भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में चल रही प्राकृतिक खेती परियोजना के अंतर्गत संस्थान के निदेशक डॉ. आशुतोष उपाध्याय की देख-रेख में जीवामृत बनाया गया | इसको बनाने के लिए 10 लीटर देशी गोमूत्र, 10 किलोग्राम ताजा गोबर, 500 ग्राम पेड़ के नीचे की मिट्टी, 1 किलोग्राम देशी गुड़, 1 किलोग्राम चना का आटा मिलाकर मिश्रण तैयार किया गया | मिश्रण को 200 लीटर के पानी के ड्रम में मिलाया गया और सूती के कपडे से ढककर दिन में तीन बार तीन मिनट तक लकड़ी से घड़ी की दिशा में घुमाया गया | जीवामृत एक किण्वित सूक्ष्मजैविक संघ है | वस्तुतः, यह पोषक तत्व प्रदान करता है, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक एजेंट के रूप में कार्य करता है, जो मिटटी में सूक्ष्मजीव और देशी केंचुओं की आबादी को भी बढ़ावा देता है | इसे महीने में दो बार फसलों पर सिंचाई के पानी में या 10% पर्ण के रूप में लगाना चाहिए | इस अवसर पर निदेशक महोदय ने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत एक प्रमुख घटक है, इसके उपयोग के बिना इस खेती की परिकल्पना नहीं की जा सकती है | इसके अलावा बीजामृत, धनजीवामृत, ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र और आग्नेस्त्र भी अन्य प्रमुख घटक हैं | मौके पर उक्त परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. अनिल कुमार सिंह, प्रधान वैज्ञानिक; डॉ. बिकाश सरकार, प्रधान वैज्ञानिक; डॉ. पी.के. सुंदरम, वैज्ञानिक; डॉ. रोहन कुमार रमण, वैज्ञानिक; डॉ. वेद प्रकाश, वैज्ञानिक; डॉ. कीर्ति सौरभ, वैज्ञानिक; डॉ, अभिषेक दूबे, वैज्ञानिक; डॉ. राकेश कुमार, वैज्ञानिक; डॉ. पवनजीत, वैज्ञानिक एवं श्री अभिषेक कुमार, प्रक्षेत्र प्रबंधक उपस्थित थे |
बुधवार, 31 अगस्त 2022
बिहार : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर में जीवामृत बनाया गया
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