के दाम अपने हिसाब से तय करने का खेल चल रहा है। जिसके कारण जरूरत की चीजें आम आदमी से बहुत दूर हो चुकी हैं।


भारत के पड़ोसी देश आज कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। केवल श्रीलंका ही नहीं, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन जैसे कई देश किसी न किसी गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। जिस प्रकार के हालात श्रीलंका में निर्मित हुए हैं, उसी प्रकार के हालात का सामना पाकिस्तान भी कर रहा है। वहां भी आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छूते दिखाई दे रहे हैं। रोजमर्रा की चीजें आम जनजीवन की पहुंच से बहुत ही दूर जाती दिखाई दे रही हैं। पाकिस्तान में जहां राजनीतिक नेतृत्व अपने सुख सुविधाओं में कोई कमी करना नहीं चाहता, वही आम जनता के हित में भी कोई आवश्यक निर्णय लेने में कोताही करता है। आज पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व सारी दुनिया के समक्ष अपनी स्थिति को दिखाने की स्थिति में भी नहीं है। उसे आज कर्ज चुकाने के लिए कर्ज की आवश्यकता हो रही है, लेकिन विश्व के धनी और शक्ति संपन्न देशों ने पाकिस्तान की ओर से अपनी दृष्टि फेर ली है। इसी प्रकार से बांग्लादेश की स्थिति भी किसी प्रकार से ठीक नहीं कही जा सकती। बांग्लादेश से जिस प्रकार से भारत में घुसपैठ हो रही है, वह बांग्लादेश की स्थिति को उजागर कर रहा है। वहां रोजगार का बड़ा संकट बहुत बड़ी परेशानी का कारण बना है। उल्लेखनीय है की बांग्लादेश की हालत भी भुखमरी के कगार पर है। बंगलादेश की जनता के समक्ष दो वक्त की रोटी कमाने के लिए कोई काम नहीं है। इसी कारण से आज बांग्लादेश की गरीब जनता भारत में घुसपैठ करने के लिए उतावली है।


आज श्रीलंका के जो हालात हैं, उसके पीछे बहुत बड़ा कारण यह भी है कि वहां के पूरी सत्ता को एक परिवार की बपौती बना दिया था। श्रीलंका के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अपने आप को जनता से बहुत ऊपर मानकर सर्वशक्तिमान बना लिया था। सारी शक्ति अपने हाथ में ले ली थी। यही कारण है कि श्रीलंका की जनता आज विद्रोह करने पर उतारू है। हालांकि ऐसा नहीं है कि श्रीलंका का वर्तमान नेतृत्व ही इस सारी समस्या के लिए दोषी है, बल्कि पूर्व की सरकारों के निर्णय भी इस समस्या को विकराल बनाने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। यह निर्णय सरकारों द्वारा अपनी मनमानी से लिए गए। यह बात सही है कि सुधार के लिए उठाया कोई कदम एकदम से लागू नहीं किया जा सकता, उसे धीरे-धीरे अमल में लाना चाहिए, लेकिन श्रीलंका के राजनीतिक नेतृत्व ने जिस प्रकार से जैविक खेती के लिए निर्णय लिए और रासायनिक खादों पर प्रतिबंध लगाया, उसके कारण वहां का आम किसान प्रभावित हुआ और श्रीलंका में कृषि उपज अनुपातिक दृष्टि से काफी प्रभावित हुई। इस कारण अनाज की कमी आने से श्रीलंका में खाद्य आपूर्ति का संकट खड़ा हो गया। चूंकि श्रीलंका की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी, इसीलिए विश्व के कई देश श्रीलंका को आर्थिक सहयोग करने के लिए तैयार नहीं हुए, इसलिए आज श्रीलंका अपने ऊपर कर्ज के भार को कम करने के लिए कोई भी कदम उठाने का साहस नहीं जुटा पा रहा, क्योंकि उसके पास खजाने में कुछ भी नहीं है।


श्रीलंका की बिगड़े हुए हालात के लिए निश्चित रूप से यही कहा जा सकता है कि इसके लिए वहां कहा राजनीतिक नेतृत्व पूरी तरह जिम्मेदार है। यह बात भी सही है कि किसी भी देश की स्थिति बिगड़ने पर उसके आसपास के देशों पर भी प्रभाव पड़ता है, लेकिन इस प्रभाव का असर उन देशों पर कितना होगा या कितना हो सकता है, यह उन देशों की स्थिति पर निर्भर करता है। अगर उन देशों में राजनीतिक नेतृत्व बहुत मजबूत है तो स्वाभाविक रूप से यही कहा जा सकता है कि उस देश पर श्रीलंका की स्थिति का प्रभाव उतना नहीं होगा, जितना किसी ल कमजोर देश पर हो सकता है। आज पाकिस्तान और बांग्लादेश राजनीतिक नेतृत्व के मामले में मजबूत नहीं हैं। वहां राजनीतिक राजनीतिक खींचतान इतनी ज्यादा है कि एक दूसरे को पटखनी देने का प्लान बनाते रहते हैं। वहीं भारत में राजनीतिक नेतृत्व के रूप में सत्ता पक्ष के पास कितनी ताकत है कि विपक्ष भी कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है। विपक्ष आरोप कुछ भी लगाए, लेकिन यह भी सच है कि विपक्षी पार्टियां केवल और केवल विरोध करने के लिए ही विरोध करती हैं। विरोध करने के लिए कोई ठोस कारण उनके पास नहीं है। इसका मूल कारण यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने केंद्रीय सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार को पूरी तरह से समाप्त किया है। केंद्र सरकार ने आम जनता को मिलने वाली सुविधाओं को बिना बिचौलिए के जनता तक सीधे पहुंचाने का जो कार्य किया है, उससे भ्रष्टाचार में बहुत बड़ी कमी आई है। प्रशासनिक भ्रष्टाचार तो पूरी तरह खत्म नहीं हुआ, लेकिन कहते हैं जब नेतृत्व की नीयत ठीक होती है तो नीचे के लोग भी ठीक प्रकार से काम करने के लिए प्रवृत्त होते हैं। किसी भी समस्या के समाधान के लिए लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए नेतृत्व को मजबूत होने की बहुत आवश्यकता है। श्रीलंका और पाकिस्तान की जिस प्रकार से स्थिति खराब हुई है तो उसके पीछे राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी भी बहुत बड़ा कारण है।






सुरेश हिंदुस्थानी, वरिष्ठ पत्रकार

मोबाइल : 9425101815

(लेखक राजनीतिक चिंतक व विचारक हैं)

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