- प्रख्यात इतिहासकार रामशरण शर्मा की ग्यारहवीं पुण्यतिथि मनाई गई, केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान का आयोजन
पटना, 20 अगस्त। पटना की चर्चित संस्था 'केदारदास श्रम एवं समाज अध्ययन संस्थान' द्वारा प्रख्यात इतिहासकार रामशरण शर्मा की ग्यारहवीं पुण्यतिथि के अवसर ‛सामाजिक, आर्थिक परिवर्तन और इतिहासबोध’ विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। इस विमर्श में इतिहास के कई प्राध्यापक, लेखक, संस्कृतिकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता सहित बड़ी संख्या में विद्वान भी शामिल हुए। संस्थान के सचिव अजय कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। अजय कुमार ने इतिहासकार रामशरण शर्मा का परिचय देते हुए बताया “मैं भी उसी गांव का हूँ जिस गांव के रामशरण शर्मा थे। शर्मा जी बेहद ही गरीब परिवार से थे। उनके पिता उस इलाके के बड़े लोगों के घर खाना बनाने का काम करते थे। रामशरण शर्मा बरौनी फ्लैग स्टेशन के बल्ब की रौशनी में अपनी पढ़ाई करते थे। वह ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने की कोशिश करते। बाद में वो पटना विश्वविद्यालय आये। शर्माजी के प्रभाव में बहुत सारे छात्र कम्युनिस्ट पार्टी में आये। शर्मा जी ने सौ से ज्यादा किताबें लिखी हैं। उनकी किताबें दुनिया भर में पढ़ी और पढ़ाई जाती है।” इतिहासकार ओ पी शर्मा का संदेश पढ़कर सुनाया गया। जिसमें उन्होंने रामशरण शर्मा के योगदान की चर्चा की। उन्होंने बताया कि शर्मा जी साम्प्रदायिकता के खिलाफ लगातार बोलते और लिखते रहे हैं। शर्मा जी इतिहास में ध्रुवतारा की तरह चमकते रहेंगे। मुख्य वक्ता पटना विश्वविद्यालय के इतिहास के पूर्व प्राध्यापक अवध किशोर प्रसाद ने अपने संबोधन में कहा “ जो लोग मानते हैं कि राम जन्मभूमि अयोध्या में ही है वह इतिहास से समर्थन क्यों चाहते हैं इसका मतलब है कि उनको राम पर भरोसा नहीं है। समाज में जनश्रुति भी चलता रहता है उसको इतिहास से समर्थन नहीं किया जा सकता है। प्रकृति के साथ मनुष्य के तालमेल और संघर्ष का, उसके विकास का इतिहास लिखा जा सकता है। भगवान का इतिहास कैसे लिखा जा सकता है?”
“ब्राह्मण जब अपने को देवता मानने लगे तब क्षत्रिय के साथ उनका संघर्ष भी होने लगा। उपनिषद काल में आते- आते यज्ञ का महत्व समाप्त होने लगा। जो दूसरे धर्म की बुराई करता है और अपने को अच्छा कहता है वो दरअसल अपने धर्म की भी बुराई कर रहा है। मौर्यकाल में इस प्रवृत्ति पर रोक सी लग गई थी। अशोक दूसरे के बारे में भी सहिष्णु था। गुप्तकाल में बहुत सारी बातों में परिवर्तन आता है। उन्होंने कहाकि अर्थव्यवस्था में परिवर्तन होने से लोग दूसरे रास्ते तलाशते हैं। भूमिदान ने सामंतवाद को स्थापित किया। भूमिदान की वजह से बड़े-बड़े मंदिर बनने लगे। सामन्तों और पोप के दबाव की वजह ईसाई और मुसलमानों के बीच युद्ध हुआ। लड़ने वाले को भूमि और सम्पत्ति का लालच दिया गया। मनुष्य का इतिहास साक्ष्य पर चलता है, विश्वास पर नहीं।” पूर्व प्रशासनिक पदाधिकारी और लेखक व्यासजी ने कहाकि हमलोगों ने आर एस शर्मा को पढ़ा है। शर्मा जी जितने बड़े विद्वान थे उतना ही बड़ा व्यक्तित्व भी था उनका। प्रसिद्ध विद्वान हरारी कहते हैं कि पहला मानव अफ्रीका में हुआ। कहानी के आधार पर इतिहास नहीं लिख सकते। आप परिकथा लिख सकते हैं। इतिहास हमें सीखने का मौका देता है। हमें पढ़ना चाहिए ताकि दुनिया हमारे सामने खुल सके। जबर्दस्ती सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने की कोशिश हो रही है। यह इतिहास नहीं है। इतिहास के खंडहर से नफरत के कंकाल निकालने की कोशिश नहीं होनी चाहिए बल्कि सीखने और बेहतर करने की कोशिश होनी चाहिए। इतिहास के साथ खिलवाड़, मनुष्यता के साथ खिलवाड़ है। सीपीआई ( एम ) के वरिष्ठ नेता अरुण मिश्रा ने कहा " मार्क्स से पहले इतिहास देखने का जो नजरिया था वह एकांगी था। आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से इतिहास को देखने की प्रवृत्ति नहीं थी। मार्क्स की दृष्टि से हम तमाम अंधेरे कोनों को पढ़ सकते हैं। मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भारत के जटिल समाज को समझने की कोशिश की। साक्ष्य के आधार पर उन्होंने लेखन किया है। आज इतिहास सबसे संघर्ष का क्षेत्र हो गया है। तथ्यहीन और झूठ बात को इतिहास बताकर पेश किया जा रहा है। आज सहज और सरल भाषा में आर एस शर्मा को लोगों के बीच ले जाने की जरूरत है। " दरभंगा सहित कई संग्रहालयों के निदेशक शिवकुमार मिश्रा ने कहा " रामशरण शर्मा ने वैज्ञानिक ढंग से किताबें लिखीं हैं। पिछले तीस-चालीस साल से उनको झूठलाने की कोशिश हो रही है। लेकिन कोई सफल नहीं हो सका। शर्मा जी तथ्य की तलाश में लगे रहते थे। सरकार पोषित इतिहासकार बिना प्रमाण के इतिहास लिखना चाहते हैं। " पटना विश्वविद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक प्रो सतीश कुमार ने बताया " आर एस शर्मा बहुत ही सहज थे अपने विरोधियों को बहुत ही सहजता से सुनते थे। जब उन्होंने पहली किताब लिखी, उससे जो पैसे मिले उससे उनकी बहन की शादी हुई। नये छात्रों को भी इतिहासबोध से परिचय कराते रहते थे।" पटना विश्वविद्यालय के इतिहास के प्राध्यापक अकल राम ने कहा " इतिहास विज्ञान है। प्रमाण से ही इतिहास साबित होता है। स्थान और तिथि इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मगध विश्विद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति कार्यानंद पासवान ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा “आज इतिहास पैसे के बल पर लिखने की कोशिश हो रही है। सिलेबस बदल बदल कर मन में जहर घोला जा रहा है। विश्वास पर जो आधारित होगा वो अंधविश्वास के जैसा होगा। इतिहास तथ्यों पर होगा। ” प्रो. अरुण कुमार, प्रो. सतीश, प्रो. विजय कुमार, रविन्द्रनाथ राय आदि ने भी सभा को सम्बोधित किया। सभा का संचालन अशोक कुमार सिन्हा ने किया। सभा में अनिल कुमार राय, डॉ अंकित, लड्डू जी, मदन प्रसाद, अमन कुमार, गोपाल शर्मा, सुनील सिंह, अक्षय कुमार, राकेश कुमार, हरदेवजी आदि उपस्थित थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें