- बदलाव के नए दौर में नए विश्लेषण की जरूरत है : अनिल राजिमवाले
- केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान का दो दिवसीय नौवां राज्य सम्मेलन शुरू । बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी व नागरिक जुटे।
पटना, 5 अगस्त। केदारदास श्रम व समाजअध्ययन संस्थान के नौवें राज्य सम्मेलन केदार भवन आयोजित किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पटना के बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार, रँगकर्मी, छात्र-युवा संगठन, ट्रेड यूनियन, किसान सँगठन के प्रतिनधि मौजूद थे। आगत अतिथियों का स्वागत केदारदास संस्थान के सचिव अजय कुमार ने किया। विश्वविद्यालय व महाविद्यालय कर्मचारियोंनके नेता प्रो अरुण कुमार की शिक्षा व्यवस्था पर लिखी पुस्तिका का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। नौवें राज्य सम्मेलन का उदघाटन करते हुए मग्धविश्विद्याल के प्रति कुलपति प्रो कार्यानन्द पासवान ने कहा " सभ्यता के विकास के साथ- साथ मज़दूरों का शोषण भी बढ़ा है। अधिक विकास मतलब अधिक शोषण। हम आज हल के बदले ट्रैक्टर, कटाई के लिए हार्वेस्टर का उपयोग कर रहे हैं। विज्ञान के विकास का लाभ सबको मिलना चाहिए पर उसका फायदा सिर्फ पूंजीवादी उठाते हैं। मज़दूरों का विभाजन कुछ तो लाभ-लोभ के कारण तो कुछ जातिवादी और धार्मिक शक्तियों के कारण हुआ है।" उदघाटन सत्र के बाद 'वर्तमान परिदृश्य में बदलाव की राजनीति' विषय पर विमर्श शुरू हुआ। विमर्श की शुरुआत करते हुए जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय के अवकाशप्रात प्रोफेसर सुबोध नारायण मालाकर ने कहा " पूंजीवाद बेरोजगारी के बगैर जिंदा नहीं रह सकता, उसका अविभाज्य हिस्सा है। वामपंथ के नारों को दूसरे लोग ले कर चल रहे हैं। पहले जिनका सामाजिक न्याय और आरक्षण का नारा था वे भी आजकल बेरोजगारी का नाम ले रहे हैं। ये हमारे मुद्दों की जीत है। समाजिक न्याय की शक्तियों में वर्गीय चेतना नहीं थी इस कारण दलित आंदोलन साफ है वहीं वामपन्थी आंदोलन में अंबेडकर, पेरियार, फुले को शामिल नहीं करेंगे तो आगे नहीं बढ़ सकते। यदि जमीन का सवाल नहीं जुड़ेगा तो आरक्षण आंदोलन आगे नहीं बढ़ेगा। बिहार में कम्युनिस्ट आंदोलन ने भूमि के सवाल को जोड़ा है जिससे दलित आंदोलन डरता है। उसे लगता है दलितों में भूमि चेतना आएगा तो हमारे हाथ से निकल जायेगा। इसके प्रति हमलोगों को कटु भावन नहीं रखना है। वामपन्थ धैर्य से इंतज़ार कर रहा है। हम बदलाव की रणनीति में दोस्त और दुश्मन कौन हैं जिन्हें देखना है। पिछड़े-दलित हमारे वर्गीय दोस्त हैं यह सद्भावना रखकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। पिछड़ा वर्ग, अतिपिछड़ा वर्ग आयोग, दलित आयोग की रिपोर्ट कहां है?
दिल्ली से आये मार्क्सवादी चिंतक अनिल राजिमवाले ने विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा " मज़दूर-किसान नेताओं के वैसे संघर्षशील नेताओं को समान लाएं जिनको शासकवर्ग द्वारा भुला दिया जा रहा है। केदारदास के अंदर यह भूमिका स्प्ष्ट होनीं चाहिए। लेनिन की पसंदीदा कृति थी मार्क्स की लिखी पूंजी। मजदूरों के बीच वे उसे समझाते थे। समाज को बदलने के इच्छा व सरोकार रखने वालों को सैद्धांतिक प्रयास नहीं करेंगे। बदलाव के राजनीति तभी सम्भव होगी जब सामाजिक परिवर्तन व समाजवाद की लड़ाई लड़ने वाले बदलाव को नहीं समझेंगे तो कम नहीं आगे बढ़ेगा। कुछ देशों में दुनिया दक्षिणपन्थ की ओर जा रही है जबकि लैटिन अमेरिका के 14 देशों में पिछले 20 सालों में संसदीय प्रणाली से वामजनवादी सत्ताएं आकर साम्राज्यवाद को रोक रही हैं। हम वैज्ञानिक व संचार क्रांति से गुजर रहे हैं जिसका असर भारत के सामाजिक व वर्गीय ढांचे पर पड़ रहा है। मध्यवर्ग की भूमिका बढ़ी है। आधे लोग शहरों में रहते हैं इन्हीं लोगों के बीच , जिनमें महिलाओं, नौजवानों की संख्या अधिक है, वामपन्थ ने प्रभाव आगे बढ़ाया है। नया विश्लेषण करना वक्त की जरूरत है। फासिस्ट शक्तियां सत्ता पर कब्जा करने के बाद राज्य के विभिन्न अंगों में घुसपैठ करती हैं। नए तरह का वित्तीय इजारेदार पूंजीवाद का विकास हो रहा है जो उत्पादन में न लग कर सट्टेबाजी में जा रही है, सेवा क्षेत्रो तथा बिल्डिंग बनाने में जा रही है। वामपन्थ को देश के सामने यह लाना पड़ेगा। मध्यवर्ग को कैसे संगठित किया जाए यह समझना पड़ेगा। जातीय व वर्गीय ढांचे अलग-अलग नहीं बल्कि एक दुआरे में घुले-मील हैं। हम इनके बीच कोसे काम करना है यह हमें देखना है। वर्ग पब्लिक सेक्टर में ही मिलता है। एक ओर औद्योगिक मज़दूर वर्ग तो दूसरी ओर पब्लिक सेक्टर को खत्म करने का काम अंबानी-अडानी कर रही है। ग्राम्शी कहा करते थे कि मानस पर असर शक्ति संतुलन से पड़ता है। " पटना विश्विद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो तरुण कुमार ने कहा " सत्ता की विचारधारा को जनता के कॉमनसेंस बनने से बचना है साथ ही खुद भी बचना है। उथल-पुथल को सच्ची निगाह से देखना है। एजेंडा वह करता है हम प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। अखाड़ा उसका है पहलवानी हम करते हैं। विचारधारा के भीतर वैज्ञानिक दृष्टि को लेकर सवाल है। क्या मनुष्य को वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषित किया जा सकता है। एक आदमी जाति भी है, वर्ग भी है। एक आदमी उन्मादी है लेकिन उसे घर-परिवार को भी बचाने की भी चिंता है। अमीर वर्ग को सोचने की जरूरत नहींभाई पैसा देकर रखं लेता है गरीब आदमी रोटी कमाने में रहता है मध्यवर्ग सोचने का काम करता है लेकिन उपभोक्तावाद ने मध्यवर्ग को नपुंसक बना दिया है। "
पटना विश्वद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर रहे अवधकिशोर जी ने कहा " आजकल कुछ लोग राष्ट्रवाद साबित करने वाले लोग हैं जो किसी को भी राष्ट्रवद्रोही सिद्ध करते हैं। बुद्ध व महावीर ने पुरोहित वर्ग जैसे बिचौलियों को समाप्त कर दिया इस कारण विरोध हुआ। विरोध के साथ होशियार वर्ग विकल्प के तलाश करता है। उत्तर वैदिक काल मे श्राद्ध का विकल्प दिया जो आजतक हमारा पीछा करता जा रहा है। बदलवा में हमेशा प्रो चेंजर, स्लो चेंजर तथा नो चेंजर हमेशा रहते हैं।" उदघाटन सत्र को संबोधित करने वालों में प्रमुख थे स्वामी सहजानन्द सरस्वती से जुड़े श्री सीताराम आश्रम, राघववपुर, बिहटा के सचिव डॉ सत्यजीत सिंह, ' बिहार हेराल्ड' के सम्पादक बिद्युतपाल, प्राच्यप्रभा के सम्पादक विजय कुमार सिंह ने भी उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। संचालन शिक्षाविद अनिल कुमार राय जबकि धन्यवाद ज्ञापन जयप्रकाश ने किया। केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के नौवें राज्य सम्मेलन के मौके पर पिछले तीन सालों की गतिविधियों की तस्वीरों का कोलाज बनाया गया था। इसके अलावा इस दौरान गुजरे सदस्यों खगेन्द्र ठाकुर, बद्री नारायण लाल, सत्यनारायण सिंह, चक्रधर प्रसाद सिंह , एस. पी वर्मा, डॉ गोपाल की तस्वीरों को सजाया गया था। एक तरफ मज़दूर ,नेता केदारदास की जीवनी को प्रदर्शित किया गया था। दिवंगत लोगों के लिए शोक प्रस्ताव एटक के राज्य महासचिव ग़ज़नफर नवाब ने प्रस्तुत किया। अध्यक्ष मंडली के सदस्य थे मदन प्रसाद सिंह, ग़ज़नफर नवाब आदि। ए.आई.एस. एफ के युवा साथी अमन कुमार ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के गीत का गायन किया। इसके बाद सवाल जवाब का सत्र चला। इस सत्र में विजय कुमार, चितरंजन चौधरी, ए. एन कॉलेज के प्रोफेसर विजय कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता जौहर, स्वराज प्रसाद शाही, उदयन राय , ए.आई.एफ.यू.सी.टी.ओ के राष्ट्रीय महासचिव प्रो अरुण कुमार ने इस सत्र में भाग लिया। सम्मेलन में मौजूद लोगों में प्रमुख थे। विजय नारायण मिश्रा, कुमार बिंदेश्वर, गोपाल शर्मा, राकेश कुमुद, पुष्पेंद्र शुक्ला, सुनील सिंह, इसक्फ के राज्य महासचिव रवींद्र नाथ राय, गजेंद्रकांत शर्मा, सीपीआइ के पटना जिला सचिव रामलला सिंह, अशोक कुमार सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय कुमार, गोपाल शर्मा, चितरंजन चौधरी, प्रो अशोक यादव, इंदु कुमार, राजकुमार शाही, अनीश अंकुर, जीतेन्द्र कुमार, लड्डू कुमार, डीपीयादव, कारू प्रसाद, हरदेव ठाकुर, कौशलेंद्र वर्मा, देवानन्द, नूतन आनंद, तौसीफ आलम , बी.एन विश्वकर्मा, मंगल पासवान, कुलभूषण गोपाल आदि।
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