दरभंगा 30 अगस्त, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा की प्रति कुलपति प्रो.डॉली सिन्हा ने आज कहा कि संस्कृत भारतवर्ष की मूल भाषा है, जो अत्यंत समृद्ध एवं वैज्ञानिक है और इसका साहित्य अति विशाल है। प्रो. सिन्हा ने विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में ‘ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला एवं कश्मीर का योगदान : संस्कृत वाङ्मय के परिप्रेक्ष्य’ में मंगलवार को विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में शुरू हुए दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि नयी शिक्षा नीति में संस्कृत सहित सभी क्लासिकल भाषाओं को काफी महत्व दिया गया है। युवा पीढ़ी संस्कृत को बोधगम्य एवं सर्वजन सुलभ बनाने का सार्थक प्रयास करें। उन्होंने कहा कि सामान्य लोग मानते हैं कि संस्कृत पूजा-पाठ की भाषा मात्र है जबकि संस्कृत साहित्य में 95 प्रतिशत बातें ज्ञान-विज्ञान की हैं। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद ने कहा कि संस्कृत सिर्फ वेद-पुराण, कर्मकाण्ड, वर्ग-धर्म की ही नहीं है बल्कि यह काफी व्यापक एवं गौरवशाली भाषा है। आज संस्कृत की महत्ता अधिक बढ़ रही है क्योंकि यह हर क्षेत्र, धर्म, जाति एवं संप्रदाय के लोगों द्वारा पढ़ी जा रही है। किसी भी भाषा का एक भौगोलिक क्षेत्र होता है, जहां रहने वाले सभी लोग उस भाषा को बोलते और समझते हैं। उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब के भाई दारा शिकोह का उदाहरण देते हुए कहा कि वे 12 वर्षों तक संस्कृत का अध्ययन कर 100 से अधिक श्रेष्ठ पुस्तकों का फारसी भाषा में अनुवाद किया था, जो आज भी सुरक्षित है। संस्कृत भाषा में ज्ञान के साथ ही विज्ञान की भी विस्तार से चर्चा है। मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल से आए प्रो. गोविंद चौधरी ने संस्कृत की वर्तमान स्थिति की चर्चा करते हुए कहा कि आज अधिकतर लोग देवभाषा संस्कृत को छोड़कर अंग्रेजी भाषा की ओर उन्मुख हो रहे हैं तो फिर संस्कृत की रक्षा कैसे होगी। उन्होंने मिथिला की ज्ञान-विज्ञान परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि दक्षिण भारत से शंकराचार्य को भी शास्त्रार्थ करने के लिए मिथिला आना पड़ा था।
मंगलवार, 30 अगस्त 2022
दरभंगा : संस्कृत अत्यंत समृद्ध एवं वैज्ञानिक भाषा : प्रतिकुलपति
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