नयी दिल्ली 14 अगस्त, विभाजन -विभीषिका स्मृति दिवस को लेकर विपक्ष द्वारा उठाये जा रहे सवालों के बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज कहा कि इस स्मृति दिवस को मनाने का उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, मानव सशक्तिकरण और एकता को बढ़ावा देना है। श्रीमती मुर्मू ने रविवार शाम 76 वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा , “ आज 14 अगस्त के दिन को विभाजन-विभीषिका स्मृति-दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस स्मृति दिवस को मनाने का उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, मानव सशक्तीकरण और एकता को बढ़ावा देना है।” गौरतलब है कि मोदी सरकार ने पिछले वर्ष 14 अगस्त को घोषणा की थी कि 1947 में विभाजन के दौरान भारतीयों के कष्टों और बलिदानों की राष्ट्र को याद दिलाने के लिए 14 अगस्त को सालाना ‘विभजन विभिषिका स्मृति दिवस’ या ‘विभाजन भयावह स्मरण दिवस’ के रूप में याद किया जाएगा। कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए आज कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर मौके का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं और इस बार विभाजन विभीषिका ‘स्मृति दिवस’ मनाकर वह बंटवारे की त्रासदी का राजनीतिक लाभ लेने के लिए कर रहे हैं। श्रीमती मुर्मू ने कहा कि देश में संवेदनशीलता व करुणा के जीवन-मूल्यों को प्रमुखता दी जा रही है। इन जीवन-मूल्यों का मुख्य उद्देश्य हमारे वंचित, जरूरतमंद तथा समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों के कल्याण हेतु कार्य करना है। उन्होंने कहा , “ आज देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और अर्थ-व्यवस्था तथा इनके साथ जुड़े अन्य क्षेत्रों में जो अच्छे बदलाव दिखाई दे रहे हैं उनके मूल में सुशासन पर विशेष बल दिए जाने की प्रमुख भूमिका है।” उन्होंने कहा कि देश के नए आत्म-विश्वास का स्रोत युवा, किसान और सबसे बढ़कर देश की महिलाएं हैं। “ महिलाएं अनेक रूढ़ियों और बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ रही हैं। सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं में उनकी बढ़ती भागीदारी निर्णायक साबित होगी। आज हमारी पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या चौदह लाख से कहीं अधिक है। हमारे देश की बहुत सी उम्मीदें हमारी बेटियों पर टिकी हुई हैं। समुचित अवसर मिलने पर वे शानदार सफलता हासिल कर सकती हैं। हमारी बेटियां फाइटर पायलेट से लेकर स्पेस साइंटिस्ट होने तक हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं।” श्रीमती मुर्मू ने कहा कि पिछले वर्ष से हर 15 नवंबर को ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का सरकार का निर्णय स्वागत-योग्य है। देश के जन-जातीय महानायक केवल स्थानीय या क्षेत्रीय प्रतीक नहीं हैं बल्कि वे पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
कोरोना महामारी के दौरान देश की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “ हमने देश में ही निर्मित वैक्सीन के साथ मानव इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया। पिछले महीने हमने दो सौ करोड़ वैक्सीन कवरेज का आंकड़ा पार कर लिया है। इस महामारी का सामना करने में हमारी उपलब्धियां विश्व के अनेक विकसित देशों से अधिक रही हैं।” उन्होंने कहा कि जब दुनिया कोरोना महामारी के गंभीर संकट के आर्थिक परिणामों से जूझ रही थी तब भारत ने स्वयं को संभाला और अब पुनः तीव्र गति से आगे बढ़ने लगा है। इस समय भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक है। उन्होंने कहा,“हमारा संकल्प है कि वर्ष 2047 तक हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों को पूरी तरह साकार कर लेंगे।” श्रीमती मूर्म ने देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले तथा इस दौरान अपने प्राणों का बलिदान देने वाले देश के महान सपूतों को याद करते हुए कहा कि उन लोगों ने अपना सर्वस्व इसलिए बलिदान कर दिया कि नागरिक खुली हवा में सांस ले सकें। लाेकतांत्रिक परंपराओं और देश में लोकतंत्र की मजबूत जड़ों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा,“ अधिकांश लोकतान्त्रिक देशों में वोट देने का अधिकार प्राप्त करने के लिए महिलाओं को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। लेकिन हमारे गणतंत्र की शुरुआत से ही भारत ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया। आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मार्च 2021 में दांडी यात्रा की स्मृति को फिर से जीवंत रूप देकर शुरू किया गया।” उन्होंने कहा कि आजादी के संघर्ष ने देश की दुनिया में अलग छवि बनायी। उन्होंने कहा, “ उस युगांतरकारी आंदोलन ने हमारे संघर्ष को विश्व-पटल पर स्थापित किया। उसे सम्मान देकर हमारे इस महोत्सव की शुरुआत की गई। यह महोत्सव भारत की जनता को समर्पित है।” राष्ट्रपति ने कहा,“ जब हमारे पर्यावरण के सम्मुख नई-नई चुनौतियां आ रही हैं तब हमें भारत की सुंदरता से जुड़ी हर चीज का दृढ़तापूर्वक संरक्षण करना चाहिए। जल, मिट्टी और जैविक विविधता का संरक्षण हमारी भावी पीढ़ियों के प्रति हमारा कर्तव्य है। हमारे पास जो कुछ भी है वह हमारी मातृभूमि का दिया हुआ है। इसलिए हमें अपने देश की सुरक्षा, प्रगति और समृद्धि के लिए अपना सब कुछ अर्पण कर देने का संकल्प लेना चाहिए।” अंत में उन्होंने सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा,“ मैं भारत के सशस्त्र बलों, विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों और अपनी मातृभूमि को गौरवान्वित करने वाले प्रवासी-भारतीयों को स्वाधीनता दिवस की बधाई देती हूं।” राष्ट्रपति के तौर पर स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देशवासियों के नाम उनका यह पहला संबोधन था।
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