भारत अगर अपने वर्तमान इरादे के तहत वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करता है तो भारत की अर्थव्यवस्था को 2036 तक सकल घरेलू उत्पाद के संदर्भ में अनुमानित आधारभूत वृद्धि से 4.7 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। यह कुल 371 बिलियन डॉलर होगा और वर्ष 2047 तक इससे रोजगार के डेढ़ करोड़ नए अवसर पैदा हो सकते हैं। वर्ष 2030 तक उत्सर्जन चरम पर पहुंच सकता है। जीवाश्म ईंधन की मांग में कमी के कारण सकारात्मक आर्थिक प्रभाव का संचार टुकड़ों में हो रहा है। ऐसा 236 अरब डॉलर के सुधरे हुए व्यापार संतुलन के जरिए हो रहा है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत को ऊर्जा के लिहाज से आत्मनिर्भर बनाने के विचार को प्रत्यक्ष रूप से समर्थन मिलेगा जिसका जिक्र उन्होंने भारत के 75वें स्वाधीनता दिवस पर अपने हाईप्रोफाइल भाषण में भी किया था। इसके अलावा, अपनी ऊर्जा प्रणाली और अर्थव्यवस्था को डीकार्बनाइज करने के लिए व्यवहार्य नीति विकल्पों को अधिकतम करने से भारत सदी के मध्य तक नेट जीरो उत्सर्जन की ओर आगे बढ़ सकता है। वर्ष 2023 तक नए कोयला उत्खनन को खत्म करना और 2040 तक कोयले से बनने वाली बेरोकटोक बिजली से अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण करना भारत को जल्द से जल्द शून्य उत्सर्जन की ओर ले जाने के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली होगा। वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने से भारत की सालाना जीडीपी में 7.3% (470 बिलियन) का इजाफा हो सकता है और मौजूदा नीतियों की अपेक्षा वर्ष 2032 तक रोजगार के करीब दो करोड़ नए अवसर पैदा हो सकते हैं। हाई लेवल पॉलिसी कमिशन ऑन गेटिंग एशिया टू नेट जीरो के एशियाई नेतृत्वकर्ताओं ने इस सप्ताह नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में रिपोर्ट के तथ्यों को सामने रखा। उन्होंने भारत को और अधिक दक्ष, स्वच्छ तथा शक्तिशाली अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने के अवसर को पूरी तरह से इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया। यह रिपोर्ट एशियाई और भारतीय नेतृत्व के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर पर सामने आई है जब भारत वर्ष 2023 में जी20 बैठक की अध्यक्षता करेगा और एशिया पैसिफिक ग्रुप सीओपी28 की मेजबानी करेगा। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री, एशिया सोसाइटी के ग्लोबल प्रेसिडेंट और गेटिंग एशिया टू नेटजीरो पर आधारित हाई लेवल पॉलिसी कमिशन के संयोजक केविन रड ने इस रिपोर्ट के जारी होने के अवसर पर कहा “भारत की नेटजीरो संबंधी आकांक्षाएं न सिर्फ जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई के लिहाज से महत्वपूर्ण है बल्कि भारत के सतत और समावेशी विकास के लिए भी वरदान साबित हो सकती हैं। अगर इन्हें इस तरह से व्यापक और सुगठित योजना के जरिए पूरा किया जाए जिससे अतिरिक्त निवेश आकर्षित हो और उन लोगों के लिए न्यायसंगत रूपांतरण सुनिश्चित हो सके जो जीवाश्म ईंधन पर सबसे ज्यादा निर्भर करते हैं तो इससे भारत का नेट जीरो मार्ग रोजगार के नए अवसर पैदा कर सकता है और सुरक्षित आजीविका तथा बेहतर स्वास्थ्य के रास्ते भी बना सकता है।”
अगर भारत जोखिम को खत्म कर सका और जल्द ही अतिरिक्त वित्त हासिल कर सका तो भारत को नेटजीरो रूपांतरण से मिलने वाले आर्थिक और सामाजिक लाभ कई गुना बढ़ जाएंगे। शोध में पाया गया है कि वर्ष 2017 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए अभी से अर्थव्यवस्था में 10.1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करना होगा। वहीं, वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अभी से 13.5 ट्रिलियन डॉलर का निवेश जरूरी होगा। इस अतिरिक्त धन से उन मौजूदा संसाधनों को मुक्त किया जा सकेगा जिनसे हम कार्बन नीतियों के नकारात्मक प्रभावों, जैसे कि कार्बन कर इत्यादि से मुक्त हो सकेंगे और श्रमिकों को कार्य कुशल बनाने तथा उनकी कार्यकुशलता को और बेहतर करने में भी मदद मिलेगी। समय महत्वपूर्ण है। अगर भारत पीछे रह जाता है तो उसे कोयले और अन्य प्रदूषणकारी वस्तुओं के निर्यात की उच्च लागत का सामना करना पड़ सकता है जो फंसी हुई संपत्ति में बदल जाती है या कार्बन सीमा लागत में तब्दील हो जाती है। इसके बजाय, तेजी से आगे बढने पर इससे भारत को मजबूत जलवायु नीतियों वाले बाजारों के लिए एक निम्न-कार्बन विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थान मिल सकता है, जैसे कि नए मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम के तहत अमेरिका है और प्रस्तावित कार्बन सीमा समायोजन तंत्र के साथ यूरोपीय संघ खड़ा है। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव और ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट के वर्तमान अध्यक्ष बान की मून ने कहा, “भारत के लिए वर्ष 2030 और 2070 के प्रदूषण संबंधित लक्ष्यों को आकार देने और उन्हें लागू करने के साथ-साथ उन्हें मजबूत करने का का यही सही समय है। भारत भयंकर गर्मी, बाढ़, असामयिक मौतों तथा अन्य अनेक गंभीर परिणामों के रूप में प्रदूषण तथा अन्य नुकसानदेह उत्सर्जन के सबसे बदतर प्रभावों का पहले से ही सामना कर रहा है। भारत के लिए जलवायु परिवर्तन के बदतरीन प्रभावों को टालने का एकमात्र रास्ता यही है कि वह स्वच्छ ऊर्जा और नेटजीरो उत्सर्जन की दिशा में रूपांतरण कार्य को तेजी से शुरू करे। इसे इस तरह शुरू किया जा सकता है जिससे बेहतर आर्थिक विकास और रोजगार सृजन सुनिश्चित किया जा सके लेकिन अब खोने के लिए जरा भी समय नहीं है और तेजी से काम करने से और भी ज्यादा समग्र लाभ हासिल होंगे।” नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया ने कहा, “भारत के पास आज स्वस्थ सतत और मजबूत आर्थिक विकास की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने के साथ-साथ खुद को वैश्विक नेटजीरो अर्थव्यवस्था के एक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित करने का अवसर है। वर्ष 2023 में जी-20 का मेजबान देश होने के नाते भारत के पास नेट जीरो की दिशा में अपने कार्यों को प्रदर्शित करने और अन्य देशों को अपना अनुसरण तथा सहयोग और निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने का भी मौका है। अगर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा प्रदूषणकारी देश तमाम किंतु परंतु को ताक पर रख दे और कम प्रति व्यक्ति आय होने के बावजूद अपनी एकमात्र धरती को बचाने के वैश्विक प्रयासों का खुले दिल से साथ दे तो इससे उन देशों के लिए एक मिसाल कायम होगी जो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।”
बुनियादी बातें
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2021 में ऐलान किया कि हिंदुस्तान वर्ष 2070 तक नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। उन्होंने वर्ष 2030 तक के भारत के लक्ष्यों को भी मजबूत किया। भारत ने हाल ही में इन लक्ष्यों के एक हिस्से को संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रिया के तहत जल्द ही औपचारिक रूप देने की मंजूरी दी है। नए मॉडल्स यह दिखाते हैं कि भारत के वर्ष 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने से वर्ष 2036 तक सालाना जीडीपी में 4.7% की वृद्धि होगी और वर्ष 2047 तक रोजगार के डेढ़ करोड़ नए अवसर पैदा होंगे। वहीं, उत्सर्जन के वर्ष 2030 तक चरम पर पहुंचने की संभावना है। इसके अलावा खासकर अक्षय ऊर्जा और विद्युतीकरण में तेजी लाने की नीतियों से नेट जीरो के लक्ष्य को इस सदी के मध्य तक संभव बनाया जा सकता है। वर्ष 2023 तक नई कोयला आधारित परियोजनाओं की समाप्ति और कोयले की बेरोकटोक आपूर्ति को वर्ष 2040 तक छोड़कर नए विकल्प अपनाने से खास तौर पर इस सदी के मध्य के करीब नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिहाज से प्रभाव पड़ेगा। वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने से और भी ज्यादा लाभ मिलेंगे। इससे देश की सालाना जीडीपी में 7.3 फीसद की बढ़ोत्तरी होगी और वर्ष 2020 तक रोजगार के 2 करोड़ नए अवसर पैदा होंगे। अतिरिक्त वित्त की व्यवस्था होने से मौजूदा संसाधनों को मुक्त किया जा सकेगा ताकि उनकी मदद से गरीबी तथा अधिक कर की समस्या से निपटा जा सके और श्रमिकों को फिर से कार्यकुशल बनाए जाने के साथ-साथ न्यायसंगत रूपांतरण को सुनिश्चित किया जा सकता है।
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