नयी दिल्ली, 14 जुलाई, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में सदस्यों के अधिकारों को पूरी तरह संरक्षित रखने का आश्वासन देते हुए गुरुवार को स्पष्ट रूप से कहा कि संसद में “ किसी शब्द के इस्तेमाल पर पाबंदी नहीं लगायी गयी है।” उन्होंने कहा कि सदनों की कार्यवाही में इस्तेमाल किए गए किसी शब्द को कार्यवाही से विलोपित करने का कोई भी निर्णय उस शब्द के इस्तेमाल किए जाने के ‘समय और संदर्भ’ के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। श्री बिरला लोकसभा, राज्यसभा और देश की विभिन्न विधानसभाओं की कार्यवाही से विलोपित किए गए शब्दों के बारे में लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी नयी पुस्तिका से उठे विवाद पर विशेष रूप से आयोजित एक संवादाता सम्मेलन में कुछ स्पष्टीकरण दे रहे थे। उन्होंने संवाददाताओं के सवालों पर कई बार यह स्पष्ट किया कि संसद की कार्यवाही में “ किसी शब्द को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। यह पुस्तिका विलोपित शब्दों का संकलन मात्र है। ” उन्होंने कहा, “ मैं देश की जनता और सदस्यों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपने मुझे अध्यक्ष चुना है और अध्यक्ष के नाते मैं सुनिश्चित करता हूं कि सदस्यों के अधिकार संरक्षित बने रहें। ” श्री बिरला ने कहा कि मीडिया की चर्चाओं में यह तक कहा जा रहा है कि सरकार ने कतिपय शब्दों पर पाबंदी लगा दी है। लोकसभा अध्यक्ष ने इस तरह के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “ संसद अपने नियम और प्रक्रियायें स्वयं निर्धारित करती है। सरकार उसे निर्देश नहीं दे सकती। ” श्री बिरला ने स्पष्ट किया कि लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित पुस्तिका कोई नयी घटना नहीं है और संसद के दोनों सदनों में विलोपित शब्दों के विषय में ऐसी पुस्तिकाएं पहले भी प्रकाशित होती रही है। उन्होंने कहा कि इस तरह की पुस्तिकाओं का प्रकाशन 1954, 1986, 1992, 1999, 2004 और 2009 में प्रकाशन हो चुका है। इनमें विधानसभाओं में विलोपित शब्दों के संदर्भ भी शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि विलोपित शब्दों और उनके समय और संदर्भ पर एक पुस्तिका भी प्रकाशित की गयी है ताकि सदस्य उसको पढ़कर सदनों की चर्चा में शब्दों के चयन के प्रति सावधान बने रहें। यह पुस्तक 1100 शब्दों की है। सदस्यों की सुविधा के लिए वर्ष 2010 से ऐसी पुस्तिकाओं का प्रकाशन नियमित कर दिया गया है और कागज की बचत के लिए इसे ऑनलाइन किया जा रहा है। इसका उद्देश्य यही होता है कि सदनों की कार्यवाही की गरिमा बनी रहे, हम नये सदस्यों को इसके लिए प्रशिक्षित करते हैं और जरूरत होगी तो और भी प्रशिक्षण दिया जायेगा। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, “जो लोग इस समय आपत्ति उठा रहे हैं वे इस किताब को पढ़ लिए होते तो यह चर्चा नहीं कर रहे होते। ” लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित पुस्तिका में ‘विनाश पुरुष’, ‘जयचंद’, ‘शकुनी’, ‘जुमलाबाज’, ‘बाल बुद्धि’, ‘कोविड स्प्रेडर’, ‘ड्रामा’, ‘खालिस्तानी’, ‘खून से खेती’, एब्यूज्ड, एशेम्ड और हिप्पोक्रेसी जैसे बहुत से शब्दों को विलोपित किए जाने का उल्लेख किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि अंग्रेजी के एशेम्ड शब्द को 2012 में कार्रवाई से विलोपित किया गया है। श्री बिरला ने कहा, “ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कोई नहीं छीन सकता, लेकिन चर्चाएं गरिमापूर्ण होनी चाहिए। ” उन्होंने कहा, “ पीठासीन अधिकारी का कार्य सदन की मर्यादाओं और सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करना होता है। ” उन्होंने इस विवाद को अनावश्यक करार देते हुए कहा,“ सदनों में विलोपित शब्दों की पुस्तिका पहले भी जारी होती रही है इसलिए वर्तमान विवाद का कोई अर्थ नहीं है। ” लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पीठासीन अधिकारी सदन में चर्चा के दौरान प्रयुक्त शब्दों के विलोपन का निर्णय उसके संदर्भ को ध्यान में रखकर करते हैं और किसी सदस्य के वक्तव्य से किसी शब्द को विलोपित करने पर सदस्य को आपत्ति उठाने का भी अधिकार है। श्री बिरला ने कहा, “ भारत का लोकतंत्र एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था है और जनता संसद को लोकतंत्र का मंदिर मानती है। इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है। ” लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, “ आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं । हर सदस्य को अपनी बात रखने का अधिकार है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान प्रदत्त है, पर सदन मर्यादा से चले, इसके लिए नियम बने हैं। जनता की अपेक्षा होती है कि संसद में चर्चा मर्यादित रहे, अमर्यादित न हो।” उन्होंने कहा कि संसद की ही तरह राज्यों की विधानसभाएं भी स्वायत्त रूप से काम करती हैं और अपनी कार्यवाही के लिए नियम और प्रक्रियाएं खुद तय करती हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में नियम ज्यादा कड़े हैं और वहां सदन के बीच में आने पर पाबंदी है। संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के प्रावधानों के अनुसार संसद के किसी सदस्य पर सदन या संसदीय समिति की बैठक में कहे गए उसके शब्द के लिए किसी न्यायालय में नहीं घसीटा जा सकता। इसके साथ ही अनुच्छेद 121 के तहत सदस्यों पर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के काम पर उनके विरुद्ध महाभियोग के प्रस्ताव पर चर्चा के अलावा कोई टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। इसी तरह लोकसभा के नियम 352 के अंतर्गत सदस्य किसी प्रस्ताव के बिना किसी उच्च पदस्थ व्यक्ति के आचरण पर टिप्पणी नहीं कर सकते। नियम 353 में सदन के अंदर किसी की मानहानि करने वाले या किसी को अपराधी बताने वाले आरोप नहीं लागाए जा सकते। लोकसभा की कार्यवाही के नियम 380 के तहत लोकसभा अध्यक्ष-पीठासीन अधिकारी को मानहानिकारक, असंसदीय और अभद्र शब्द को कार्रवाई से निकालने या विलोपित का अधिकार है। श्री बिरला ने कहा यदि किसी सदस्य के किसी शब्द को विलोपित किया जाता है तो उसे उस पर आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार है और उसे स्थापित प्रक्रिया के तहत निपटाया जाता है।
गुरुवार, 14 जुलाई 2022
सदन में किसी शब्द के इस्तेमाल पर पाबंदी नहीं : ओम बिरला
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