- संविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ - शहीदों के सपनों का भारत बनाओ’ नारे के साथ माले चलाएगा राष्ट्रीय अभियान
- 9 से 15 अगस्त तक चलेगा यह देशव्यापी अभियान, बिहार में 11 अगस्त से होगी शुरूआत.
- पंचायती राज व्यवस्था द्वारा सभी राशन कार्ड धारियों को मुफ्त में उपलब्ध करवाया जाए तिरंगा.
- राष्ट्रीय झंडा कोड में संशोधन वापस ले सरकार, खादी के झंडों का ही हो प्रयोग.
- एमएसपी पर सरकार किसानों से कर रही धोखेबाजी, 2024 में मोदी सरकार को हटाने की अगुवाई करेगा बिहार.
माले महासचिव ने कहा कि 11 अगस्त को पूरे बिहार में तिरंगे के साथ आजादी मार्च के आयोजन के बाद 15 अगस्त को पार्टी दफ्तरों सहित गांव-कसबों में तिरंगा फहराकर संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक रूप से पाठ किया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार ने 13 से 15 अगस्त ‘घर-घर तिरंगा’ का अभियान लिया है. सवाल यह है कि हर घर तिरंगा पहुंचेगा कैसे? सरकार पचीस रुपये की दर पर पोस्टऑफिस के जरिए तिरंगा बेचने की बात कह रही है. इस बाबत हमारी पार्टी ने भारत की प्रेसिडेंट श्रीमति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर अपील की है कि पंचायती राज व्यवस्था के जरिए सभी राशन कार्ड धारी परिवारों को मुफ्त में तिरंगा पहुंचाया जाए. महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी व सूखे की जो स्थिति है उसमें आम लोगों के लिए तिरंगा खरीद कर फहराना संभव नहीं है. दूसरी ओर, फ्लैग कोड 2002 में संशोधन करके सरकार ने मशीन से बने व पॉलिस्टर के झंडों के उपयोग की मंजूरी दे दी है. मतलब अब राष्ट्रीय झंडे का भी आयात किया जा सकता है. यह आजादी के आंदोलन की भावना के उलट है. खादी हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की पहचान है. इसलिए सरकार राष्ट्रीय झंडे के उत्पादन से संबंधित संशोधन को वापस लेकर खादी से बने झंडे के इस्तेमाल की गारंटी करे. बिहार में आजादी 75 के मौके पर विगत एक साल से लगातार कार्यक्रम चल रहे हैं. पटना में बटुकेश्वर दत्त, मोतिहारी में बतख मियां, अरवल में गांधी पुस्तकालय का पुनरूद्धार, अरवल में ही 1857 की क्रांति के नायक जीवधर सिंह के सम्मान में कार्यक्रम आदि आयोजनों का सिलसिला जारी है. इसी कड़ी में 21 सितंबर को नवादा के रजौली में 1857 के बाद अगले दस साल तक जारी रजवार विद्रोह की याद में आजादी मार्च व सभा का आयोजन किया जाएगा.
बिहार में अभी सूखे की स्थिति है. लोग बेहद परेशान हैं. ऐसे में तामझाम व बड़े पैमाने पर खर्च करके भाजपा ने बिहार में सात मोर्चों की अपनी कार्यसमिति की बैठक की. भाजपा बिहार के लिए ऐसी लेबोरट्री है जहां से वह केवल लेना चाहती है, देना कुछ नहीं चाहती. आइसा व बिहार के छात्र-युवा साथी बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने जेपी नड्डा को याद दिलाया कि यह जेपी की धरती है. पटना विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा पुरानी लंबित मांग है. एक छोटी सी मांग को भी भाजपा पूरी नहीं कर पा रही है. 70 के दशक में लोकतंत्र व मौलिक अधिकारों को सस्पेंड कर देश में थोप दी गई तानाशाही के खिलाफ उभरे देशव्यापी आंदोलन में बिहार अग्रिम मोर्चे पर था. 1977 में आपातकाल से देश को छुटकारा मिला. आज एक बार फिर देश में चल रहे अघोषित आपातकाल के खिलाफ बिहार जनसंघर्ष का केंद्र बन रहा है. 2024 के चुनाव में मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने की वह अगुवाई करेगा. 31 जुलाई को किसान संगठनों ने फिर से आंदोलन शुरू किया. एमएसपी के नाम पर जो कमिटी बनी है, वह किसानों के साथ धोखा साबित हो रही है. सरकार कह रही है कि एमएसपी को कानूनी मान्यता देने का एजेंडा था ही नहीं, लेकिन सच यही है कि इसी आश्वासन पर किसानों ने अपना आंदोलन स्थगित किया था. एमएसपी पर आंदोलन का दूसरा दौर शुरू हो चुका है. बिहार में इस सवाल पर किसान आंदोलन को तेज करने के लिए रोहतास के विक्रमगंज में 23-24 सितंबर को अखिल भारतीय किसान महासभा का राष्ट्रीय सम्मेलन होगा. 1 अगस्त को मनरेगा व ग्रामीण मजदूरों का बिहार में बड़ा प्रदर्शन हुआ. सरकार मनरेगा की मजदूरी में सबसे ज्यादा बकाया रखे हुए है. बकाए के भुगतान के साथ-साथ मनरेगा की शर्तें बेहतर बनाते हुए न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की जाए.
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