महागठबंधन की नवगठित सरकार ने बुधवार को दोहरी राहत की सांस ली। पहला उसने विश्वास मत हासिल किया और दूसरा स्पीकर विजय सिन्हा से मुक्ति पाने में सफल रही। हालांकि दोनों स्वाभाविक था, लेकिन इसके पीछे जो बेचैनी, हड़बड़ी और अनिश्चय का माहौल था, अब सब शांत हो गया। विश्वास मत हासिल करने में भी सरकार को फजीहत झेलनी पड़ी। लगभग 2 घंटा 30 मिनट की चर्चा के बाद विश्वास मत ध्वनिमत से पारित हो गया। इसके बाद संसदीय कार्यमंत्री विजय कुमार चौधरी ने इस पर मत विभाजन का आग्रह किया, जिसे उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी ने स्वीकार कर लिया। भाजपा के तारकिशोर प्रसाद ने विश्वास मत पारित होने के बाद मतदान को लेकर सवाल उठाया और सदन का बहिष्कार किया। इधर वोट गिनती करने में विधान सभा की टीम गड़बड़ा गयी। इस कारण दूसरी बार वोटों की गिनती हुई, जिसमें सरकार के पक्ष में 160 वोट पड़े और विपक्ष में कोई वोट नहीं पड़ा। विशेष सत्र की कार्यवाही के दौरान स्पीकर विजय सिन्हा की भूमिका को लेकर संशय बना रहा, जब तक कि उन्होंने इस्तीफे की घोषणा नहीं कर दी। मंगलवार की रात सदन की कार्यवाही को लेकर दो बार कार्य सूची तैयार की गयी थी। पहली कार्यसूची में स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सबसे अंत में चर्चा के लिए लिया गया था, जबकि दूसरी कार्य सूची में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा स्पीकर के प्रारंभिक संबोधन के बाद शामिल था। तय कार्यक्रम के अनुसार, स्पीकर विजय सिन्हा निर्धारित समय पर आसन पर आये। आसन ग्रहण के बाद उन्होंने भाषण की शुरुआत की। सात पन्ने के भाषण पढ़ने में उन्हें 20 मिनट लग गये। भाषण का एक-एक शब्द और लाइन संशय पैदा करने वाला था। अपने संबोधन में उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस के आरोपों को बिंदुवार जवाब दिया। अपने 20 महीने के कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाया और मुख्यमंत्री की भूमिका पर प्रकारांतर में कटाक्ष भी किया। स्पीकर के संबोधन के दौरान मुख्यमंत्री ने कभी आसन की ओर देखा तक नहीं। कम से कम तीन बार ऐसा मौका आया, जब लगा कि अगली लाइन से कोई संवैधानिक संकट न खड़ा हो जाये। लेकिन जिस तरह से अपना पक्ष रख रहे थे और उपलब्धियों को बता रहे थे, इससे स्पष्ट हो रहा था कि अविश्वास प्रस्ताव के सदन में रखे जाने से पहले इस्तीफा दे देंगे। हुआ भी वही। उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की। इसके साथ उन्होंने कहा कि आगे की कार्यवाही का संचालन अधिशासी सदस्य नरेंद्र नारायण यादव करेंगे और दो बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर चले गये। इसके बाद सदन में सन्नाटा पसर गया। उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी के सदन में रहते हुए अधिशासी सदस्य को कार्यवाही संचालन का जिम्मा क्यों सौंपा गया। कुछ देर तक दोनों पक्षों के लोग संशय में बैठे रहे। सत्ता पक्ष में संसदीय कार्यमंत्री विजय चौधरी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से विमर्श किया। इसके बाद धीरे-धीरे लोग सदन से निकलने लगे। दो बजे विधायी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उपाध्यक्ष ने आसन ग्रहण किया। इधर, इस्तीफे की घोषणा के बाद विजय सिन्हा विपक्षी लॉबी में पहुंचे। विधायकों ने अपनी गमछी उनके गले में पहना दिया। वहीं बैठकर उन्होंने इस्तीफा पर हस्ताक्षर किया। इसके थोड़ी देर बाद उनसे लॉबी में ही दुबारा मुलाकात हुई। उन्होंने वीरेंद्र यादव न्यूज के साथ बातचीत में कहा कि हमने सही समय और उचित जगह पर इस्तीफा दिया है। इस दौरान हमने आरापों का जवाब भी दिया। श्री सिन्हा ने कहा कि हमने संविधान की मर्यादा और प्रावधानों का सम्मान करते हुए इस्तीफा दिया था। इससे पहले सदन में उन्होंने कहा था कि हम खुद इस्तीफा देने वाले थे, लेकिन जब अविश्वास का नोटिस आ गया तो उसका जवाब देना आवश्यक हो गया था। इस बीच, उपाध्यक्ष के साथ बातचीत में हमने पूछा कि इस्तीफा स्वीकार कर लिये हैं। तब उन्होंने कहा कि इस्तीफा स्वीकार हो गया है। उधर, दोपहर बाद सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले उपाध्यक्ष को अध्यक्षीय कक्ष में संसदीय कार्यमंत्री विजय चौधरी ने स्पीकर के आसन पर बिठाया। थोड़ी देर बाद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी पहुंचे। इस दौरान मीडिया से बातचीत में कहा कि उपाध्यक्ष ने कहा कि नये अध्यक्ष के निर्वाचन तक इस पद की जिम्मेवारी का निर्वाह करेंगे। वैसे शुक्रवार को नये अध्यक्ष का चुनाव प्रस्तावित है। सदन की दूसरी बैठक शुरू होने के पहले हम लॉन में घुमरिया रहे थे कि एक घोषणा हुई- चालक ध्यान दें। पूर्व अध्यक्ष विजय सिन्हा जी की गाड़ी पोर्टिको में लाएं। हम भी पोर्टिको की ओर दौड़े। इस बीच उनकी गाड़ी पोर्टिको में पहुंची और अपने सहयोगियों के साथ वे निजी गाड़ी से चले गये। वे आये थे अध्यक्ष की गाड़ी से और रवाना हुए निजी वाहन से। थोड़ी देर में अध्यक्ष की गाड़ी के लिए निर्धारित जगह पर उपाध्यक्ष की गाड़ी लगी हुई थी। बिहार के संसदीय इतिहास में दूसरी बार किसी विधान सभा अध्यक्ष ने इस्तीफा दिया है। इससे पहले कांग्रेस के शिवचंद्र झा ने 23 जनवरी, 1989 को इस्तीफा दिया था। इस्तीफा देने वाले दूसरे व्यक्ति विजय कुमार सिन्हा हैं। इसके साथ ही अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस आने के बाद इस्तीफा देने वाले पहले व्यक्ति विजय सिन्हा हैं। इससे पहले दो बार अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जा चुका था, लेकिन इस्तीफा देने की कभी नौबत नहीं आयी थी। वैसे बुधवार को सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले राजद के वरिष्ठ नेता और एमएलसी रामचंद्र पूर्वे विपक्षी लॉबी में पहुंच गये, जहां भाजपा नेताओं ने उनका स्वागत किया।
- बेचैनी, हड़बड़ी और अनिश्चय का हुआ पटाक्षेप
--- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ संसदीय पत्रकार, पटना ---
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